वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, वियना
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Mon, 24 Jan 2022 06:12 PM IST
सार
विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन कर चीन लगातार ईरान से तेल का आयात कर रहा है। अगर परमाणु समझौता होने की वजह से ईरान के ऊपर से अमेरिकी प्रतिबंध हट जाते हैं, तो उसके लिए ऐसा करना और आसान हो जाएगा। उस हाल में पश्चिम एशिया में चीन का कूटनीतिक दखल और बढ़ेगा…
ईरान परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने के लिए यहां चल रही बातचीत एक कठिन दौर में पहुंच गई है। ईरान की समाचार एजेंसी इरना ने एक रिपोर्ट में कहा है- ‘बातचीत अब बारीक ब्योरे के दौर में पहुंच गई है। यह बातचीत का सबसे कठिन हिस्सा है।’ ये बातचीत बीते सोमवार को फिर से शुरू हुई थी।
अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक समझौते को पुनर्जीवित करने के रास्ते में ईरान की एक मांग सबसे बड़ी बाधा बन गई है। अखबार ने वार्ताकारों के हवाले से बताया है कि ईरान अमेरिका से इस बात की गारंटी मांग रहा है कि वह फिर कभी समझौते से बाहर नहीं निकलेगा और दोबारा ईरान पर प्रतिबंध नहीं लगाएगा। 2015 में हुए परमाणु समझौते से 2017 में अमेरिका बाहर निकल गया था और उसने ईरान पर फिर से सख्त प्रतिबंध लगा दिए थे। उसके बाद ईरान ने भी समझौते में किए अपने वादों से हटना शुरू कर दिया था।
छह महीने पहले वियना में शुरू हुई थी वार्ता
समझौते को फिर से जीवित करने के लिए बातचीत छह महीने पहले वियना में शुरू हुई थी। इस बातचीत में अमेरिका और ईरान के अलावा चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस, जर्मनी और यूरोपियन यूनियन शामिल हैं। ईरान ने सीधे अमेरिका से बातचीत करने से इनकार कर रखा है। इसीलिए यहां सारी बातचीत यूरोपीय, रूसी और चीनी वार्ताकारों की मध्यस्थता से हो रही है। बताया जाता है कि इससे इन वार्ताओं में चीन को अपनी एक खास भूमिका बनाने का अवसर मिला है।
चीनी मीडिया से बातचीत में वियना वार्ता में शामिल चीन के दूत वांग चुन ने कहा है कि चीन इन वार्ताओं में ‘अनूठा और रचनात्मक’ रोल निभा रहा है। अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक भी इस बात से सहमत हैं कि वियना वार्ता चीन के लिए लाभकारी साबित हो रही है। पेरिस स्थित एशिया सेंटर में चीन विशेषज्ञ ज्यां फ्रांक्वा दि मेग्लियो ने फ्रांस के टीवी चैनल फ्रांस-24 से कहा- “चीन की दिलचस्पी इसमें है कि ये समझौता जल्द से जल्द हो जाए। इससे उसे कच्चे तेल के नए स्रोत ढूंढने में मदद मिलेगी। साथ ही ईरान से उसके भू-राजनीतिक संबंध तब और ज्यादा भी मजबूत हो जाएंगे।”
पश्चिम एशिया में पहुंच बढ़ाना चाहता है चीन
विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन कर चीन लगातार ईरान से तेल का आयात कर रहा है। अगर परमाणु समझौता होने की वजह से ईरान के ऊपर से अमेरिकी प्रतिबंध हट जाते हैं, तो उसके लिए ऐसा करना और आसान हो जाएगा। उस हाल में पश्चिम एशिया में चीन का कूटनीतिक दखल और बढ़ेगा। चीन इसी कोशिश में जुटा हुआ है।
पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि पश्चिम एशिया संबंधी मामलों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चर्चा और मतदान के दौरान हाल में चीन ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। ईरान और सीरिया के मसलों पर उसने रूस के साथ मिल कर वहां चर्चाओं को खास दिशा देने की कोशिश की है। हाल के महीनों में चीन और ईरान के संबंध एक नई ऊंचाई पर पहुंचे हैं। दोनों देशों के बीच 25 साल का द्विपक्षीय सहभागिता समझौता अमल में आ गया है। उधर चीन, रूस और ईरान की नौ सेनाओं ने साझा अभ्यास किए हैं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि वियना वार्ताओं में चीन की बढ़ती सक्रियता को इस पूरी पृष्ठभूमि में देखने की जरूरत है।
