वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, ब्रसेल्स
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Mon, 07 Feb 2022 06:02 PM IST
सार
पर्यवक्षकों का कहना है कि कच्चे तेल के बाजार में लगातार अनिश्चय का माहौल बना हुआ है। इस कारण दुनिया के किसी हिस्से से हल्की सी भी नकारात्मक खबर आने का कीमतों पर असर हो रहा है। इसी बीच अमेरिका में कच्चे तेल का भाव 2014 के बाद के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच जाने की खबर है…
दुनिया भर में कच्चे तेल की सप्लाई को लेकर बढ़ती चिंता के बीच अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस ईंधन का भाव तेजी से चढ़ रहा है। अनुमान लगाया गया है कि जल्द ही यह 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाएगा। तेल उत्पादक देशों का संगठन ओपेक तेल उत्पादन बढ़ाने की मांग पूरी नहीं कर पाया है। उधर जर्मनी में तेल भंडारों पर हुए रैनसमवेयर (साइबर) हमले और अमेरिका में आए बर्फीले तूफान ने स्थितियां और प्रतिकूल कर दी हैं। यूक्रेन के मसले पर रूस के साथ पश्चिमी देशों के जारी तनाव के कारण पहले से ही कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की कीमत में बढ़ोतरी का रुझान रहा है।
बढ़ रहे तेल कंपनियों के शेयर
बीते सप्ताहांत तक यूरोपीय बाजार में कच्चे तेल का भाव 92.8 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुका था। यह सात साल का सबसे ऊंचा स्तर है। तेल के भाव में हुई बढ़ोतरी का इस कारोबार से जुड़ी कंपनियों को खूब फायदा हो रहा है। यूरोपीय बाजार में ऑयल कंपनियों- शेल और बीपी के शेयरों के भाव में बीते हफ्ते तीन फीसदी का इजाफा हुआ। इसके पहले शेल ने अपने कारोबार की 2021 की रिपोर्ट जारी की। उसमें बताया गया कि बीते साल उसके मुनाफे में चार गुना बढ़ोतरी हुई थी।
यूरोपीय तेल बाजार में ताजा उछाल जर्मनी में रैनसमवेयर हमलों की आई खबरों के बाद देखने को मिला है। पिछले हफ्ते जर्मनी में मैबनाफ्ट और ऑयलटैकिंग नाम के भंडारों पर ऐसे हमले हुए। उसके साथ ही यूरोप के कई दूसरे देशों से भी अपने यहां के भंडारण स्थलों पर सूचना तकनीक (आईटी) संबंधी दिक्कतों की खबर आई। हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है कि क्या उन दिक्कतों का संबंध जर्मनी में हुए साइबर हमले से है।
खबरों का असर कीमतों पर
पर्यवक्षकों का कहना है कि कच्चे तेल के बाजार में लगातार अनिश्चय का माहौल बना हुआ है। इस कारण दुनिया के किसी हिस्से से हल्की सी भी नकारात्मक खबर आने का कीमतों पर असर हो रहा है। इसी बीच अमेरिका में कच्चे तेल का भाव 2014 के बाद के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच जाने की खबर है। वहां कच्चे तेल के भाव का पैमाना वेस्ट टेक्सस इंटरमिडिएट में बीते हफ्ते दो फीसदी की उछाल दर्ज हुई। इसके साथ ही यह 91.9 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया।
अमेरिकी विश्लेषकों का कहना है कि ताजा उछाल की वजह अमेरिका में आया बर्फीला तूफान है। इस तूफान से देश का मध्य और उत्तर-पूर्वी हिस्से प्रभावित हुए हैं। इसकी वजह से पेरमियन बेसिन में तेल का उत्पादन ठप हो गया है। जबकि यही अमेरिका में तेल उत्पादन का सबसे बड़ा स्थल है। वैसे अमेरिका में कच्चे तेल की महंगाई तूफान आने से पहले से जारी है। वहां लगातार सात हफ्तों से दाम बढ़े हैं।
