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कानों देखी:  प्रधानमंत्री मोदी ने पिलाई घुट्टी, बंद हुए केशव बाबू के बोल

राख में आग दब गई है। दब क्या गई, दबा दी गई है। अब देखना है कब महत्वाकांक्षा की चिंगारी फिर से शोला बनती है। खबर तो यही है कि सुलगने के लिए अभी भी बस ऑक्सीजन के दर्शन होने का इंतजार है। जी हां, आपने ठीक समझा होगा। बात उत्तर प्रदेश  के उप मुख्यमंत्री  केशव प्रसाद मौर्य की हो रही है। उनकी महत्वाकांक्षा ने फिर कुलांचे भरना शुरू किया तो केन्द्रीय मंत्री अमित शाह को संदेश देना पड़ा। तब तक केशव प्रसाद मौर्य अयोध्या के बाद काशी और फिर मथुरा को हवा दे चुके थे।

उनकी इस हवा में जहां अचानक तमाम कार्यकर्ता सांस लेने लगे वहीं कुछ नेताओं की धड़कनें तेज हो गईं। मिजाज बदलते देखकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुद आगे आना पड़ा। इसी हफ्ते केशव बाबू संसद में प्रधानमंत्री कार्यालय में तलब हुए। मिलना तो केशव बाबू भी चाहते थे। खैर, प्रधानमंत्री ने अपने चिरपरिचित अंदाज में उन्हें समझा दिया है। कोई नहीं चाहता कि उ.प्र. में पटरी की तरफ आ रही गाड़ी एक बार फिर रफ्तार बदले। लिहाजा खबर है कि केशव बाबू भी समझ गए हैं। उन्हें पता चल गया है कि अभी उनके लिए सही वक्त नहीं आया है। अब सही समय कब आएगा और कब वह अपने केशव माधव राग को छेड़ेंगे, ये उन्हें भी नहीं पता। फिलहाल संगठन को मजबूती दे रहे हैं।

वसुंधरा तो परवाह करती नहीं, उ.प्र. के नेताओं का पता नहीं

पिछले चार साल से राजस्थान को लेकर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की चिंता थमने का नाम नहीं ले रही है। पार्टी के पास कोई ऐसा दूसरा राजस्थानी नेता नजर नहीं आ रहा है जो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के समानांतर संगठन में जान फूंक सके। दूसरी तरफ वसुंधरा हैं कि राजस्थान के नेताओं को तो छोडि़ए, दिल्ली के बड़-बड़े नेताओं को भी खास अहमियत नहीं देतीं। न अपना दावा छोड़ती हैं और न शीर्ष नेतृत्व के संगठन के राग से ताल मिलाती हैं। वसुंधरा को मैनेज करने के लिए दिल्ली ने जयपुर में कई प्रयोग भी कर डाले, लेकिन वसुंधरा ठहरीं महारानी। आखिरकार बहुत सोच-समझकर केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जनसभा के माध्यम से संदेश देने की कोशिश की। अमित शाह के इस संदेश में उ.प्र. के महत्वाकांक्षी नेताओं के लिए भी संदेश छिपा था।

इस संदेश के बहाने भाजपा नेतृत्व एक तीर से कई निशाने साधना चाहता है। पहला तो यह कि किसी नए नेता को मजबूती के साथ उभरने का अवसर मिले। दूसरा तीर परिवारवाद की राजनीति पर भी है। वसुंधरा के भतीजे ज्योतिरादित्य केन्द्रीय मंत्री हैं। वसुधंरा की बहन का मध्य प्रदेश में सिक्का चलता है। पुत्र दुष्यंत सांसद हैं। ऐसे में सिंधिया परिवार को अब समझना चाहिए। लेकिन गुलाबी शहर जयपुर के सितारे बताते हैं कि जनाधार से कनेक्ट होकर वसुंधरा ने अभी अपने तेवर नहीं बदले हैं। वह न तो खुलकर पत्ते खोल रही हैं और न ही पकड़ ढीली कर रही हैं। दांव भी सटीक है कि धीरे-धीरे चुनाव का समय नजदीक आए। देखिए अब आगे क्या होता है।

