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रिदम कला महोत्सव: कलाश्री गुरु रामादेवी ने नाट्यशास्त्र पर रखे अपने विचार, कहा- सिर्फ नाटक पर आधारित है नाट्य शास्त्र

न्यूज डेस्क, अमर उजाला
Published by: हर्षिता सक्सेना
Updated Tue, 01 Feb 2022 09:59 PM IST

सार

मंगलवार को आयोजित हुई कार्यशाला में हैदराबाद से कलाश्री गुरु रामादेवी कला महोत्सव का हिस्सा बनीं। रामा देवी सीनियर कुचिपुड़ी एक्स्पोनेंट होने के साथ-साथ स्कॉलर, राइटर और नटराज अकेडमी ऑफ कुचिपुड़ी की संस्थापक भी हैं।

कला महोत्सव का आयोजन
– फोटो : अमर उजाला

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विस्तार

अमर उजाला और अंजना वेलफेयर सोसायटी के सहयोग से रिदम कला महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस महोत्सव के दौरान संगीत एवं नृत्य की कार्यशाला आयोजित की जा रही है। 26 जनवरी से शुरू हुआ यह कला महोत्सव 45 दिन तक आयोजित किया जाएगा। इस बारे में अंजना वेलफेयर सोसाइटी की फाउंडर कथक नृत्यांगना माया कुलश्रेष्ठ ने बताया कि यह कला महोत्सव बीते 8 सालों से आयोजित किया जा रहा है और आगे भी ऐसे ही आयोजित किया जाएगा। इस महोत्सव का मकसद युवाओं को भारतीय संस्कृति से जोड़ना है।


इसी क्रम में मंगलवार को आयोजित हुई कार्यशाला में हैदराबाद से कलाश्री गुरु रामादेवी कला महोत्सव का हिस्सा बनीं। रामा देवी सीनियर कुचिपुड़ी एक्स्पोनेंट होने के साथ-साथ स्कॉलर, राइटर और नटराज अकेडमी ऑफ कुचिपुड़ी की संस्थापक भी हैं। कार्यशाला का हिस्सा बनीं रामा देवी को माया कुलश्रेष्ठ ने बताया कि आज कला महोत्सव में अपने 8 साल पूरे कर लिए हैं और अब इसे 9वां वर्ष शुरू हो चुका है। इस उपलब्धि पर गुरु रामादेवी ने अंजना वेलफेयर सोसाइटी को शुभकामनाएं भी दी। इसके बाद उन्होंने कार्यशाला के विषय नाट्यशास्त्र पर अपने विचार भी रखें।

इस दौरान माया कुलश्रेष्ठ ने बताया कि नाट्यशास्त्र को एक जीवन में जानना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि नाट्य शास्त्र से ज्ञान नहीं बल्कि समझने और जानने के लिए पूरा विज्ञान है। आज की कार्यशाला में बतौर मेहमान शिरकत करने वाली पी रामा देवी ने अपने व्याख्यान की शुरुआत कुचिपुड़ी नृत्य के इतिहास से की।


उन्होंने बताया कि कुचिपुड़ी शास्त्रीय नृत्य का उद्गम देश के आंध्र प्रदेश स्थित कृष्णा जिले से हुआ था। यह नृत्य सातवीं शताब्दी के आरंभ में भक्ति आंदोलन के परिणाम स्वरूप फला फूला था। 16वीं शताब्दी के कई शिलालेख और साहित्यिक स्रोतों में कुचिपुड़ी नृत्य का उल्लेख भी मिलता है। उन्होंने यह भी बताया कि ऐसी धारणा है कि तीर्थ नारायण यति और उनके शिष्य सिद्धेंद्र योगी ने व्यवस्थित तरीके से इस नृत्य को 17वीं सदी के आसपास विकसित किया था।


डॉक्टर रामा देवी ने बताया कि इस नृत्य का नाम कृष्णा जिले में स्थित कुचिपुड़ी गांव के नाम पर रखा गया है। पुराने समय में कुचिपुड़ी गांव के ब्राह्मण इस नृत्य का अभ्यास किया करते थे। यह उस समय का एक पारंपरिक नृत्य हुआ करता था। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार कुचिपुड़ी नृत्य मूलतः सिर्फ ब्राह्मण समुदाय के पुरुष द्वारा ही किया जाता था। इस नृत्य के दौरान पुरुष की महिलाओं का अभिनय भी किया करते थे।


नाट्यशास्त्र के बारे में बताते हुए डॉक्टर रामादेवी ने कहा कि नाट्य शास्त्र सिर्फ नाटक पर आधारित है, इसमें नृत्य का कोई जिक्र नहीं मिलता है। इस दौरान उन्होंने नाट्यशास्त्र एवं नाट्य के दशरूपक के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि भरतमुनि के नाट्यशास्त्र का आज भी बहुत सम्मान किया जाता है। नाट्य शास्त्र में सिर्फ नाट्य रचना के नियमों का आकलन नहीं होता। बल्कि अभिनेता, रंगमंच और प्रेषक इन तीनों तत्वों की पूर्ति के साधनों का विवेचन भी होता है। 37 अध्यायों में भरत मुनि ने रंगमंच, अभिनेता, अभिनय, नृत्यगीतवाद्य, दर्शक, दशरूपक और रस निष्पत्ति से  जुड़े सभी तथ्यों का विवेचन किया है।


गौरतलब है कि महोत्सव के तहत होने वाली सभी कार्यशालाएं पूरी तरह निशुल्क हैं। इसके तहत 45 दिन का ऑनलाइन कार्यक्रम है। वहीं तीन दिन का कार्यक्रम ऑफलाइन होगा। कार्यशाला के दौरान कार्यक्रम की संचालिका माया कुलश्रेष्ठ ने जानकारी दी कि इस कार्यक्रम से जुड़ने के लिए अंजना वेलफयेर सोसाइटी के फेसबुक पेज पर जाकर इस कार्यक्रम से जुड़ सकते हैं। 

 

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