अंतरराष्ट्रीय मामलों पर नजर रखने वाले सामरिक विशेषज्ञों की निगाह में रूस ने चीन के साथ युगलबंदी का संकेत देकर बड़ा संदेश दे दिया है। आज बर्लिन में फ्रांस, रूस, जर्मनी और पोलैंड के दूत मिलेंगे। अब देखना है कि अमेरिका आगे कौन सी रणनीति अपनाता है। जर्मनी, पोलैंड और फ्रांस के नेताओं की कोशिश यूरोप में युद्ध को रोकना है। जर्मनी के चांसलर स्कॉल्ज, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, पोलैंड के आंद्रेज डूडा इसी लक्ष्य को लेकर यूक्रेन संकट साधने में लगे हैं। गुरूवार को जर्मनी के शहर बर्लिन में एक बार फिर इन तीनों देशों के दूत और रूस के दूत के बीच में शांति वार्ता की पहल होगी।
इस शांति वार्ता के समानांतर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने हालात पर नजर बना रखी है। दूसरी तरफ रूस की करीब एक लाख सेनाओं ने यूक्रेन को तीनों तरफ (उत्तरी, पूर्वी और दक्षिणी सीमा) से घेर रखा है। यूक्रेन की तीनों तरफ की सेना पर रूस ने न केवल अत्याधुनिक और भारी हथियारों का जखीरा तैयार कर रखा है, बल्कि आसमान को दुश्मन के किसी भी लक्ष्य से बचाने के लिए प्रतिरक्षी मिसाइलों की भी तैनाती कर रखी है।
रूस की इस तैनाती को देखकर अमेरिका लगातार यूक्रेन पर कभी भी रूस की सैन्य कार्रवाई की आशंका जता रहा है। राष्ट्रपति बाइडन रूस के राष्ट्रपति को गंभीर अंजाम भुगतने का संदेश दे रहे हैं। जर्मनी के चांसलर स्कॉल्ज ने अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन से भी इस विषय में चर्चा की है। अमेरिका के राष्ट्रपति रूस को बार-बार चेतावनी देकर उसकी गैस पाइप लाइन परियोजना को लेकर भी टारगेट कर रहे हैं।
क्या यूक्रेन पर रूस हमला करेगा?
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कहते हैं कि चीजें काफी आगे निकल चुकी हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति का लहजा भी सामान्य नहीं है। अमेरिका ने रूस से लगे पोलैंड की सीमा पर पैट्रिएट मिसाइल आदि तैनात कर दी है। यह रूस को संदेश देने के लिए है। रूस भी इसकी बहुत परवाह करता नहीं दिख रहा है। जबकि यूरोपीय देशों को यूक्रेन पर हमला और इसके बाद यूरोप तक फैलने वाले युद्ध के असर का अच्छी तरह से अंदाजा है। इसका खामियाजा रूस के साथ-साथ यूरोपीय देशों को भी भुगतना पड़ेगा। रूस ने पहले से गैस के दाम बढ़ा दिए हैं और इसकी आपूर्ति को कम कर रखा है। दूसरी तरफ रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की किसी भी भावी योजना पर कोई भविष्यवाणी बहुत आसान नहीं है। वह यूक्रेन को नाटो सदस्य के रूप में दर्जा नहीं देने की मांग पर दृढ़ता से अड़े हैं। इसके साथ वह किसी भी सैन्य कार्रवाई या युद्ध की संभावना से इनकार कर रहे हैं।
रूस की इस मांग पर अमेरिका कोई ध्यान नहीं दे रहा है और अमेरिका के साथ-साथ पोलैंड, जर्मनी, फ्रांस समेत अन्य यूक्रेन की संप्रभुता, अपने हितों की रक्षा की दुहाई दे रहे हैं। सभी की निगाहें पेरिस वार्ता के बाद 10 फरवरी को बर्लिन में रूस के दूत के साथ होने वाली भेंट पर टिकी है।
यूक्रेन के साथ तनाव की वजह क्या है?
