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मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट की जज साधना जाधव ने भी एल्गार परिषद केस की सुनवाई से खुद को किया अलग

एजेंसी, मुंबई।
Published by: Jeet Kumar
Updated Thu, 21 Apr 2022 03:24 AM IST

सार

जस्टिस साधना जाधव ने मंगलवार को कहा कि उन्हें मामलों की सुनवाई से खुद को अलग कर लेना चाहिए और उनके सामने एल्गार परिषद या कोरेगांव भीमा मामला नहीं रखा जाना चाहिए।

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बॉम्बे हाईकोर्ट की जज साधना जाधव ने एल्गार परिषद-माओवादी (भीमा कोरेगांव) संबंध मामले की कई याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है, जो इस साल ऐसा करने वाली हाईकोर्ट की तीसरी जज हैं। मामले के आरोपियों में दिवंगत कैथोलिक पुजारी स्टेन स्वामी सहित 16 विद्वान और कार्यकर्ता हैं।

इस साल की शुरुआत में बॉम्बे हाईकोर्ट के जज एसएस शिंदे और जज पीबी वराले ने एल्गार परिषद मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। जस्टिस साधना जाधव और जस्टिस मिलिंद जाधव कार्यकर्ता रोना विल्सन और शोमा सेन द्वारा दायर दो याचिकाओं की अध्यक्षता कर रहे थे, जिसमें उनके खिलाफ मामले को रद्द करने की मांग की गई थी। 

वकील सुरेंद्र गाडलिंग द्वारा दायर एक जमानत याचिका दायर की गई थी और पुजारी फ्रेजर मस्करेन्हास द्वारा दायर एक याचिका में मांग की गई थी कि उन्हें स्वामी की ओर से दायर मुकदमे को चलाने की अनुमति दी जाए, जिनकी चिकित्सा जमानत की प्रतीक्षा में हिरासत के दौरान ही मृत्यु हो गई। 

जस्टिस साधना जाधव ने मंगलवार को कहा कि उन्हें मामलों की सुनवाई से खुद को अलग कर लेना चाहिए और उनके सामने एल्गार परिषद या कोरेगांव भीमा मामला नहीं रखा जाना चाहिए। उन्होंने अपने फैसले के लिए कोई कारण नहीं बताया। 

उल्लेखनीय है कि यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा हुई थी। पुणे पुलिस ने दावा किया कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन हासिल था।

विस्तार

बॉम्बे हाईकोर्ट की जज साधना जाधव ने एल्गार परिषद-माओवादी (भीमा कोरेगांव) संबंध मामले की कई याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है, जो इस साल ऐसा करने वाली हाईकोर्ट की तीसरी जज हैं। मामले के आरोपियों में दिवंगत कैथोलिक पुजारी स्टेन स्वामी सहित 16 विद्वान और कार्यकर्ता हैं।

इस साल की शुरुआत में बॉम्बे हाईकोर्ट के जज एसएस शिंदे और जज पीबी वराले ने एल्गार परिषद मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। जस्टिस साधना जाधव और जस्टिस मिलिंद जाधव कार्यकर्ता रोना विल्सन और शोमा सेन द्वारा दायर दो याचिकाओं की अध्यक्षता कर रहे थे, जिसमें उनके खिलाफ मामले को रद्द करने की मांग की गई थी। 

वकील सुरेंद्र गाडलिंग द्वारा दायर एक जमानत याचिका दायर की गई थी और पुजारी फ्रेजर मस्करेन्हास द्वारा दायर एक याचिका में मांग की गई थी कि उन्हें स्वामी की ओर से दायर मुकदमे को चलाने की अनुमति दी जाए, जिनकी चिकित्सा जमानत की प्रतीक्षा में हिरासत के दौरान ही मृत्यु हो गई। 

जस्टिस साधना जाधव ने मंगलवार को कहा कि उन्हें मामलों की सुनवाई से खुद को अलग कर लेना चाहिए और उनके सामने एल्गार परिषद या कोरेगांव भीमा मामला नहीं रखा जाना चाहिए। उन्होंने अपने फैसले के लिए कोई कारण नहीं बताया। 

उल्लेखनीय है कि यह मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा में आयोजित एल्गार परिषद सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया था कि शहर के बाहरी इलाके में स्थित कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के पास अगले दिन हिंसा हुई थी। पुणे पुलिस ने दावा किया कि सम्मेलन को माओवादियों का समर्थन हासिल था।

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