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नॉर्ड स्ट्रीम-2 गैस पाइपलाइन: रूसी परियोजना के लिए एंजेला मर्केल ने क्यों दांव पर लगा दी अपनी छवि?

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, बर्लिन
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Wed, 28 Jul 2021 05:21 PM IST

सार

नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन बनाने के लिए समझौता 2002 में आम चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन चांसलर गेरहार्ड श्रोडर ने किया था। उसी चुनाव के बाद मर्केल सत्ता में आईं। लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में कभी इस योजना पर दोबारा विचार नहीं किया…

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जब जर्मनी में आम चुनाव में दो महीने से भी कम का वक्त बचा है, पिछले दिनों जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल की सरकार ने रूस के साथ बनी गैस पाइपलाइन नॉर्ड स्ट्रीम-2 के मुद्दे पर अमेरिका के साथ समझौता कर लिया। इस दौरान अमेरिका और जर्मनी दोनों ने यूक्रेन और पोलैंड सहित दूसरे पूर्वी यूरोपीय देशों के विरोध की पूरी अनदेखी कर दी। जबकि ये आम धारणा है कि इस पाइपलाइन से यूरोप के ऊर्जा क्षेत्र में रूस की मजबूत पकड़ बन जाएगी।

नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन बनाने के लिए समझौता 2002 में आम चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन चांसलर गेरहार्ड श्रोडर ने किया था। उसी चुनाव के बाद मर्केल सत्ता में आईं। लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में कभी इस योजना पर दोबारा विचार नहीं किया। इस बीच अमेरिकी रुकावटों और कई हलकों से विरोध के बावजूद मर्केल सरकार इस परियोजना को आगे बढ़ाने में जुटी रही। अब जबकि दो महीने के अंदर चांसलर पद से उनकी विदाई हो जाएगी, ये परियोजना बन कर लगभग तैयार है।   

जब 2005 में पाइपलाइन के निर्माण के लिए करार हुआ था, तब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन उस पर दस्तखत के लिए खुद बर्लिन आए थे। इस बार जब अमेरिका से जर्मनी का समझौता होने के बाद इस परियोजना के रास्ते से आखिरी रुकावट दूर हो गई, तब पुतिन और मर्केल की फोन पर बातचीत हुई। क्रेमलिन (रूसी राष्ट्रपति के कार्यालय) ने एक बयान में कहा कि इस परियोजना को पूरा करने को लेकर जर्मनी ने जो संकल्प दिखाया है, वह काबिल-ए-तारीफ है। रूस ने कहा है कि इस परियोजना से जर्मनी की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी।

जर्मनी में राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सिर्फ ग्रीन पार्टी को छोड़ कर देश में कोई और बड़ी राजनीतिक ताकत इस परियोजना के खिलाफ नहीं है। जर्मनी का उद्योग क्षेत्र भी इसके पक्ष में रहा है। जर्मनी ने साल 2038 तक कोयले से चलने वाले सभी बिजली संयंत्रों को बंद कर देने का फैसला किया है। ऐसे में इस पाइपलाइन से देश को ऊर्जा का सस्ता और भरोसेमंद स्रोत मिलेगा।

लेकिन पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस परियोजना राजनीतिक और कूटनीतिक पक्ष समस्याग्रस्त हैं। इसे पूरा करने पर अड़े रह कर जर्मनी ने यूरोपीय एकता तोड़ दी है। इस परियोजना से यूक्रेन को खास नुकसान होगा। यूरोपीय देश रूस और यूक्रेन के विवाद में उसे कूटनीतिक समर्थन देते रहे हैं। लेकिन जब आर्थिक स्वार्थ की बात आई, तो जर्मनी ने यूक्रेन के हितों की पूरी अनदेखी कर दी।

दूसरी तरफ अमेरिका के जो बाइडन प्रशासन के रुख पर भी यूरोप में सवाल उठाए गए हैं। आम धारणा बनी है कि एक मजबूत यूरोपीय देश के सामने बाइडेन ने अपनी बुनियादी नीति पर समझौता कर लिया। इससे जहां यूरोप में जर्मनी की निष्ठा संदिग्ध हुई है, वहीं अपने सहयोगी देशों के हितों की रक्षा करने के प्रति बाइडेन प्रशासन की निष्ठा पर भी सवाल खड़े हुए हैं।

जर्मनी में ग्रीन पार्टी ने वादा किया है कि अगर सितंबर में होने वाले आम चुनाव में उसकी जीत हुई, तो वह नॉर्ड स्ट्रीम-2 परियोजना को रद्द कर देगी। लेकिन जानकारों का मानना है कि अमेरिका से जर्मनी के हाल में हुए समझौते के बाद ऐसा करना उसके लिए लगभग नामुमकिन हो गया है। वैसे भी हाल के चुनाव पूर्व जनमत सर्वेक्षणों में ग्रीन पार्टी की लोकप्रियता में गिरावट देखी गई है। ऐसे में ज्यादा संभावना यही है कि मर्केल की क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन के नेतृत्व वाले गठबंधन के हाथ में ही सत्ता बनी रहेगी। मुख्य विपक्षी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी भी इस परियोजना के पक्ष में है। ऐसे इस परियोजना की राह में अब शायद ही कोई चुनौती बची है।

विस्तार

जब जर्मनी में आम चुनाव में दो महीने से भी कम का वक्त बचा है, पिछले दिनों जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल की सरकार ने रूस के साथ बनी गैस पाइपलाइन नॉर्ड स्ट्रीम-2 के मुद्दे पर अमेरिका के साथ समझौता कर लिया। इस दौरान अमेरिका और जर्मनी दोनों ने यूक्रेन और पोलैंड सहित दूसरे पूर्वी यूरोपीय देशों के विरोध की पूरी अनदेखी कर दी। जबकि ये आम धारणा है कि इस पाइपलाइन से यूरोप के ऊर्जा क्षेत्र में रूस की मजबूत पकड़ बन जाएगी।

नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइन बनाने के लिए समझौता 2002 में आम चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन चांसलर गेरहार्ड श्रोडर ने किया था। उसी चुनाव के बाद मर्केल सत्ता में आईं। लेकिन उन्होंने अपने कार्यकाल में कभी इस योजना पर दोबारा विचार नहीं किया। इस बीच अमेरिकी रुकावटों और कई हलकों से विरोध के बावजूद मर्केल सरकार इस परियोजना को आगे बढ़ाने में जुटी रही। अब जबकि दो महीने के अंदर चांसलर पद से उनकी विदाई हो जाएगी, ये परियोजना बन कर लगभग तैयार है।   

जब 2005 में पाइपलाइन के निर्माण के लिए करार हुआ था, तब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन उस पर दस्तखत के लिए खुद बर्लिन आए थे। इस बार जब अमेरिका से जर्मनी का समझौता होने के बाद इस परियोजना के रास्ते से आखिरी रुकावट दूर हो गई, तब पुतिन और मर्केल की फोन पर बातचीत हुई। क्रेमलिन (रूसी राष्ट्रपति के कार्यालय) ने एक बयान में कहा कि इस परियोजना को पूरा करने को लेकर जर्मनी ने जो संकल्प दिखाया है, वह काबिल-ए-तारीफ है। रूस ने कहा है कि इस परियोजना से जर्मनी की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होगी।

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