तेजस्वी की शादी में अखिलेश को लालू ने बगल में बिठाया

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बेटे और पार्टी के अध्यक्ष तेजस्वी यादव की शादी थी। शादी का कार्यक्रम बेहद गोपनीय और चुनिंदा मेहमानों के बीच में ही संपन्न हुआ। देशी ठहाके और स्वाद वाले लालू के लिए छोटे बेटे की शादी दिल्ली में करने की रजामंदी देना थोड़ा मुश्किल था। इसका एक बड़ा कारण उनकी होने वाली दुल्हन का ईसाई होना था। लेकिन तेजस्वी की जिद के आगे लालू और राबड़ी को झुकना पड़ा। तेजस्वी भी न केवल पुरानी दोस्त से शादी की जिद पकड़ बैठे थे, बल्कि आए दिन दिल्ली में डेरा डाले पड़े रहते थे। शादी का कार्यक्रम बड़ी बेटी मीसा भारती के सैनिक फार्म हाउस में संपन्न हुआ और इसे राजनीतिक दलों तथा भीड़ से दूर रखा गया। हालांकि लालू प्रसाद के रिश्तेदार और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव आमंत्रित थे। व्यस्त चुनाव प्रचार के बीच समय निकालकर अखिलेश आए भी और लालू प्रसाद ने उन्हें अपने बगल में बिठाया। कुशल क्षेम पूछा। आगे आप खुद समझ सकते हैं कि क्या हुआ होगा। खबरी तो बस इतना ही कह सकता है कि अखिलेश को लालू ने विजयी भव का आशीर्वाद दे दिया है।

शोक के माहौल में टिकैत विरोधी नारे… 

देश ने अपने पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत को हेलीकाप्टर हादसे में खो दिया है। यह सबके लिए गमगीन होने का समय था। तमाम सैन्य अफसर, अवकाश प्राप्त अधिकारी सब जनरल को आखिरी विदाई देने के लिए उनके आवास पर पहुंच रहे थे। केन्द्र सरकार की तरफ से भी कामकाज का दिन होने के कारण सभी मंत्रालयों में शीर्ष अधिकारियों से अपना धर्म निभाने की अपेक्षा की गई थी। सबकुछ सुचारु तरीके से चल रहा था। इसी दौरान किसान नेता, भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत कुछ लोगों के साथ श्रद्धांजलि देने पहुंच गए। टिकैत के आते ही वहां मौजूद कुछ लोगों ने मुर्दाबाद का नारा लगाने की योजना बनाई। देखते-देखते मुर्दाबाद, टिकैत…डकैत सबका नारा लगने लगा। नारे की आवाज कुछ पूर्व और वर्तमान सैन्य अधिकारियों के कान में भी पड़ी। एक पूर्व मेजर जनरल को भी ऐसे गमगीन समय में इस तरह का नारा लगाने वालों की मंशा समझ में नहीं आई। उन्होंने नारा लगाने वाले लोगों से कुछ अपील भी करनी चाही तो किसी ने ध्यान नहीं दिया। अंत में ऐसे राष्ट्रवाद पर लानत करार देते हुए चुपचाप चले गए।

पंजाब में कांग्रेस का क्या होगा?

पंजाब को लेकर कांग्रेस की चिंता खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। इस चिंता को पंजाब के प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू रह रहकर बढ़ा देते हैं। सिद्धू दिल्ली में सबकुछ वादा करके जाते हैं, लेकिन चंडीगढ़ पहुंचते ही सबकुछ भूल जाते हैं। सिद्धू के सामानांतर कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अपने मुख्यमंत्री चन्नी से खुश चल रहा है। दूसरे पार्टी की निगाह भी अपने नेताओं पर काफी बनी हुई है। तमाम नेताओं के पर गिनने के बाद भी अभी पार्टी को अपने बागियों का ठीक-ठीक अंदाजा नहीं हो पा रहा है। अपने सांसद मनीष तिवारी से लेकर पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ को भी साधने में पार्टी के नेता लग गए हैं। पार्टी हालात की गंभीरता को देखकर फिर अंबिका सोनी को बड़ी जिम्मेदारी दे रही है। फिर भी कैप्टन अमरिंदर सिंह की कांग्रेस को डैमेज करने की कोशिशें अभी भी हैरान कर रही हैं। खबर है कि अब राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी खुद पंजाब के हर डेवलपमेंट पर सीधे नजर रख रही हैं। 

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