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वित्त मंत्रालय : दूसरी सरकारी कंपनी में हिस्सा नहीं खरीद सकेंगी सीपीएसई, विशेष मंजूरी जरूरी

वित्त मंत्रालय : दूसरी सरकारी कंपनी में हिस्सा नहीं खरीद सकेंगी सीपीएसई, विशेष मंजूरी जरूरी

एजेंसी, नई दिल्ली।
Published by: योगेश साहू
Updated Fri, 22 Apr 2022 05:06 AM IST

सार

सरकार ने फरवरी, 2021 में जो नीति जारी की थी, उसके मुताबिक चार रणनीतिक क्षेत्रों में सीपीएसई की कम से कम संख्या को बरकरार रखा जाएगा। जबकि बाकी का निजीकरण या विलय कर दिया जाएगा। इन चार क्षेत्रों में परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष व रक्षा, परिवहन और दूरसंचार, बिजली, पेट्रोलियम, कोयला व खनिज और बैंकिंग बीमा व वित्तीय सेवाएं शामिल थे।

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वित्त मंत्रालय ने कहा है कि एक सरकारी कंपनी किसी और सरकारी कंपनी (सीपीएसई)में हिस्सेदारी नहीं खरीद सकती है। ऐसा होने पर विनिवेश का मकसद पूरा नहीं होगा। मंत्रालय ने कहा कि इस दौरान प्रबंधन का नियंत्रण किसी दूसरे सरकारी संगठन या राज्य सरकार के पास होता है तो इससे सरकारी क्षेत्र की कंपनी की अंतर्निहित क्षमताएं बनी रह सकती हैं। ऐसे में नई पीएसई नीति का सही उद्देश्य विफल हो जाएगा।

निवेश एवं लोक संपत्ति प्रबंघन विभाग (दीपम) ने कहा, कंपनियां राज्य की हों या केंद्र की, किसी में भी दूसरी सरकारी कंपनी बोली नहीं लगा सकेगी। हालांकि, केंद्र की विशेष मंजूरी के बाद इसमें छूट दी जा सकती है। पहले सरकारी कंपनियां अपनी अधिकांश हिस्सेदारी उसी क्षेत्र में काम करने वाली दूसरी सरकारी कंपनियों को बेच देती थीं। ऐसी कंपनियां, जिनमें सरकार की 51% या उससे ज्यादा हिस्सेदारी है, उन्हें सीपीएसई कहते हैं। 

ओएनजीसी ने खरीदा था एचपीसीएल में पूरा हिस्सा
जनवरी, 2018 में ओएनजीसी ने एचपीसीएल में सरकार की पूरी 51.11 फीसदी हिस्सेदारी 36,915 करोड़ रुपये में खरीद ली थी। इसी तरह से मार्च, 2019 में पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन ने आरईसी में सरकार की 52.63 फीसदी हिस्सेदारी 14,500 करोड़ रुपये में खरीदी थी। 2001 से 2019-20 के दौरान सरकार ने 9 सीपीएसई में अपनी पूरी हिस्सेदारी अन्य सरकारी कंपनियों को बेच दी थी। इससे उसे कुल 53,450 करोड़ रुपये मिले थे।

चार क्षेत्रों में बनी रहेंगी सरकारी कंपनियां
सरकार ने फरवरी, 2021 में जो नीति जारी की थी, उसके मुताबिक चार रणनीतिक क्षेत्रों में सीपीएसई की कम से कम संख्या को बरकरार रखा जाएगा। जबकि बाकी का निजीकरण या विलय कर दिया जाएगा। इन चार क्षेत्रों में परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष व रक्षा, परिवहन और दूरसंचार, बिजली, पेट्रोलियम, कोयला व खनिज और बैंकिंग बीमा व वित्तीय सेवाएं शामिल थे।

विस्तार

वित्त मंत्रालय ने कहा है कि एक सरकारी कंपनी किसी और सरकारी कंपनी (सीपीएसई)में हिस्सेदारी नहीं खरीद सकती है। ऐसा होने पर विनिवेश का मकसद पूरा नहीं होगा। मंत्रालय ने कहा कि इस दौरान प्रबंधन का नियंत्रण किसी दूसरे सरकारी संगठन या राज्य सरकार के पास होता है तो इससे सरकारी क्षेत्र की कंपनी की अंतर्निहित क्षमताएं बनी रह सकती हैं। ऐसे में नई पीएसई नीति का सही उद्देश्य विफल हो जाएगा।

निवेश एवं लोक संपत्ति प्रबंघन विभाग (दीपम) ने कहा, कंपनियां राज्य की हों या केंद्र की, किसी में भी दूसरी सरकारी कंपनी बोली नहीं लगा सकेगी। हालांकि, केंद्र की विशेष मंजूरी के बाद इसमें छूट दी जा सकती है। पहले सरकारी कंपनियां अपनी अधिकांश हिस्सेदारी उसी क्षेत्र में काम करने वाली दूसरी सरकारी कंपनियों को बेच देती थीं। ऐसी कंपनियां, जिनमें सरकार की 51% या उससे ज्यादा हिस्सेदारी है, उन्हें सीपीएसई कहते हैं। 

ओएनजीसी ने खरीदा था एचपीसीएल में पूरा हिस्सा

जनवरी, 2018 में ओएनजीसी ने एचपीसीएल में सरकार की पूरी 51.11 फीसदी हिस्सेदारी 36,915 करोड़ रुपये में खरीद ली थी। इसी तरह से मार्च, 2019 में पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन ने आरईसी में सरकार की 52.63 फीसदी हिस्सेदारी 14,500 करोड़ रुपये में खरीदी थी। 2001 से 2019-20 के दौरान सरकार ने 9 सीपीएसई में अपनी पूरी हिस्सेदारी अन्य सरकारी कंपनियों को बेच दी थी। इससे उसे कुल 53,450 करोड़ रुपये मिले थे।

चार क्षेत्रों में बनी रहेंगी सरकारी कंपनियां

सरकार ने फरवरी, 2021 में जो नीति जारी की थी, उसके मुताबिक चार रणनीतिक क्षेत्रों में सीपीएसई की कम से कम संख्या को बरकरार रखा जाएगा। जबकि बाकी का निजीकरण या विलय कर दिया जाएगा। इन चार क्षेत्रों में परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष व रक्षा, परिवहन और दूरसंचार, बिजली, पेट्रोलियम, कोयला व खनिज और बैंकिंग बीमा व वित्तीय सेवाएं शामिल थे।

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