बाजार विश्लेषकों का कहना है कि जब यूक्रेन संकट को लेकर तनाव जारी रहता है, तेल के भाव में गिरावट आने की संभावना नहीं है। उधर ओपेक के सदस्य कई देश अपने वादे के मुताबिक तेल उत्पादन नहीं बढ़ा पा रहे हैं। इराक तो अपने तय कोटे के मुताबिक भी उत्पादन नहीं कर पा रहा है। इन सब कारणों से कच्चे तेल की पर्याप्त सप्लाई नहीं हो रही है। उसका नतीजा महंगाई के रूप में सामने आ रहा है।
विस्तार
दुनिया भर में कच्चे तेल की सप्लाई को लेकर बढ़ती चिंता के बीच अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस ईंधन का भाव तेजी से चढ़ रहा है। अनुमान लगाया गया है कि जल्द ही यह 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाएगा। तेल उत्पादक देशों का संगठन ओपेक तेल उत्पादन बढ़ाने की मांग पूरी नहीं कर पाया है। उधर जर्मनी में तेल भंडारों पर हुए रैनसमवेयर (साइबर) हमले और अमेरिका में आए बर्फीले तूफान ने स्थितियां और प्रतिकूल कर दी हैं। यूक्रेन के मसले पर रूस के साथ पश्चिमी देशों के जारी तनाव के कारण पहले से ही कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की कीमत में बढ़ोतरी का रुझान रहा है।
बढ़ रहे तेल कंपनियों के शेयर
बीते सप्ताहांत तक यूरोपीय बाजार में कच्चे तेल का भाव 92.8 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुका था। यह सात साल का सबसे ऊंचा स्तर है। तेल के भाव में हुई बढ़ोतरी का इस कारोबार से जुड़ी कंपनियों को खूब फायदा हो रहा है। यूरोपीय बाजार में ऑयल कंपनियों- शेल और बीपी के शेयरों के भाव में बीते हफ्ते तीन फीसदी का इजाफा हुआ। इसके पहले शेल ने अपने कारोबार की 2021 की रिपोर्ट जारी की। उसमें बताया गया कि बीते साल उसके मुनाफे में चार गुना बढ़ोतरी हुई थी।
यूरोपीय तेल बाजार में ताजा उछाल जर्मनी में रैनसमवेयर हमलों की आई खबरों के बाद देखने को मिला है। पिछले हफ्ते जर्मनी में मैबनाफ्ट और ऑयलटैकिंग नाम के भंडारों पर ऐसे हमले हुए। उसके साथ ही यूरोप के कई दूसरे देशों से भी अपने यहां के भंडारण स्थलों पर सूचना तकनीक (आईटी) संबंधी दिक्कतों की खबर आई। हालांकि इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है कि क्या उन दिक्कतों का संबंध जर्मनी में हुए साइबर हमले से है।
खबरों का असर कीमतों पर
पर्यवक्षकों का कहना है कि कच्चे तेल के बाजार में लगातार अनिश्चय का माहौल बना हुआ है। इस कारण दुनिया के किसी हिस्से से हल्की सी भी नकारात्मक खबर आने का कीमतों पर असर हो रहा है। इसी बीच अमेरिका में कच्चे तेल का भाव 2014 के बाद के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच जाने की खबर है। वहां कच्चे तेल के भाव का पैमाना वेस्ट टेक्सस इंटरमिडिएट में बीते हफ्ते दो फीसदी की उछाल दर्ज हुई। इसके साथ ही यह 91.9 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया।
अमेरिकी विश्लेषकों का कहना है कि ताजा उछाल की वजह अमेरिका में आया बर्फीला तूफान है। इस तूफान से देश का मध्य और उत्तर-पूर्वी हिस्से प्रभावित हुए हैं। इसकी वजह से पेरमियन बेसिन में तेल का उत्पादन ठप हो गया है। जबकि यही अमेरिका में तेल उत्पादन का सबसे बड़ा स्थल है। वैसे अमेरिका में कच्चे तेल की महंगाई तूफान आने से पहले से जारी है। वहां लगातार सात हफ्तों से दाम बढ़े हैं।
बाजार विश्लेषकों का कहना है कि जब यूक्रेन संकट को लेकर तनाव जारी रहता है, तेल के भाव में गिरावट आने की संभावना नहीं है। उधर ओपेक के सदस्य कई देश अपने वादे के मुताबिक तेल उत्पादन नहीं बढ़ा पा रहे हैं। इराक तो अपने तय कोटे के मुताबिक भी उत्पादन नहीं कर पा रहा है। इन सब कारणों से कच्चे तेल की पर्याप्त सप्लाई नहीं हो रही है। उसका नतीजा महंगाई के रूप में सामने आ रहा है।
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