विस्तार
ईरान परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने के लिए यहां चल रही बातचीत एक कठिन दौर में पहुंच गई है। ईरान की समाचार एजेंसी इरना ने एक रिपोर्ट में कहा है- ‘बातचीत अब बारीक ब्योरे के दौर में पहुंच गई है। यह बातचीत का सबसे कठिन हिस्सा है।’ ये बातचीत बीते सोमवार को फिर से शुरू हुई थी।
अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक समझौते को पुनर्जीवित करने के रास्ते में ईरान की एक मांग सबसे बड़ी बाधा बन गई है। अखबार ने वार्ताकारों के हवाले से बताया है कि ईरान अमेरिका से इस बात की गारंटी मांग रहा है कि वह फिर कभी समझौते से बाहर नहीं निकलेगा और दोबारा ईरान पर प्रतिबंध नहीं लगाएगा। 2015 में हुए परमाणु समझौते से 2017 में अमेरिका बाहर निकल गया था और उसने ईरान पर फिर से सख्त प्रतिबंध लगा दिए थे। उसके बाद ईरान ने भी समझौते में किए अपने वादों से हटना शुरू कर दिया था।
छह महीने पहले वियना में शुरू हुई थी वार्ता
समझौते को फिर से जीवित करने के लिए बातचीत छह महीने पहले वियना में शुरू हुई थी। इस बातचीत में अमेरिका और ईरान के अलावा चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस, जर्मनी और यूरोपियन यूनियन शामिल हैं। ईरान ने सीधे अमेरिका से बातचीत करने से इनकार कर रखा है। इसीलिए यहां सारी बातचीत यूरोपीय, रूसी और चीनी वार्ताकारों की मध्यस्थता से हो रही है। बताया जाता है कि इससे इन वार्ताओं में चीन को अपनी एक खास भूमिका बनाने का अवसर मिला है।
चीनी मीडिया से बातचीत में वियना वार्ता में शामिल चीन के दूत वांग चुन ने कहा है कि चीन इन वार्ताओं में ‘अनूठा और रचनात्मक’ रोल निभा रहा है। अंतरराष्ट्रीय विश्लेषक भी इस बात से सहमत हैं कि वियना वार्ता चीन के लिए लाभकारी साबित हो रही है। पेरिस स्थित एशिया सेंटर में चीन विशेषज्ञ ज्यां फ्रांक्वा दि मेग्लियो ने फ्रांस के टीवी चैनल फ्रांस-24 से कहा- “चीन की दिलचस्पी इसमें है कि ये समझौता जल्द से जल्द हो जाए। इससे उसे कच्चे तेल के नए स्रोत ढूंढने में मदद मिलेगी। साथ ही ईरान से उसके भू-राजनीतिक संबंध तब और ज्यादा भी मजबूत हो जाएंगे।”
पश्चिम एशिया में पहुंच बढ़ाना चाहता है चीन
विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन कर चीन लगातार ईरान से तेल का आयात कर रहा है। अगर परमाणु समझौता होने की वजह से ईरान के ऊपर से अमेरिकी प्रतिबंध हट जाते हैं, तो उसके लिए ऐसा करना और आसान हो जाएगा। उस हाल में पश्चिम एशिया में चीन का कूटनीतिक दखल और बढ़ेगा। चीन इसी कोशिश में जुटा हुआ है।
पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि पश्चिम एशिया संबंधी मामलों पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चर्चा और मतदान के दौरान हाल में चीन ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। ईरान और सीरिया के मसलों पर उसने रूस के साथ मिल कर वहां चर्चाओं को खास दिशा देने की कोशिश की है। हाल के महीनों में चीन और ईरान के संबंध एक नई ऊंचाई पर पहुंचे हैं। दोनों देशों के बीच 25 साल का द्विपक्षीय सहभागिता समझौता अमल में आ गया है। उधर चीन, रूस और ईरान की नौ सेनाओं ने साझा अभ्यास किए हैं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि वियना वार्ताओं में चीन की बढ़ती सक्रियता को इस पूरी पृष्ठभूमि में देखने की जरूरत है।
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