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बजट 2022: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के सामने होंगी ये चुनौतियां  

बजट 2022: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के सामने होंगी ये चुनौतियां  

इस बजट में वित्त मंत्री के सामने चुनौती यह है कि वह इन छोटी नौकरियां या कारोबार करने वाली की आय को बढ़ाने में कैसे मदद करें।
– फोटो : Amar Ujala

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केन्द्रीय वित्त एवं कारपोरेट मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन कल 1 फरवरी को जब अपना तीसरा केन्द्रीय बजट पेश कर रही होंगी, तब उनके सामने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बहुआयामी  चुनौतियां होंगी।

दरअसल, ये चुनौतियां आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक हैं। हालांकि वर्ष 2021-22 में देश की आर्थिक वृद्धि दर 8.3 फीसदी रहने का अनुमान है, जो इसके पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में रही ऋणात्मक दर के तुलना में काफी बेहतर है। लेकिन मोदी सरकार के अपेक्षित लक्ष्य 5 खरब डाॅलर की अर्थव्यवस्था को हासिल करने के लक्ष्य की दृष्टि से अपर्याप्त है।  

निर्मला सीतारमन के सामने चुनौतियां 

राजनीतिक दृष्टि से वित्त मंत्री के सामने पहली बड़ी चुनौती तो यूपी सहित पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिताने की नीयत से लोक लुभावन घोषणाओं की है। इसमें पहला किसानों के हित में कुछ ठोस घोषणाएं हो सकती हैं, जिनमें बेहतर कृषि उपज मूल्य, कर्ज के बोझ से दबे किसानों को आर्थिक राहत तथा कृषि आदानों को सस्ता करना शामिल है। 

इधर, बावजूद तमाम कोशिशों के उत्तर प्रदेश और पंजाब के किसानों में तीन विवादित कृषि कानूनों को लेकर सरकार के प्रति नाराजी कम हुई है, ऐसा नहीं लगता। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसे दो माह पहले ही वापस लेने की घोषणा कर चुके हैं, लेकिन यह सरकार किसान हितैषी है, इसका  सबूत वित्त  मंत्री बजट के माध्यम से कैसे देती हैं, यह देखने की बात है।

दूसरी चुनौती देश करीब 30 करोड़ वेतनभोगी मध्यम वर्ग की है। बढ़ती महंगाई और कम होती आय के मद्देनजर यह वर्ग आयकर में ज्यादा छूट की अपेक्षा कर रहा है। देश में आयकर में ठोस छूट आठ सालों से नहीं मिली है। वित्त मंत्री महिलाओं को आयकर में अतिरिक्त छूट की पुरानी व्यवस्था लागू कर सकती हैं, साथ ही उनसे एक अपेक्षा स्वास्थ्य बीमा तथा होम लोन पर ज्यादा आयकर छूट की है।

कोरोना काल में स्वास्थ्य बीमा का कारोबार काफी बढ़ा है। लेकिन इस पर 18 फीसदी जीएसटी सरकार लेती है, इसे घटाकर 5 फीसदी किया जाना अपेक्षित है ताकि गरीब वर्ग इसका पूरा फायदा उठा सके। इसी तरह आयकर में स्टेंडर्ड डिडक्शन की सीमा 50 हजार से बढ़ाकर 75 हजार रुपये करने की भी उम्मीद है।    
 

अर्थशास्त्र में इस तरह की वृद्धि को अंग्रेजी के K शेप रिकवरी कहा जाता है। वित्त मंत्री के सामने चुनौती यह है कि वह इन छोटी नौकरियां या कारोबार करने वाली की आय को बढ़ाने में कैसे मदद करें। यह मदद सीधी आर्थिक सहायता, आसान कर्ज अथवा कारोबार को बढ़ाने वाली नीतियां लागू कर की जा सकती हैं। 

 

स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दे 

दूसरे, देश में स्वास्थ्य क्षेत्र को और बेहतर तथा सक्षम बनाने के लिए ज्यादा पैसा चाहिए। पिछले बजट में वित्तमंत्री को कोविड के मद्देनजर लोक स्वास्थ्य के बजट में 137 फीसदी वृद्धि की थी। यह क्रम अभी भी जारी रखना होगा, क्योंकि हमने कोविड से लड़ने में काफी सफलता पाई है, लेकिन यह अंतिम स्थिति नहीं है। कोरोना की चुनौती लंबे समय तक जारी रह सकती है।  

