एजेंसी, मुंबई
Published by: देव कश्यप
Updated Tue, 25 Jan 2022 06:32 AM IST
सार
समिति ने महाराष्ट्र के डीजीपी के पद के लिए आईपीएस अधिकारी हेमंत नागराले, रजनीश सेठ और के वेंकटेशम के नामों की सिफारिश की थी, जो सुबोध जायसवाल के केंद्रीय जांच ब्यूरो में स्थानांतरण के बाद खाली पड़ा है।
ख़बर सुनें
विस्तार
समिति ने महाराष्ट्र के डीजीपी के पद के लिए आईपीएस अधिकारी हेमंत नागराले, रजनीश सेठ और के वेंकटेशम के नामों की सिफारिश की थी, जो सुबोध जायसवाल के केंद्रीय जांच ब्यूरो में स्थानांतरण के बाद खाली पड़ा है। कुंते ने इन नामों के सुझाव पर हस्ताक्षर भी किए, लेकिन आठ नवंबर को यूपीएससी को पत्र लिखकर कहा कि समिति से फैसला लेने में गलती हुई है, समिति को कार्यवाहक डीजीपी संजय पांडे के नाम पर भी विचार करना चाहिए। इसके बाद से यूपीएससी और महाराष्ट्र सरकार में इसे लेकर विवाद चल रहा है। इस बीच हाईकोर्ट में अधिवक्ता दत्ता माने ने एक जनहित याचिका दायर कर यूपीएससी की तरफ से सुझाए गए अधिकारियों में से किसी को महाराष्ट्र सरकार का डीजीपी नियुक्त करने का निर्देश देने की मांग थी।
माने के वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने हाईकोर्ट को बताया कि यूपीएससी से सिफारिशों पर पुनर्विचार करने के लिए कहकर महाराष्ट्र सरकार न केवल स्थायी डीजीपी की नियुक्ति की प्रक्रिया में देरी कर रही है, बल्कि प्रकाश सिंह मामले में पारित सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन भी कर रही है।
चंद्रचूड़ ने दलील देते हुए कहा कि प्रकाश सिंह मामले के फैसले में शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्य का डीजीपी स्थायी तौर पर नियुक्त होना चाहिए, कोई कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त नहीं हो सकता। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि डीजीपी का कार्यकाल निश्चित होना चाहिए। सोमवार को केंद्र सरकार की तरफ से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि नाम सुझाए जा चुके हैं, इनपर पुनर्विचार का नहीं किया जा सकता। वहीं, महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता आशुतोष कुंभाकोणी ने कहा कि कुंते ने नामों पर पुनर्विचार के लिए इसी वजह से कहा, क्योंकि समिति से फैसला लेने में चूक हुई। समिति को कार्यवाहक डीजीपी के पांडे के ग्रेड, मूल्यांकन रिपोर्ट आदि का सही आकलन करना चाहिए।
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि जिस समिति के मुख्य सचिव खुद एक सदस्य थे और सिफारिशों पर सहमत होने के बाद हस्ताक्षर कर रहे हैं, उसे एक सप्ताह बाद गलत कैसे कह सकते हैं। पीठ ने कहा कि नियम साफ है कि चयन समिति फिर से नाम नहीं सुझा सकती। इसके अलावा इस मामले गलती करने का दोष समिति या यूपीएएसी पर नहीं डाला जा सकता।