रूस की नब्ज पकड़ने के लिए अमेरिका और पश्चिमी देश यूक्रेन को नार्थ अटलांटिक ट्रीटी आर्गनाइजेशन (नाटो) का सदस्य बनाना चाहते हैं। यूक्रेन पहले ही यूरोपीय यूनियन में शामिल हो चुका है। नाटो अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और पश्चिमी देशों समेत कुल 30 देशों का सैन्य गठबंधन है। रूस के सामने चुनौती यह है कि उसके लातविया, इस्तोनिया जैसे कुछ पड़ोसी देश पहले ही इस गठबंधन में शामिल हो चुके हैं। अब नाटो में यूक्रेन के शामिल होने का अर्थ है कि अमेरिका के प्रभाव वाला नाटो रूस की सीमा तक अपनी हनक बनाने लगेगा। रूस नहीं चाहता कि उसके चारों तरफ नाटो का प्रभाव बढ़े और उसकी सुरक्षा चिंताएं बढ़ती चली जाएं। राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के मुताबिक यूक्रेन का महत्व रूस के लिए शरीर में सिर की मौजूदगी जैसा है। हालांकि उन्होंने साफ किया है कि यूक्रेन को रूस में मिलाने या विलय करने का कोई इरादा नहीं है। वहीं यूक्रेन की राजधानी कीव के लोग अपनी स्वतंत्रता और यूक्रेन को स्वतंत्र देश की तरह देखना चाहते हैं।
असल सवाल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दबंगई का
सीरिया में रूस ने सैन्य ऑपरेशन को अंजाम देकर अमेरिका की दुनिया में बादशाहत पर पहली बार सवाल खड़ा किया था। इससे पहले तमाम धमकियों को नजरअंदाज करके 2015 में क्रीमिया को ब्लादिमीर पुतिन ने रूस का हिस्सा घोषित कर दिया था। क्रीमिया भी यूक्रेन के हिस्से का ही शहर था। अब रूस ने उसे मान्यता दी है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मान्यता से सहमत नहीं है। ऐसे में दोनों तरफ से गोलबंदी भी चल रही है। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ भेंट करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़ा संकेत दिया है।
अमेरिका में भी अंतरराष्ट्रीय जानकार इसे जो बाइडन की नीति की विफलता के तौर पर देख रहे हैं। उनका मानना है कि अमेरिका की एक बिना सोची समझी पहल से रूस और चीन को साथ में खड़े होने का अवसर मिल रहा है। बताते चलें कि अमेरिका और चीन के बीच में पहले से ही शीत युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। लेकिन अभी यूक्रेन में किसी जंग की संभावना कम ही है।
जंग हुई तो दूसरे विश्वयुद्ध से कई हजार गुना चुकानी पड़ सकती है कीमत?
रूस शस्त्रागार के मामले में दुनिया की महाशक्ति है। अत्याधुनक ड्रोन, सुपर सोनिक, हाइपरसोनिक मिसाइल, राॅकेट, क्लस्टर बम, ड्रोन और तमाम अत्याधुनिक हथियारों का जखीरा उसके पास है। फायर पॉवर के मुकाबले में रूस की तुलना अमेरिका से की जाती है। घातक पनडुब्बी, एयरक्राफ्ट कैरियर, विध्वंसक, युद्धपोत, परमाणु हथियार का जखीरा रूस के पास है। सामरिक रणनीतिकार भी मानते हैं कि रूस के फायर पॉवर के आगे यूक्रेन का एक दिन भी टिक पाना मुश्किल है। इसके अलावा युद्ध होने और इसमें पश्चिमी देशों के शामिल होने पर इसकी आंच यूरोप तक जाएगी। इसमें फिर चीन जैसे देशों के शामिल होने की स्थिति आ सकती है। इसकी विभीषिका से यूरोप के कई देशों के लिए अपना भी बचाव मुश्किल हो सकता है। इसे यूरोपीय देश भी भलीभांति समझ रहे हैं। इसलिए किसी युद्ध के होने की संभावना कम है।
युद्ध न हुआ तो क्या होगा?
कूटनीति और संवाद ही सबसे बेहतर उपाय हैं। युद्ध जैसी परिस्थिति को शांति वार्ता में तब्दील करते हैं। फ्रांस और जर्मनी इसी प्रयास में लगे हैं। इमैनुएल मैक्रों ने राष्ट्रपति पुतिन से पांच घंटे की बातचीत की और यूक्रेन को नाटो में शामिल करने के निर्णय को कुछ साल के लिए शर्तों के साथ टालने का प्रस्ताव दिया है। रूस के राष्ट्रपति फ्रांस के प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं। अमेरिका और रूस के बीच में तनाव और वर्चस्व की स्थिति पिछले काफी समय से बनी हुई है।
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार निकोलाई पात्रुशेव और अन्य पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा प्रशासन के दौर से ही लगातार हॉट टॉक की सीट पर हैं। ओबामा प्रशासन ने रूस के साथ परमाणु हथियारों के निर्माण समेत तमाम संधियों, समझौतों को तोड़ दिया था। 2015 में भी तनाव चरम पर था। इसके बाद सीरिया में बशर अल असद की सरकार को अमेरिका के प्रकोप से बचाने के लिए रूस ने कैस्पियन सागर में अपना युद्धक बेड़ा भेज दिया था।
सीरिया में एस-400 प्रतिरक्षी मिसाइल प्रणाली तैनात की थी और सीरिया विद्रोहियों पर बमबारी करके सीरिया को अपदस्थ होने से बचाया था। माना जा रहा है कि युद्ध और शांति के बीच में गजब का रहस्य बनाए रखने में रूस की सेना और पुतिन का प्रशासन माहिर है। ऐसे में युद्ध या सैन्य कार्रवाई की संभावना कम है।