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देवसहायम पिल्लई: 18वीं शताब्दी में बने थे हिंदू से ईसाई, अब मिलेगी संत की उपाधि, पोप करेंगे सम्मानित

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, तिरुअनंतपुरम
Published by: मुकेश कुमार झा
Updated Thu, 11 Nov 2021 12:42 PM IST

सार

Devasahayam Pillai : चर्च के अधिकारियों ने बताया कि पोप फ्रांसिस 15 मई 2022 को वेटिकन के सेंट पीटर्स बेसिलिका में पिल्लई को छह अन्य लोगों के साथ संत घोषित करेंगे। इसके साथ ही पिल्लई संत की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले भारतीय आम आदमी बन जाएंगे।

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18वीं शताब्दी में हिंदू से ईसाई बने केरल के देवसहायम पिल्लाई को संत की उपाधि से नवाजा जाएगा। वेटिकन में कांग्रिगेशन फॉर द कॉजेज ऑफ सेंट्स ने यह घोषणा की है। वह भारत के पहले ऐसे आम व्यक्ति होंगे, जिन्हें संत की उपाधि से नवाजा जाएगा। 

चर्च के अधिकारियों ने बताया कि पोप फ्रांसिस 15 मई 2022 को वेटिकन के सेंट पीटर्स बेसिलिका में पिल्लई को छह अन्य लोगों के साथ संत घोषित करेंगे। इसके साथ ही पिल्लई संत की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले भारतीय आम आदमी बन जाएंगे। दरअसल, उन्होंने 1745 में ईसाई धर्म अपनाने के बाद ‘लेजारूस’ नाम रख लिया था। ‘लेजारूस’ का अर्थ ‘देवसहायम’ या ‘देवों की सहायता’ है। 

वेटिकन की तरफ से कहा गया है कि प्रचार करते समय, उन्होंने विशेष रूप से जातिगत मतभेदों के बावजूद सभी लोगों की समानता पर जोर दिया। इससे उच्च वर्गों के प्रति घृणा पैदा हुई और उन्हें 1749 में गिरफ्तार कर लिया गया। बढ़ती कठिनाइयों को सहन करने के बाद जब उन्हें 14 जनवरी 1752 को गोली मार दी गई तो उन्हें शहीद का दर्जा मिला। 

पिल्लई को उनके जन्म के 300 साल बाद दो दिसंबर 2012 को कोट्टार में धन्य घोषित किया गया था। उनका जन्म 23 अप्रैल 1712 को कन्याकुमारी जिले के नट्टलम में एक हिंदू नायर परिवार में हुआ था, जो तत्कालीन त्रावणकोर साम्राज्य का हिस्सा था।

विस्तार

18वीं शताब्दी में हिंदू से ईसाई बने केरल के देवसहायम पिल्लाई को संत की उपाधि से नवाजा जाएगा। वेटिकन में कांग्रिगेशन फॉर द कॉजेज ऑफ सेंट्स ने यह घोषणा की है। वह भारत के पहले ऐसे आम व्यक्ति होंगे, जिन्हें संत की उपाधि से नवाजा जाएगा। 

चर्च के अधिकारियों ने बताया कि पोप फ्रांसिस 15 मई 2022 को वेटिकन के सेंट पीटर्स बेसिलिका में पिल्लई को छह अन्य लोगों के साथ संत घोषित करेंगे। इसके साथ ही पिल्लई संत की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले भारतीय आम आदमी बन जाएंगे। दरअसल, उन्होंने 1745 में ईसाई धर्म अपनाने के बाद ‘लेजारूस’ नाम रख लिया था। ‘लेजारूस’ का अर्थ ‘देवसहायम’ या ‘देवों की सहायता’ है। 

वेटिकन की तरफ से कहा गया है कि प्रचार करते समय, उन्होंने विशेष रूप से जातिगत मतभेदों के बावजूद सभी लोगों की समानता पर जोर दिया। इससे उच्च वर्गों के प्रति घृणा पैदा हुई और उन्हें 1749 में गिरफ्तार कर लिया गया। बढ़ती कठिनाइयों को सहन करने के बाद जब उन्हें 14 जनवरी 1752 को गोली मार दी गई तो उन्हें शहीद का दर्जा मिला। 

पिल्लई को उनके जन्म के 300 साल बाद दो दिसंबर 2012 को कोट्टार में धन्य घोषित किया गया था। उनका जन्म 23 अप्रैल 1712 को कन्याकुमारी जिले के नट्टलम में एक हिंदू नायर परिवार में हुआ था, जो तत्कालीन त्रावणकोर साम्राज्य का हिस्सा था।

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