ऐसा आरोप है कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के मैसूर, दिल्ली और कोटा मंडलों में लगे अकुशल श्रमिकों को लखनऊ में ऐतिहासिक स्थलों के उद्यानों का रखरखाव करते हुए दिखाकर फर्जी बिल जमा कर ठेकेदार ने सरकारी धन की हेराफेरी की। अधिकारी के मुताबिक ठेकेदार को विनीत अग्रवाल, बागवानी सहायक, रेजीडेंसी, लखनऊ; बागवानी एएसआई आगरा मंडल-एक में तैनात उपाधीक्षक पीके चौधरी और सेवानिवृत्त अधिकारी राज कुमार सहित एएसआई अधिकारियों द्वारा कथित तौर पर सहायता प्रदान की गई थी।
उन्होंने बताया कि सिंह को वर्ष 2019-20 के लिए उत्तर प्रदेश में पुरातत्व उद्यानों के रखरखाव के लिए 22 अक्तूबर, 2019 को 2.5 करोड़ रुपये का ठेका दिया गया था और फिर इस ठेके को इसी राशि पर अगले वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया था।
सिकंदरा, राम बाग और फतेहपुर सीकरी में भी हुई धोखाधड़ी
अधिकारी के अनुसार कुशीनगर, आगरा, कानपुर जैसे शहरों में भी उद्यानों के रख-रखाव के लिए इसी तरह के फर्जी बिल जमा किए गए थे, जिसके आधार पर ठेकेदार कुलदीप सिंह द्वारा भारी धनराशि का गबन किया गया। शिकायत, जो अब प्राथमिकी का एक हिस्सा है, में लखनऊ में पुरातात्विक स्थलों के बारे में विशिष्ट विवरण दिया और आरोप लगाया कि आगरा स्थित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के ताजमहल, अकबर के मकबरे के बगीचे, सिकंदरा, राम बाग और फतेहपुर सीकरी में भी इसी तरह की धोखाधड़ी हुई है।
फर्जी मजदूरों की तैनाती दिखा ठेकेदार को लाखों रुपये दिलाए
शिकायत में कहा गया है कि अग्रवाल ने कथित तौर पर फर्जी दस्तावेज बनाने में सिंह की मदद की। इन फर्जी दस्तावेजों में मैसूर मंडल के तहत काम करने वाले सात फर्जी मजदूरों की तैनाती को दिखाया गया है, जिनके नाम मेगवन, मनोकरण, कोमल, कुप्पम्मल, कला के कुप्पन, इलंगोवन और अय्यासामी हैं। इसमें कहा गया है कि एएसआई अधिकारी ने चौधरी और कुमार की मिलीभगत से फर्जी दस्तावेजों का ‘सत्यापन’ किया, जिसके आधार पर सिंह को लाखों रुपये की राशि दी गई।
मजदूरों को एक ही समय में कोटा और लखनऊ में काम करते दिखाया
शिकायत में आरोप लगाया गया है कि इसी तरह, जनवरी 2020 के लिए, दिल्ली मंडल में सूचीबद्ध आठ मजदूरों के नाम पर ‘द रेजीडेंसी’ के रखरखाव संबंधी बिल जारी किए गए थे। अधिकारियों ने कहा कि दो बिलों से पता चला है कि कोटा, राजस्थान के आठ मजदूर एक ही समय में कोटा और द रेजीडेंसी, लखनऊ दोनों स्थानों पर काम कर रहे थे।
