वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Wed, 29 Dec 2021 07:32 PM IST
सार
दहल के दस्तावेज में 21वीं सदी मे समाजवाद कायम करने के ‘नेपाली रास्ते’ का जिक्र है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इस रास्ते पर चलते हुए पार्टी ने अपना क्रांतिकारी चरित्र गंवा दिया है। इस वजह से उसका जन समर्थन घटा है। 2008 के आम चुनाव में वह सबसे बड़ा दल होकर उभरी थी। लेकिन पांच साल बाद वह तीसरे नंबर पर चली गई…
नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओइस्ट सेंटर) के प्रमुख पुष्प कमल दहल की तरफ से पेश राजनीतिक दस्तावेज ने पार्टी नेताओं को भ्रम में डाल दिया है। ये दस्तावेज पार्टी के आठवें राष्ट्रीय अधिवेशन में दहल ने सोमवार को पेश किया था। उस पर चर्चा मंगलवार को शुरू हुई। इस चर्चा से जुड़े पार्टी प्रतिनिधियों ने नेपाली मीडिया से बातचीत में इस दस्तावेज की कड़ी आलोचना की है। उनके मुताबिक इसे पढ़ने के बाद यह साफ नहीं होता कि इस दस्तावेज का मकसद क्या हासिल करना है।
क्या दस्तावेज में की हेराफेरी
अखबार काठमांडू पोस्ट के मुताबिक उससे अनेक पार्टी प्रतिनिधियों ने कहा कि इस दस्तावेज में स्पष्टता का अभाव है। पार्टी ने 45 पेज के इस दस्तावेज पर चर्चा के लिए 25 ग्रुप बनाए हैं। इनमें से हर ग्रुप में लगभग 65 सदस्य हैं। कई प्रतिनिधियों ने ये राय जताई है कि इस दस्तावेज में पार्टी परंपरा के मुताबिक शब्दजाल का खूब इस्तेमाल किया गया है। लेकिन इसे पार्टी को कोई स्पष्ट वैचारिक लाइन नहीं निकलती। एक प्रतिनिधि ने कहा कि 2013 में हुए पार्टी के सातवें राष्ट्रीय अधिवेशन में पेश दस्तावेज को ही थोड़ी हेरफेर के साथ फिर पेश कर दिया गया है।
एक चर्चा समूह के सदस्य सुरेंद्र बसनेत ने काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘अगर हम समाजवाद कायम करना चाहते हैं, तो उसके लिए रणनीति क्या है। इसका कोई जिक्र दस्तावेज में नहीं है।’ प्रतिनिधियों में सबसे ज्यादा असंतोष इस बात से पैदा हुआ है कि सोमवार को अधिवेशन में दस्तावेज रखे जाने से ठीक पहले तक इसे गोपनीय रखा गया। खबरों के मुताबिक पार्टी की सेंट्रल कमेटी के सदस्य राम कार्की ने आधिकारिक दस्तावेज से असहमति जताते हुए एक अलग दस्तावेज अधिवेशन के सामने रखा है।
कार्की ने अपने दस्तावेज में साफ कहा है कि माओवादी पार्टी संसदीय प्रणाली के मकड़जाल में फंस गई है। उन्होंने संसदीय रास्ते के साथ-साथ संघर्ष के रास्ते पर भी चलने की वकालत की है। वैसे पार्टी प्रतिनिधियों का कहना है कि कार्की के दस्तावेज पर पूरी चर्चा होगी, इसकी संभावना कम है।
पार्टी ने क्रांतिकारी चरित्र गंवाया
दहल के दस्तावेज में 21वीं सदी मे समाजवाद कायम करने के ‘नेपाली रास्ते’ का जिक्र है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इस रास्ते पर चलते हुए पार्टी ने अपना क्रांतिकारी चरित्र गंवा दिया है। इस वजह से उसका जन समर्थन घटा है। 2008 के आम चुनाव में वह सबसे बड़ा दल होकर उभरी थी। लेकिन पांच साल बाद वह तीसरे नंबर पर चली गई।
आलोचकों का यह भी कहना है कि दहल अब सत्ता के खेल में उलझ चुके हैं। इस वजह से उन्होंने पार्टी में खुद से असहमत लोगों को उभरने नहीं दिया है। लगातार तीन दशक से उन्होंने पार्टी नेतृत्व पर अपना कब्जा बनाए रखा है। कार्की के एक करीबी नेता ने काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘कार्की के दस्तावेज पर जिस तरह ठंडा पानी डाला जा रहा है, उसका मकसद असंतुष्ट विचारों को रोकना है।’ इस नेता ने बताया कि मंगलवार को पार्टी की स्थायी समिति ने फैसला किया कि अधिवेशन में किसी को अपना व्यक्तिगत विचार रखने की इजाजत नहीं दी जाएगी। इसमें केवल ग्रुप डिस्कशन ही होंगे।
