सार
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि यूपी विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने बसपा से गठबंधन के लिए मायावती तक संदेश भिजवाया था, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। इसपर मायावती ने पलटवार किया। बोलीं- राहुल गांधी को बसपा के बारे में बोलने से पहले 100 बार सोचना चाहिए।
कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बीच घमासान तेज हो गया है। राहुल गांधी के बयान पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने तीखी प्रतिक्रिया दी। राहुल गांधी पर तंज कसा। कहा कि हम वो पार्टी नहीं हैं जिसका नेता प्रधानमंत्री को संसद में जबरन गले लगाता है और न ही हमारा पूरी दुनिया में मजाक उड़ाया जाता है।
इसके पहले राहुल गांधी ने बसपा से गठबंधन को लेकर बड़ा बयान दिया था। कहा था, ‘हमने मायावती जी को विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन का ऑफर दिया था। कहा था कि साथ मिलकर लड़ते हैं और आप मुख्यमंत्री बन जाइएगा। लेकिन उन्होंने बात तक नहीं की।’
राहुल ने मायावती पर सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से डरने का आरोप लगाया। कहा, इसके दबाव के चलते मायावती ने दलितों की आवाज के लिए लड़ाई नहीं लड़ी। भाजपा को खुला रास्ता दे दिया। खैर, मायावती और राहुल गांधी के इन बयानों ने सियासी गलियारे में हलचल पैदा कर दी है।
सवाल उठ रहा है कि आखिर ऑफर के बाद भी बसपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन क्यों नहीं किया? अगर दोनों पार्टियों में गठबंधन होता तो क्या इसका फायदा बसपा और कांग्रेस को मिल सकता था? आइए जानते हैं…
1. बसपा को किसी फायदे की उम्मीद नहीं थी : 403 विधानसभा सीटों वाले यूपी में कांग्रेस का जनाधार लगभग खत्म हो चुका है। इसका अंदाजा 2017 चुनाव परिणामों से लगाया जा सकता है। तब कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ा था। कांग्रेस के 92 प्रत्याशी मैदान में थे, जबकि समाजवादी पार्टी के 311 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा। कांग्रेस के महज सात प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाए। सपा के 47 उम्मीदवार जीते। सपा का साथ मिलने के बाद भी कांग्रेस का वोट शेयर केवल 6.25% ही था। यही कारण है कि मायावती को कांग्रेस के साथ गठबंधन से किसी फायदे की उम्मीद नहीं थी।
2. बसपा का वोटबैंक खिसकने का डर था : यूपी चुनाव में इस बार बसपा को 12.88 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस को 2.33% वोट मिले। ऐसे में दोनों दलों के वोट शेयर को मिला भी दे तो यह सिर्फ 15% ही होता है। कांग्रेस के 97 फीसदी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। ऐसे में बसपा को यह भी डर था कि अगर वह कांग्रेस के साथ हाथ मिलाती हैं तो उनका कोर वोटबैंक खिसक सकता है। मायावती ने दावा किया था कि 2019 के चुनाव में भी यही हुआ था। तब बसपा ने धुर विरोधी समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। मायावती का कहना था कि दलित वोटर्स ने तो सपा को वोट किया, लेकिन सपा के वोटर्स ने बसपा का साथ नहीं दिया।
3. राहुल गांधी की छवि भी बड़ा कारण : मायावती राहुल गांधी की छवि को अच्छा नहीं मानती हैं। रविवार को इस पर उन्होंने बयान भी दिया। कहा, हम वो पार्टी नहीं हैं जिसका नेता प्रधानमंत्री को संसद में जबरन गले लगाता है और न ही हमारा पूरी दुनिया में मजाक उड़ाया जाता है। मतलब साफ है कि राहुल गांधी की छवि से भी मायावती को नुकसान का डर था। इसलिए उन्होंने गठबंधन के ऑफर पर बातचीत करना भी ठीक नहीं समझा।
4. जनाधार घटने का डर था: इतिहास में देखें तो यूपी में कांग्रेस, भाजपा और सपा के साथ बसपा गठबंधन कर चुकी है। साल 1996 के चुनाव से पहले मायावती ने पहली बार कांग्रेस के साथ हाथ मिलाया था। इस चुनाव में बीएसपी का वोट शेयर 1991 के 10.26% से बढ़कर 1996 में 27.73% पहुंच गया। बसपा की सीट 12 से बढ़कर 67 सीटों पर पहुंच गई थी।
हालांकि, इस चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था। इसके बाद यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा था। बाद में बसपा ने कांग्रेस से गठबंधन तोड़ 1997 में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी। 2007 में बसपा ने अकेले दम पर सरकार बनाई। 2012 और 2017 में भी बगैर गठबंधन के चुनाव लड़ा था। हालांकि दोनों ही चुनाव में हार मिली। ऐसे में मायावती को डर था कि अगर वह किसी भी दल के साथ गठबंधन करती हैं तो उनके वोटर्स के बीच संदेश जाएगा कि वह कमजोर हैं। उन्हें जनाधार घटने का डर था।
5. हिंदू वोटर्स भी एक कारण : मौजूदा समय भाजपा ने कांग्रेस को पूरी तरह से हिंदू विरोधी बताने की कोशिश की है। राहुल गांधी के कई बयानों से भी भाजपा को मौका मिल गया। ऐसे में मायावती को एक डर ये भी था कि अगर वह कांग्रेस के साथ जाती हैं तो भाजपा से नाराज हिंदू वोटर्स भी बसपा से दूरी बना लेगा।
विस्तार
कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बीच घमासान तेज हो गया है। राहुल गांधी के बयान पर बसपा सुप्रीमो मायावती ने तीखी प्रतिक्रिया दी। राहुल गांधी पर तंज कसा। कहा कि हम वो पार्टी नहीं हैं जिसका नेता प्रधानमंत्री को संसद में जबरन गले लगाता है और न ही हमारा पूरी दुनिया में मजाक उड़ाया जाता है।
इसके पहले राहुल गांधी ने बसपा से गठबंधन को लेकर बड़ा बयान दिया था। कहा था, ‘हमने मायावती जी को विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन का ऑफर दिया था। कहा था कि साथ मिलकर लड़ते हैं और आप मुख्यमंत्री बन जाइएगा। लेकिन उन्होंने बात तक नहीं की।’
राहुल ने मायावती पर सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से डरने का आरोप लगाया। कहा, इसके दबाव के चलते मायावती ने दलितों की आवाज के लिए लड़ाई नहीं लड़ी। भाजपा को खुला रास्ता दे दिया। खैर, मायावती और राहुल गांधी के इन बयानों ने सियासी गलियारे में हलचल पैदा कर दी है।
सवाल उठ रहा है कि आखिर ऑफर के बाद भी बसपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन क्यों नहीं किया? अगर दोनों पार्टियों में गठबंधन होता तो क्या इसका फायदा बसपा और कांग्रेस को मिल सकता था? आइए जानते हैं…
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