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ओमिक्रॉन: आत्मसंतुष्टि इस जोखिम का विकल्प नहीं

यूनानी वर्णमाला निरंतर हमारे जीवन को झकझोर रही है और आकार दे रही है। फिलहाल इस भाषा का शब्द ओमिक्रॉन चर्चा में है। यह कोरोना वायरस के नए चिंताजनक वैरिएंट का नाम है। इसे पहली बार बोत्सवाना और दक्षिण अफ्रीका में वहां के वैज्ञानिकों द्वारा खोजा गया था, जो अब दुनिया के 57 देशों में फैल गया है और हमारे देश में भी पहुंच गया है। भारत में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली समेत कई राज्यों में फैले ओमिक्रॉन के लगभग दो दर्जन मामले सामने आए हैं। ओमिक्रॉन के देश में सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में दर्ज किए गए हैं। ओमिक्रॉन उन लोगों में भी पाया गया है, जिन्होंने हाल में अंतरराष्ट्रीय यात्रा नहीं की है। 

विश्व स्वास्थ्य संगठन दुनिया भर के नागरिकों से अपील कर रहा है कि घबराएं नहीं। उसका कहना है कि ओमिक्रॉन वैरिएंट के कारण होने वाली बीमारी की गंभीरता का आकलन करने और यह जानने के लिए, कि क्या इसके म्यूटेशन से वैक्सीन से उत्पन्न प्रतिरक्षा घट सकती है, और ज्यादा आंकड़े की जरूरत है। लेकिन हम अभी इतना जानते हैं कि यह नया वैरिएंट तेजी से फैलता है। भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए सख्त कदम उठाए हैं, खासकर उन लोगों के लिए जो ओमिक्रॉन प्रभावित देशों से आ रहे हैं, जिन्हें खतरनाक जोखिम वाले देशों की श्रेणी में रखा गया है। लेकिन यह भी उतना ही स्पष्ट है कि वैश्विक वैक्सीन कवरेज का विस्तार करना महत्वपूर्ण है। अच्छी तरह से जुड़ी इस दुनिया में लाखों लोग बिना टीका लगाए हुए हैं, जो नए वैरिएंट को संभव व अपरिहार्य बनाते हैं। टीकों की आपूर्ति बढ़ाने से नए वैरिएंट को रोकने में मदद मिलेगी। अब भी विकासशील दुनिया के एक बड़े हिस्से में टीके आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। गरीब देशों में आबादी के एक मामूली से हिस्से को टीका लगाया गया है। यदि दुनिया भर में लाखों लोग बिना टीकाकरण के रहते हैं और वायरस का म्यूटेशन होता है, तो नए वैरिएंट के फैलने की आशंका है, जिसके चलते वैक्सीन निष्पक्षता हमारे समय का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। 

हम फिलहाल जो स्थिति देख रहे हैं और आगे भी नए वैरिएंट का प्रसार देख सकते हैं, उसका मुख्य कारण दुनिया में वैक्सीन निष्पक्षता का अभाव है। वर्ष 2020 में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने 60 से अधिक अन्य विकासशील देशों के समर्थन से वैक्सीन पेटेंट और अन्य बौद्धिक संपदा को अस्थायी रूप से माफ करने का प्रस्ताव रखा था, ताकि विकासशील देश अपने स्वयं के टीके बना सकें और टीकों की आपूर्ति का विस्तार कर सकें। इसे ट्रिप्स (बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार-संबंधी पहलू) छूट कहा जाता है, जो टीकों के समान वितरण को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। लेकिन यह अब तक साकार नहीं हो पाया है। बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनियों और कई अमीर देशों ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए तर्क दिया कि यह दवा निवेश को हतोत्साहित कर सकता है। हम भाग्यशाली हैं कि हमारे पास स्वदेशी वैक्सीन निर्माता हैं और टीकों की आपूर्ति अभी कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, जैसा कि अधिकांश विकासशील देशों में है।

संभावित तीसरी लहर के बारे में बढ़ती चिंताओं के बीच यह एक अच्छी खबर है कि हमारे देश की 50 फीसदी से अधिक वयस्क आबादी को कोविड-19 के खिलाफ टीका लग गया है और करीब 84.8 फीसदी वयस्क आबादी को कोविड-19 टीके की पहली  खुराक मिल चुकी है। लेकिन ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। महामारी वैज्ञानिकों का कहना है कि टीका कवरेज को दुर्गम क्षेत्रों तक पहुंचाना और अधिकांश आबादी को कोविड टीके की दो खुराक लगाना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। एक बार इसके पूरा हो जाने पर भारत को इससे दुनिया भर में वैक्सीन अन्याय को खत्म करने में केंद्रीय भूमिका निभाने में मदद मिलेगी। 

तिरुवनंतपुरम स्थित श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज ऐंड टेक्नोलॉजी में अच्युत मेनन सेंटर ऑफ हेल्थ साइंस स्टडीज के प्रोफेसर राखल गायतोंडे बताते हैं कि कई कारणों से लोगों में टीके को लेकर हिचकिचाहट है। दूसरी लहर के चरम के बाद जबसे नए दैनिक मामले, अस्पतालों में भर्ती मरीजों की संख्या और कोविड से होने वाली मौतों में कमी आई है, बहुत से लोग आत्मसंतुष्ट हो गए हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अब इस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है। अन्य लोगों को इसके दुष्प्रभाव के बारे में संदेह है और जैसा कि गायतोंडे बताते हैं, अफवाह फैलाने वाले इन सार्वजनिक संदेशों से सफलतापूर्वक निपटा नहीं गया है। फिर अत्यधिक दबाव वाली स्वास्थ्य प्रणाली का भी मुद्दा है, जहां हाल के दिनों में वैक्सीन की वकालत हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं थी। इसके अलावा देश में वैक्सीन-विरोधी लोगों का भी एक छोटा-सा समूह है, जो वैश्विक वैक्सीन-विरोधी आंदोलन से प्रभावित है। इन सबसे निपटना होगा। इसके अलावा कोविड संक्रमण से संबंधित निगरानी प्रणाली को मजबूत किया जाना जरूरी है। लापता संक्रमण वाले क्षेत्रों के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। 

इन क्षेत्रों की मजबूत समीक्षा और सख्त निगरानी की जानी चाहिए, ताकि स्वास्थ्य तंत्र उन क्षेत्रों को पहचान सके और आवश्यक सुधार कर सके। बड़े पैमाने पर अनुसंधान अन्य प्रयासों का पूरक होना चाहिए। इनमें टीकों के संयोजन की प्रभावशीलता, सभी लोगों में सुरक्षा की अवधि और बच्चों में टीके की प्रभावकारिता का आकलन करना शामिल है। कोविड-19 के टीके संक्रमण से हमारी रक्षा नहीं करते, बल्कि ये हमें बीमारी की गंभीरता से बचाते हैं और पूरी तरह सुरक्षा कोविड टीके की दो खुराक लेने से ही हो सकती है। आने वाले दिनों में, केंद्र और राज्य सरकारों को लगातार बढ़ते हुए टीके के कवरेज के बावजूद पूरी तरह से टीकाकरण का प्रतिशत बढ़ाने के लिए सभी अड़चनों को हटाने की जरूरत है। और हमें उन लोगों को टीके लगवाने की खातिर मनाने के लिए बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य संदेश की आवश्यकता है, जो अब भी टीका लेने में हिचकिचा रहे हैं। डर या  आत्मसंतुष्टि इस जोखिम का विकल्प नहीं है।

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