विस्तार
नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (माओइस्ट सेंटर) के प्रमुख पुष्प कमल दहल की तरफ से पेश राजनीतिक दस्तावेज ने पार्टी नेताओं को भ्रम में डाल दिया है। ये दस्तावेज पार्टी के आठवें राष्ट्रीय अधिवेशन में दहल ने सोमवार को पेश किया था। उस पर चर्चा मंगलवार को शुरू हुई। इस चर्चा से जुड़े पार्टी प्रतिनिधियों ने नेपाली मीडिया से बातचीत में इस दस्तावेज की कड़ी आलोचना की है। उनके मुताबिक इसे पढ़ने के बाद यह साफ नहीं होता कि इस दस्तावेज का मकसद क्या हासिल करना है।
क्या दस्तावेज में की हेराफेरी
अखबार काठमांडू पोस्ट के मुताबिक उससे अनेक पार्टी प्रतिनिधियों ने कहा कि इस दस्तावेज में स्पष्टता का अभाव है। पार्टी ने 45 पेज के इस दस्तावेज पर चर्चा के लिए 25 ग्रुप बनाए हैं। इनमें से हर ग्रुप में लगभग 65 सदस्य हैं। कई प्रतिनिधियों ने ये राय जताई है कि इस दस्तावेज में पार्टी परंपरा के मुताबिक शब्दजाल का खूब इस्तेमाल किया गया है। लेकिन इसे पार्टी को कोई स्पष्ट वैचारिक लाइन नहीं निकलती। एक प्रतिनिधि ने कहा कि 2013 में हुए पार्टी के सातवें राष्ट्रीय अधिवेशन में पेश दस्तावेज को ही थोड़ी हेरफेर के साथ फिर पेश कर दिया गया है।
एक चर्चा समूह के सदस्य सुरेंद्र बसनेत ने काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘अगर हम समाजवाद कायम करना चाहते हैं, तो उसके लिए रणनीति क्या है। इसका कोई जिक्र दस्तावेज में नहीं है।’ प्रतिनिधियों में सबसे ज्यादा असंतोष इस बात से पैदा हुआ है कि सोमवार को अधिवेशन में दस्तावेज रखे जाने से ठीक पहले तक इसे गोपनीय रखा गया। खबरों के मुताबिक पार्टी की सेंट्रल कमेटी के सदस्य राम कार्की ने आधिकारिक दस्तावेज से असहमति जताते हुए एक अलग दस्तावेज अधिवेशन के सामने रखा है।
कार्की ने अपने दस्तावेज में साफ कहा है कि माओवादी पार्टी संसदीय प्रणाली के मकड़जाल में फंस गई है। उन्होंने संसदीय रास्ते के साथ-साथ संघर्ष के रास्ते पर भी चलने की वकालत की है। वैसे पार्टी प्रतिनिधियों का कहना है कि कार्की के दस्तावेज पर पूरी चर्चा होगी, इसकी संभावना कम है।
पार्टी ने क्रांतिकारी चरित्र गंवाया
दहल के दस्तावेज में 21वीं सदी मे समाजवाद कायम करने के ‘नेपाली रास्ते’ का जिक्र है। लेकिन आलोचकों का कहना है कि इस रास्ते पर चलते हुए पार्टी ने अपना क्रांतिकारी चरित्र गंवा दिया है। इस वजह से उसका जन समर्थन घटा है। 2008 के आम चुनाव में वह सबसे बड़ा दल होकर उभरी थी। लेकिन पांच साल बाद वह तीसरे नंबर पर चली गई।
आलोचकों का यह भी कहना है कि दहल अब सत्ता के खेल में उलझ चुके हैं। इस वजह से उन्होंने पार्टी में खुद से असहमत लोगों को उभरने नहीं दिया है। लगातार तीन दशक से उन्होंने पार्टी नेतृत्व पर अपना कब्जा बनाए रखा है। कार्की के एक करीबी नेता ने काठमांडू पोस्ट से कहा- ‘कार्की के दस्तावेज पर जिस तरह ठंडा पानी डाला जा रहा है, उसका मकसद असंतुष्ट विचारों को रोकना है।’ इस नेता ने बताया कि मंगलवार को पार्टी की स्थायी समिति ने फैसला किया कि अधिवेशन में किसी को अपना व्यक्तिगत विचार रखने की इजाजत नहीं दी जाएगी। इसमें केवल ग्रुप डिस्कशन ही होंगे।
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