सार
अमेरिकी विशेषज्ञों का अनुमान है कि चीन पर रूस की अधिक निर्भरता बढ़ने का परिणाम दोनों देशों के बीच फूट पड़ने के रूप में भी सामने आ सकता है। रूस इस बात को लेकर लोगों में असंतोष बढ़ा है कि अब उनके देश को चीन का पिछलग्गू समझा जाने लगा है।
व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग
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यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देशों ने जिस तेजी से रूस पर सख्त प्रतिबंध लगाए हैं, उसे देखते हुए अनेक भू-राजनीतिक विशेषज्ञों ने राय जताई है कि अब चीन पर रूस की निर्भरता और बढ़ जाएगी। इससे ये दोनों देश रणनीतिक मामलों में एक जैसा रुख अपनाने लगेंगे। इन विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि चीन की मदद के कारण रूस प्रतिबंधों का प्रभाव कम रखने में सफल हो सकता है। उस हाल में रूसी राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन पर चीन का प्रभाव और बढ़ेगा।
चीन ने यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा करने से लगातार इनकार किया है। उसने कहा है कि वह यूक्रेन सहित सभी देशों की संप्रभुता और प्रादेशिक अखंडता का सम्मान करता है, लेकिन साथ ही उसने रूस पर प्रतिबंध लगाने की भी आलोचना की है। चीन ने अपना ये रुख विदेश मंत्रालय के बयानों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र की चर्चाओं में भी दोहराया है।
विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि यूक्रेन को लेकर जारी संकट के बीच ही चीन ने रूस से गेहूं हटाने पर तमाम सीमाएं हटाने का एलान किया। साथ ही उसने रूस से प्राकृतिक गैस खरीदने के 30 वर्ष के एक करार पर दस्तखत किए। इन दोनों देशों ने ऊर्जा खरीद के जिन सौदों पर दस्तखत किए हैं, उन्हें डॉलर आधारित अंतरराष्ट्रीय वित्त व्यवस्था से बाहर रखा गया है। यानी चीन तेल या गैस के बदले भुगतान अपनी मुद्रा युवान में करेगा।
रूस की तेल कंपनी गैजप्रोम नेफ्ट ने पिछले साल ही घोषणा कर दी थी कि अब वह चीन को तेल और गैस की कीमत युवान में स्वीकार करेगी। इस बीच ये तथ्य भी सामने आया है कि रूस चीनी वित्तीय संस्थानों से कर्ज लेने वाले प्रमुख देशों में शामिल हो चुका है। वह 2017 तक इन संस्थानों से 151 बिलियन डॉलर का कर्ज ले चुका था। विश्लेषकों के मुताबिक क्राइमिया युद्ध के बाद जब 2014 में रूस पर पश्चिमी देशों ने पहली बार प्रतिबंध लगाए, तभी से रूस ने अपनी अर्थव्यवस्था की दिशा चीन की तरफ मोड़ दी थी।
लेकिन अमेरिकी विशेषज्ञों का अनुमान है कि चीन पर रूस की अधिक निर्भरता बढ़ने का परिणाम दोनों देशों के बीच फूट पड़ने के रूप में भी सामने आ सकता है। रूस इस बात को लेकर लोगों में असंतोष बढ़ा है कि अब उनके देश को चीन का पिछलग्गू समझा जाने लगा है। अमेरिकी थिंक टैंक स्टिमसन सेंटर के प्रोग्राम डायरेक्टर युन सुन ने अमेरिकी वेबसाइट एक्सियोस.कॉम से कहा है कि रूस की चीन पर आर्थिक निर्भरता जितनी ज्यादा बढ़ेगी, रूस में चीन विरोधी भावनाएं उतनी ही ज्यादा पनपेंगी।
सुन ने ये राय भी जताई कि रूस अब जिस रास्ते पर चला है, चीन उससे खुद को एक सीमा से ज्यादा नहीं जोड़ेगा। ऐसा करने की कीमत उसे भी चुकानी पड़ सकती है। सुन ने कहा- ‘अगर रूस से वित्तीय और आर्थिक संबंध बढ़ाना चीन को महंगा पड़ने लगा, तो चीन इस रिश्ते पर पुनर्विचार करेगा।’ इस सिलसिले में इस बात का उल्लेख किया गया है कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद दो चीनी बैंकों ने रूसी निर्यात के बदले धन देना रोक दिया है।