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विधानसभा चुनाव 2022 : पश्चिमी यूपी में भाजपा ने फिर चला पुराना जिताऊ दांव, समांतर ध्रुवीकरण के साथ इन समूहों पर नजर

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बीते आठ साल के दौरान हुए तीन (लोकसभा के दो और विधानसभा के एक) पश्चिम उत्तर प्रदेश ने राजनीति की नई इबारत लिखी है। अल्पसंख्यकों के समानांतर बहुसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण और छोटे जाति समूहों को साध कर भाजपा ने आजादी के बाद से ही मुस्लिम, दलित और जाट केंद्रित क्षेत्र की राजनीति को बदल दिया। अब भाजपा अपने पुराने दांव से एक बार फिर से पश्चिम यूपी में जीत का सिलसिला जारी रखना चाहती है।

गौरतलब है कि करीब 70 फीसदी हिस्सेदारी के कारण आजादी से लेकर साल 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले  तक इस क्षेत्र की राजनीति जाट, मुस्लिम और दलित जातियों के इर्द-गिर्द घूमती रही थी। हालांकि साल 2014 में भाजपा ने नए समीकरणों के सहारे राजनीति की नई इबारत लिखी। पार्टी न सिर्फ अल्पसंख्यक मुसलमानों के खिलाफ बहुसंख्यकों का समानांतर ध्रुवीकरण कराने में कामयाब रही, बल्कि दलितों में सबसे प्रभावी जाटव बिरादरी के खिलाफ अन्य दलित जातियों का समानांतर ध्रुवीकरण कराने में कामयाब रही।

ओबीसी पर दांव इसलिए
पार्टी ने पश्चिम उत्तर प्रदेश में अब तक 108 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं। इनमें 64 टिकट ओबीसी और दलित बिरादरी को दिया है। दरअसल इसके जरिए भाजपा पहले की तरह गैरयादव ओबीसी और गैरजाटव दलितों साधे रखना चाहती है। इसलिए पार्टी ने कई टिकट गुर्जर, सैनी, कहार-कश्यप, वाल्मिकी बिरादरी को दिया है। सैनी बिरादरी 10 तो गुर्जर बिरादरी दो दर्जन सीटों पर प्रभावी संख्या में हैं। कहार-कश्यप जाति के मतदाताओं की संख्या 10 सीटों पर बेहद प्रभावी है।

इसलिए फिर कैराना…
बीते तीन चुनाव में रणनीति की कमान वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह के हाथों में थी। तब इसी क्षेत्र के कैराना से हिंदुओं के कथित पलायन के मुद्दे को भाजपा ने जोरशोर से उठा कर बहुसंख्यक मतों का सफलतापूर्वक धुव्रीकरण किया। तब मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगे के कारण जाट-मुस्लिम एकता पर ग्रहण लग चुका था। चौथी बार कमान मिलने के बाद शाह ने अपने चुनाव प्रचार की शुरुआत कैराना से की।

विभिन्न छोटे जाति समूहों की भी बड़ी भूमिका…
बीते लगातार तीन चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने की एक बड़ी वजह भाजपा की दलितों-मुसलमानों-जाटों के इतर अन्य छोटी जातियों के बीच पैठ बनाना रही। इस क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सों में कश्यप, वाल्मिकी, ब्राह्मण, त्यागी, सैनी, गुर्जर, राजपूत बिरादरी की संख्या जीत-हार में निर्णायक भूमिका रहती है। भाजपा ने करीब 30 फीसदी वोटर वाली इस बिरादरी को अपने पक्ष में गोलबंद किया।

बीते आठ साल के दौरान हुए तीन (लोकसभा के दो और विधानसभा के एक) पश्चिम उत्तर प्रदेश ने राजनीति की नई इबारत लिखी है। अल्पसंख्यकों के समानांतर बहुसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण और छोटे जाति समूहों को साध कर भाजपा ने आजादी के बाद से ही मुस्लिम, दलित और जाट केंद्रित क्षेत्र की राजनीति को बदल दिया। अब भाजपा अपने पुराने दांव से एक बार फिर से पश्चिम यूपी में जीत का सिलसिला जारी रखना चाहती है।

गौरतलब है कि करीब 70 फीसदी हिस्सेदारी के कारण आजादी से लेकर साल 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले  तक इस क्षेत्र की राजनीति जाट, मुस्लिम और दलित जातियों के इर्द-गिर्द घूमती रही थी। हालांकि साल 2014 में भाजपा ने नए समीकरणों के सहारे राजनीति की नई इबारत लिखी। पार्टी न सिर्फ अल्पसंख्यक मुसलमानों के खिलाफ बहुसंख्यकों का समानांतर ध्रुवीकरण कराने में कामयाब रही, बल्कि दलितों में सबसे प्रभावी जाटव बिरादरी के खिलाफ अन्य दलित जातियों का समानांतर ध्रुवीकरण कराने में कामयाब रही।

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