मरीजों के लिए उपयोगी ये दवाएं राष्ट्रीय आवश्यक औषधि सूची (एनएलईएम) के तहत मूल्य नियंत्रण में रखी जाती हैं। एनपीपीए की संयुक्त निदेशक रश्मि तहिलियानी के अनुसार, उद्योग प्रोत्साहन अैर घरेलू व्यापार विभाग के आर्थिक सलाहकार कार्यालय ने सालाना 10.76 फीसदी वृदि्ध की अनुमति दी है। विशेषज्ञों के अनुसार सूचीबद्ध दवाओं की मूल्यवृद्धि पर हर वर्ष अनुमति दी जाती है।
इन प्रमुख दवाओं पर असर
पैरासिटामोल, एजिथ्रोमाइसिन, सिप्रोफ्लोक्सासिन हाइड्रोक्लोराइड, मेट्रोनिडाजोल, फेनोबार्बिटोने जैसी दवाएं इस सूची में शामिल हैं। गंभीर रूप से कोविड प्रभावित मरीजों की दवाएं भी हैं। कई विटामिन, खून बढ़ाने वाली दवाएं, मिनरल भी इनमें हैं।
पहले 1 से 2 फीसदी होती थी वृद्धि
जानकारों के अनुसार, यह पहली बार है कि सूचीबद्ध दवाओं को सूची से बाहर की दवाओं से ज्यादा महंगा करने की अनुमति दी गई। मूल्य नियंत्रण सूची से बाहर की दवाएं सालाना 10 फीसदी बढ़ाने की अनुमति है। अब तक यह वृद्धि 1 से 2 फीसदी होती थी। 2019 में एनपीपीए ने 2 फीसदी व 2020 में 0.5 फीसदी वृद्धि की अनुमति दी थी।
16% दवाओं पर होगा असर
कुल दवाओं की 16 फीसदी पर मूल्य नियंत्रण है। इनकी कीमत 11 फीसदी तक बढ़ेंगी। गैर-सूचीबद्ध दवाओं के दाम भी 20 फीसदी तक बढ़ाने की मांग फार्मा उद्यमियों ने की है।
इन रोगों में उपयोगी ये दवाएं
30 श्रेणियों में 376 दवाएं रखी गईं। इनमें बुखार, संक्रमण, त्वचा व हृदय रोग, एनीमिया, किडनी रोगों, डायबिटीज व बीपी की दवाएं हैं। एंटी एलर्जिक, विषरोधी, खून पतला करने, कुष्ठ रोग, टीबी, माइग्रेन, पार्किंसन, डिमेंशिया, साइकोथेरैपी, हार्मोन, उदर रोग की दवाएं भी शामिल हैं।
फार्मा उद्यमियों के ये थे तर्क
फार्मा उद्यमियों के अनुसार, दवाओं के कच्चे माल की कीमत 15 से 150 प्रतिशत तक बढ़ी हैं। सिरप, ओरल ड्रॉप्स, संक्रमण में उपयोगी प्रोपलीन ग्लाइकोल, ग्लिसरीन, सॉल्वेंट के दाम 250 प्रतिशत तक बढ़े। परिवहन, पैकेजिंग, रखरखाव भी महंगा हुआ।