आज देश में बड़ी समस्या बेरोजगारी की है। सरकारी भर्तियां तुलनात्मक रूप से बहुत कम और बहुत देरी से हो रही हैं। जो हो रही हैं, उनमें  भी गड़बडि़यां हैं, जैसा कि हमने हाल में रेलवे भर्ती बोर्ड की भर्ती परीक्षाओं में देखा। भारत में बेरोजगारी की दर 8 फीसदी है, जो 2020 में 7 फीसदी थी। इसका मतलब यही है कि रोजगार के नए अवसर निर्मित नहीं हो रहे हैं और कई लोगों के पास जो पास रोजगार था, वो भी छूट गया है। यह गंभीर स्थिति है।

वित्तमंत्री निजी और सरकारी क्षेत्र में रोजगार निर्माण के लिए अनुकूल घोषणाएं कर सकती हैं। इसके लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश और उत्पादकता बढ़ाने वाले सुधारों को नए बजट में जारी रखा जा सकता है। इसी तरह शिक्षा के क्षेत्र में भी ज्यादा निवेश तथा प्राथमिक एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बजट में समुचित प्रावधान अपेक्षित है।  

आय को बढ़ाने की चुनौतियां 

केन्द्रीय वित्त मंत्री के समक्ष जहां देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकारी खर्च बढ़ाने की चुनौती है, वहीं सरकारी खजाना भरने के लिए आय के साधन जुटाने का चुनौती भी है।

  • सरकार की आय का एक बड़ा साधन विनिवेश भी है। इस दृष्टि से बरसों की मेहनत के बाद भारी घाटे में चल रही सार्वजनिक क्षेत्र की विमान कंपनी एयर इंडिया को टाटा समूह को बेचने में सरकार को सफलता मिली है।
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  • इसी तरह बैंकों का एनपीए कम करने के लिए सरकार ने बैड बैंक की स्थापना को मंजूरी दी है। यह बैंक सरकारी बैंकों के एनपीए की वसूली का काम करेंगे जबकि सामान्य बैंकों को अपनी बैलेंस शीट सुधारने में मदद मिलेगी।
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  • इसी तरह सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनी एलआईसी का संभावित आईपीओ भी सरकारी आय बढ़ाने की दिशा में एक ठोस कदम है। लेकिन अभी भी सरकार को अपनी आर्थिक सेहत सुधारने के लिए अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत है।  

इधर, इसका एक कारण यह भी है कि कर वसूली के मोर्चे पर हालात अभी भी संतोषजनक नहीं है। हालांकि जीएसटी वसूली बीते वित्तीय वर्ष में अच्छी रही है, लेकिन बाकी करों के मामले में ऐसा नहीं कहा सकता। देश के जीडीपी में कर की हिस्सेदारी 9-10 फीसदी के स्तर पर ठहरी हुई है। 2018-19 में यह 11 फीसदी के स्तर पर थी। इसे बढ़ाने  की आवश्यकता  है।

अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए कर संरचना में बदलाव की उम्मीद है। कारोबारी जगत टैक्स इनपुट क्रेडिट व्यवस्था फिर लागू करने की मांग कर रहा है। साथ ही प्रदूषण रोकने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों पर टैक्स करने की जायज मांग भी है ताकि लोगो की पेट्रोल डीजल चलित वाहनो पर निर्भरता कम हो। नए उद्यमों को बढ़ावा देने के लिए स्टार्टअप योजना को और आकर्षक बनाना जरूरी  है।

इसके अलावा देश की सीमाओं की रक्षा और तीनो सेनाओं के आधुनिकीकरण के लिए रक्षा बजट में भी वृद्धि   की घोषणा नए बजट में हो सकती है। वित्त मंत्री यह सिद्ध करने की कोशिश करेंगी कि देश की अर्थव्यवस्था 9.2 फीसदी की गति से विकसित होने को तैयार है। 

