वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, लंदन
Published by: सुरेंद्र जोशी
Updated Fri, 04 Mar 2022 08:39 AM IST
सार
अब तक नाटो के सदस्य देश जंग में सीधे सैन्य हस्तक्षेप से दूर रहे हैं। इसकी वजह शायद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की जंग की शुरुआत में यह धमकी हो सकती है कि जो भी तीसरा देश या संगठन इस जंग के बीच में आएगा उसे इतिहास का सबसे बुरा अंजाम भोगना पड़ेगा।
रूस-यूक्रेन जंग के बीच पश्चिमी व यूरोपीय देशों के अहम संगठन उत्तर अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन (NATO) की शुक्रवार को अहम बैठक होगी। अब तक नाटो ने यूक्रेन का सैन्य सहयोग नहीं किया है। ऐसे में इस बैठक पर सभी की नजर रहेगी कि वह यूक्रेन को लेकर क्या फैसला करता है।
अब तक नाटो के सदस्य देश जंग में सीधे सैन्य हस्तक्षेप से दूर रहे हैं। इसकी वजह शायद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की जंग की शुरुआत में यह धमकी हो सकती है कि जो भी तीसरा देश या संगठन इस जंग के बीच में आएगा उसे इतिहास का सबसे बुरा अंजाम भोगना पड़ेगा।
नाटो का कहना है कि यूक्रेन अब तक उसका सदस्य नहीं बना है, इसलिए वह सीधे सैन्य हस्तक्षेप नहीं करेगा। हालांकि वह यूक्रेन की परोक्ष मदद कर रहा है और उसने रक्षात्मक तैयारी तेज कर दी है। इसका मतलब है कि यदि रूस ने यूक्रेन के अलावा नाटो के किसी सदस्य देश पर हमला बोला तो विश्व के इस ताकतवर संगठन की फौज रूस का मुकाबला करने को मैदान में कूद सकती है।
नाटो का कहना है कि उसने कई आपात योजनाएं तैयारी की हैं। इनमें सदस्य देशों की सुरक्षा और जवाबी कार्रवाई की रूपरेखा शामिल है। नाटो ने अमेरिका के साथ मिलकर कई बड़ी जंग लड़ी है। यूक्रेन द्वारा उसकी सदस्यता लेने के प्रयासों से ही रूस खफा हुआ है और उसने उस पर हमला बोला है।
सामरिक रणनीति के जानकारों के अनुसार नाटो तब तक इस जंग में नहीं कूदेगा, जब तक कि रूस उससे सीधे सैन्य टकराव मोल नहीं लेगा। हालात से निपटने की तैयारी अमेरिका के साथ ही नाटो ने भी की है। फिलहाल पश्चिमी देश चाहते हैं कि रूस पस्त हो जाए और आर्थिक व हवाई नाकेबंदी से उसका हौसला टूट जाए, लेकिन नौ दिन बाद भी रूस कमजोर नहीं हुआ है। उसकी फौजें लगातार हमले कर रही हैं।
विस्तार
रूस-यूक्रेन जंग के बीच पश्चिमी व यूरोपीय देशों के अहम संगठन उत्तर अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन (NATO) की शुक्रवार को अहम बैठक होगी। अब तक नाटो ने यूक्रेन का सैन्य सहयोग नहीं किया है। ऐसे में इस बैठक पर सभी की नजर रहेगी कि वह यूक्रेन को लेकर क्या फैसला करता है।
अब तक नाटो के सदस्य देश जंग में सीधे सैन्य हस्तक्षेप से दूर रहे हैं। इसकी वजह शायद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन की जंग की शुरुआत में यह धमकी हो सकती है कि जो भी तीसरा देश या संगठन इस जंग के बीच में आएगा उसे इतिहास का सबसे बुरा अंजाम भोगना पड़ेगा।
नाटो का कहना है कि यूक्रेन अब तक उसका सदस्य नहीं बना है, इसलिए वह सीधे सैन्य हस्तक्षेप नहीं करेगा। हालांकि वह यूक्रेन की परोक्ष मदद कर रहा है और उसने रक्षात्मक तैयारी तेज कर दी है। इसका मतलब है कि यदि रूस ने यूक्रेन के अलावा नाटो के किसी सदस्य देश पर हमला बोला तो विश्व के इस ताकतवर संगठन की फौज रूस का मुकाबला करने को मैदान में कूद सकती है।
नाटो का कहना है कि उसने कई आपात योजनाएं तैयारी की हैं। इनमें सदस्य देशों की सुरक्षा और जवाबी कार्रवाई की रूपरेखा शामिल है। नाटो ने अमेरिका के साथ मिलकर कई बड़ी जंग लड़ी है। यूक्रेन द्वारा उसकी सदस्यता लेने के प्रयासों से ही रूस खफा हुआ है और उसने उस पर हमला बोला है।
सामरिक रणनीति के जानकारों के अनुसार नाटो तब तक इस जंग में नहीं कूदेगा, जब तक कि रूस उससे सीधे सैन्य टकराव मोल नहीं लेगा। हालात से निपटने की तैयारी अमेरिका के साथ ही नाटो ने भी की है। फिलहाल पश्चिमी देश चाहते हैं कि रूस पस्त हो जाए और आर्थिक व हवाई नाकेबंदी से उसका हौसला टूट जाए, लेकिन नौ दिन बाद भी रूस कमजोर नहीं हुआ है। उसकी फौजें लगातार हमले कर रही हैं।
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