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गुजरात: अहमदाबाद में सीरियल बम ब्लास्ट मामले में आज आ सकता है फैसला, 77 आरोपियों पर चला था मुकदमा

सार

अहमदाबाद शहर में 26 जुलाई, 2008 को 70 मिनट के भीतर हुए 21 बम विस्फोटों में कम से कम 56 लोग मारे गए और 200 से अधिक घायल हो गए थे। पुलिस ने दावा किया था कि प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के गुट इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) से जुड़े लोग विस्फोट में शामिल थे।

सांकेतिक तस्वीर।
– फोटो : सोशल मीडिया

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अहमदाबाद में 2008 में हुए सीरियल बम ब्लास्ट मामले में 13 साल से अधिक समय बाद फैसला आने की संभावना है। अहमदाबाद की एक विशेष अदालत मंगलवार को अपना फैसला सुना सकती है। इस विस्फोट में 56 लोगों की मौत हो गई थी और 78 आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया था।

विशेष लोक अभियोजक अमित पटेल ने कहा कि विशेष न्यायाधीश एआर पटेल ने पिछले साल सितंबर में 13 साल से अधिक पुराने मामले में लगभग चार महीने की सुनवाई के बाद पहली बार फैसले की तारीख मंगलवार (एक फरवरी) तय की थी।

अहमदाबाद शहर में 26 जुलाई, 2008 को 70 मिनट के भीतर हुए 21 बम विस्फोटों में कम से कम 56 लोग मारे गए और 200 से अधिक घायल हो गए थे। पुलिस ने दावा किया था कि प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के गुट इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) से जुड़े लोग विस्फोट में शामिल थे।

आरोप लगाया गया कि इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों ने गुजरात में 2002 के गोधरा दंगों का बदला लेने के लिए विस्फोट की साजिश रची और उन्हें अंजाम दिया, जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोग मारे गए थे।

अहमदाबाद में सिलसिलेवार धमाकों के कुछ दिनों बाद पुलिस ने सूरत के अलग-अलग हिस्सों से बम बरामद किए थे, जिसके बाद अहमदाबाद में 20 और सूरत में 15 प्राथमिकी दर्ज की गई थी। अदालत द्वारा सभी 35 प्राथमिकी को एक में मिलाने के बाद मुकदमा चलाया गया। 78 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ और उनमें से एक के सरकारी गवाह बनने के बाद यह संख्या घटकर 77 हो गई। इस मामले में आठ से नौ आरोपी अब भी फरार हैं।

अहमदाबाद में आतंकी हमलों के एक साल बाद दिसंबर 2009 में लंबी कानूनी कार्यवाही शुरू हुई। 77 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाया गया, जिसके लिए अभियोजन पक्ष ने 1,100 से अधिक गवाहों का परीक्षण किया गया। आरोपियों के खिलाफ हत्या, आपराधिक साजिश और आतंकवाद विरोधी कानून, गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत भी मामला दर्ज किया गया।

विशेष अदालत ने शुरू में सुरक्षा कारणों से साबरमती सेंट्रल जेल के अंदर से मामले की सुनवाई की और बाद में ज्यादातर वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कार्यवाही की गई।जब मुकदमा चल रहा था, तब कुछ आरोपियों ने 2013 में जेल में 213 फीट लंबी सुरंग खोदकर कथित तौर पर भागने की कोशिश की थी। जेल तोड़ने के प्रयास का मुकदमा अभी भी लंबित है।

विस्तार

अहमदाबाद में 2008 में हुए सीरियल बम ब्लास्ट मामले में 13 साल से अधिक समय बाद फैसला आने की संभावना है। अहमदाबाद की एक विशेष अदालत मंगलवार को अपना फैसला सुना सकती है। इस विस्फोट में 56 लोगों की मौत हो गई थी और 78 आरोपियों पर मुकदमा चलाया गया था।

विशेष लोक अभियोजक अमित पटेल ने कहा कि विशेष न्यायाधीश एआर पटेल ने पिछले साल सितंबर में 13 साल से अधिक पुराने मामले में लगभग चार महीने की सुनवाई के बाद पहली बार फैसले की तारीख मंगलवार (एक फरवरी) तय की थी।

अहमदाबाद शहर में 26 जुलाई, 2008 को 70 मिनट के भीतर हुए 21 बम विस्फोटों में कम से कम 56 लोग मारे गए और 200 से अधिक घायल हो गए थे। पुलिस ने दावा किया था कि प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के गुट इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) से जुड़े लोग विस्फोट में शामिल थे।

आरोप लगाया गया कि इंडियन मुजाहिद्दीन के आतंकवादियों ने गुजरात में 2002 के गोधरा दंगों का बदला लेने के लिए विस्फोट की साजिश रची और उन्हें अंजाम दिया, जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोग मारे गए थे।

अहमदाबाद में सिलसिलेवार धमाकों के कुछ दिनों बाद पुलिस ने सूरत के अलग-अलग हिस्सों से बम बरामद किए थे, जिसके बाद अहमदाबाद में 20 और सूरत में 15 प्राथमिकी दर्ज की गई थी। अदालत द्वारा सभी 35 प्राथमिकी को एक में मिलाने के बाद मुकदमा चलाया गया। 78 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ और उनमें से एक के सरकारी गवाह बनने के बाद यह संख्या घटकर 77 हो गई। इस मामले में आठ से नौ आरोपी अब भी फरार हैं।

अहमदाबाद में आतंकी हमलों के एक साल बाद दिसंबर 2009 में लंबी कानूनी कार्यवाही शुरू हुई। 77 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाया गया, जिसके लिए अभियोजन पक्ष ने 1,100 से अधिक गवाहों का परीक्षण किया गया। आरोपियों के खिलाफ हत्या, आपराधिक साजिश और आतंकवाद विरोधी कानून, गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत भी मामला दर्ज किया गया।

विशेष अदालत ने शुरू में सुरक्षा कारणों से साबरमती सेंट्रल जेल के अंदर से मामले की सुनवाई की और बाद में ज्यादातर वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कार्यवाही की गई।जब मुकदमा चल रहा था, तब कुछ आरोपियों ने 2013 में जेल में 213 फीट लंबी सुरंग खोदकर कथित तौर पर भागने की कोशिश की थी। जेल तोड़ने के प्रयास का मुकदमा अभी भी लंबित है।

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