अब यह वित्त मंत्री की दूरदर्शिता, आर्थिक समझ और कल्पनशीलता पर निर्भर करता है कि वो देश को अर्थ व्यवस्था को कितनी गति देती हैं और न केवल इस साल पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा ( एनडीए) की जीत की नींव कितनी पुख्ता तरीके से रख पाती हैं। 
 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।

केन्द्रीय वित्त एवं कारपोरेट मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन कल 1 फरवरी को जब अपना तीसरा केन्द्रीय बजट पेश कर रही होंगी, तब उनके सामने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए बहुआयामी  चुनौतियां होंगी।

दरअसल, ये चुनौतियां आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक हैं। हालांकि वर्ष 2021-22 में देश की आर्थिक वृद्धि दर 8.3 फीसदी रहने का अनुमान है, जो इसके पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में रही ऋणात्मक दर के तुलना में काफी बेहतर है। लेकिन मोदी सरकार के अपेक्षित लक्ष्य 5 खरब डाॅलर की अर्थव्यवस्था को हासिल करने के लक्ष्य की दृष्टि से अपर्याप्त है।  


निर्मला सीतारमन के सामने चुनौतियां 

राजनीतिक दृष्टि से वित्त मंत्री के सामने पहली बड़ी चुनौती तो यूपी सहित पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में भाजपा को जिताने की नीयत से लोक लुभावन घोषणाओं की है। इसमें पहला किसानों के हित में कुछ ठोस घोषणाएं हो सकती हैं, जिनमें बेहतर कृषि उपज मूल्य, कर्ज के बोझ से दबे किसानों को आर्थिक राहत तथा कृषि आदानों को सस्ता करना शामिल है। 

इधर, बावजूद तमाम कोशिशों के उत्तर प्रदेश और पंजाब के किसानों में तीन विवादित कृषि कानूनों को लेकर सरकार के प्रति नाराजी कम हुई है, ऐसा नहीं लगता। हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसे दो माह पहले ही वापस लेने की घोषणा कर चुके हैं, लेकिन यह सरकार किसान हितैषी है, इसका  सबूत वित्त  मंत्री बजट के माध्यम से कैसे देती हैं, यह देखने की बात है।

दूसरी चुनौती देश करीब 30 करोड़ वेतनभोगी मध्यम वर्ग की है। बढ़ती महंगाई और कम होती आय के मद्देनजर यह वर्ग आयकर में ज्यादा छूट की अपेक्षा कर रहा है। देश में आयकर में ठोस छूट आठ सालों से नहीं मिली है। वित्त मंत्री महिलाओं को आयकर में अतिरिक्त छूट की पुरानी व्यवस्था लागू कर सकती हैं, साथ ही उनसे एक अपेक्षा स्वास्थ्य बीमा तथा होम लोन पर ज्यादा आयकर छूट की है।

कोरोना काल में स्वास्थ्य बीमा का कारोबार काफी बढ़ा है। लेकिन इस पर 18 फीसदी जीएसटी सरकार लेती है, इसे घटाकर 5 फीसदी किया जाना अपेक्षित है ताकि गरीब वर्ग इसका पूरा फायदा उठा सके। इसी तरह आयकर में स्टेंडर्ड डिडक्शन की सीमा 50 हजार से बढ़ाकर 75 हजार रुपये करने की भी उम्मीद है।    

 

मुंबई की एक संस्था ‘पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज़ कंज़्यूमर इकोनॉमी’ (प्राइस) का ताजा सर्वे बताता है कि कोविड महामारी से शहरी गरीबों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ और उनकी आमदनी घट गई, जबकि दूसरी तरफ ज्यादा समृद्ध औपचारिक क्षेत्रों ने तेज आर्थिक  प्रगति की।


अर्थशास्त्र में इस तरह की वृद्धि को अंग्रेजी के K शेप रिकवरी कहा जाता है। वित्त मंत्री के सामने चुनौती यह है कि वह इन छोटी नौकरियां या कारोबार करने वाली की आय को बढ़ाने में कैसे मदद करें। यह मदद सीधी आर्थिक सहायता, आसान कर्ज अथवा कारोबार को बढ़ाने वाली नीतियां लागू कर की जा सकती हैं। 

 

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