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ईयू को झटका: ओपेक ने रूस से तेल-गैस आयात रोकने की मंशा पर फेरा पानी, कहा- इसका कोई विकल्प नहीं

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, ब्रसेल्स
Published by: संजीव कुमार झा
Updated Wed, 13 Apr 2022 12:13 PM IST

सार

ओपेक के महासचिव मोहम्मद बारकिन्डो ने ईयू अधिकारियों को अपनी राय सोमवार को बताई। उन्होंने साफ कहा- अगर रूस से तेल का आयात रोका गया, तो उतनी बड़ी मात्रा में उसकी किसी और स्रोत से भरपाई करना संभव नहीं होगा।

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तेल उत्पादक देशों के संगठन- ओपेक ने यूरोप की चिंता बढ़ा दी है। उसने दो टूक कह दिया है कि रूसी कच्चे तेल का कोई विकल्प नहीं है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक ओपेक की ये राय सामने आने के बाद रूस से कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का आयात तुरंत रोकने की अपनी मंशा पर यूरोपियन यूनियन (ईयू) को पुनर्विचार करना पड़ सकता है। 

ओपेक के महासचिव मोहम्मद बारकिन्डो ने ईयू अधिकारियों को अपनी राय सोमवार को बताई। उन्होंने साफ कहा- अगर रूस से तेल का आयात रोका गया, तो उतनी बड़ी मात्रा में उसकी किसी और स्रोत से भरपाई करना संभव नहीं होगा। रूस से प्रति दिन सात करोड़ बैरल कच्चे तेल का निर्यात होता है। यूक्रेन युद्ध के कारण अमेरिका ने रूस से तेल का आयात रोक दिया है। उसने ईयू पर भी ऐसा करने का दबाव बना रखा है। ईयू के सदस्य देशों ने नेताओं ने ऐसा करने का इरादा जताया है। वे रूसी तेल का विकल्प ढूंढ रहे हैं। इसी कोशिश में उन्होंने ओपेक से संपर्क किया था। लेकिन वहां से उन्हें निराशाजनक जवाब मिला है।

बारकिन्डो ने ईयू नेताओं को बताया कि विश्व बाजार में ईंधन के दाम में मौजूदा उतार-चढ़ाव गैर- बुनियादी कारणों से है। ये वजहें ओपेक के नियंत्रण में नहीं हैं। इसलिए यह ईयू की जिम्मेदारी है कि अपने यहां ऊर्जा के स्रोत बदलने के मामले में वह ‘यथार्थवादी’ नजरिया अपनाए।

अमेरिका के अलावा ब्रिटेन भी रूस से तेल और गैस मंगाने पर रोक लगा चुका है। लेकिन ईयू अभी तक ऐसा फैसला नहीं कर पाया है। ईयू देश अपने यहां तेल और गैस की जरूरतों के लिए रूस पर अत्यधिक निर्भर है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर अचानक रूस से तेल और गैस का आयात रोका गया, तो उसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। खास कर जर्मनी में आशंका जताई गई है कि वैसी हालत में पूरा कारखाना उद्योग थम जाएगा। उधर ऑस्ट्रिया की ऊर्जा कंपनी ओएमवी ने साफ कहा है कि ऑस्ट्रिया के लिए रूस से तेल की खरीदारी रोकना असंभव है।

अमेरिका ने कहा है कि रूस से आयात रोकने पर यूरोप में एलएनजी (लिक्विफाइड नेचुरल गैस) की होने वाली कमी की वह पूर्ति करेगा। लेकिन इस राह में व्यावहारिक दिक्कतें हैं। मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि यूरोप के ज्यादातर एलएनजी टर्मिनल अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर रहे हैं। उनके पास अतिरिक्त ईंधन के भंडारण की क्षमता नहीं है। इस संकट के बीच यूरोपीय देशों में अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को विकसित करने पर चर्चा चल रही है। लेकिन यह एक दूरगामी योजना है।

इन हकीकतों के बावजूद पिछले हफ्ते यूरोपीय संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर रूसी तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला, और परमाणु ऊर्जा के आयात पर तुरंत रोक लगाने की मांग की। मगर ईयू के सदस्य कुछ देशों ने इसका पुरजोर विरोध किया है। हंगरी और स्लोवाकिया ने साफ कहा है कि वे अपनी जनता के हितों को चोट पहुंचाते हुए ऐसा कदम नहीं उठाएंगे। जबकि कुछ देशों ने अपने नागरिकों से दिक्कत झेलने के लिए तैयार रहने की अपील की है।

विस्तार

तेल उत्पादक देशों के संगठन- ओपेक ने यूरोप की चिंता बढ़ा दी है। उसने दो टूक कह दिया है कि रूसी कच्चे तेल का कोई विकल्प नहीं है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक ओपेक की ये राय सामने आने के बाद रूस से कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस का आयात तुरंत रोकने की अपनी मंशा पर यूरोपियन यूनियन (ईयू) को पुनर्विचार करना पड़ सकता है। 

ओपेक के महासचिव मोहम्मद बारकिन्डो ने ईयू अधिकारियों को अपनी राय सोमवार को बताई। उन्होंने साफ कहा- अगर रूस से तेल का आयात रोका गया, तो उतनी बड़ी मात्रा में उसकी किसी और स्रोत से भरपाई करना संभव नहीं होगा। रूस से प्रति दिन सात करोड़ बैरल कच्चे तेल का निर्यात होता है। यूक्रेन युद्ध के कारण अमेरिका ने रूस से तेल का आयात रोक दिया है। उसने ईयू पर भी ऐसा करने का दबाव बना रखा है। ईयू के सदस्य देशों ने नेताओं ने ऐसा करने का इरादा जताया है। वे रूसी तेल का विकल्प ढूंढ रहे हैं। इसी कोशिश में उन्होंने ओपेक से संपर्क किया था। लेकिन वहां से उन्हें निराशाजनक जवाब मिला है।

बारकिन्डो ने ईयू नेताओं को बताया कि विश्व बाजार में ईंधन के दाम में मौजूदा उतार-चढ़ाव गैर- बुनियादी कारणों से है। ये वजहें ओपेक के नियंत्रण में नहीं हैं। इसलिए यह ईयू की जिम्मेदारी है कि अपने यहां ऊर्जा के स्रोत बदलने के मामले में वह ‘यथार्थवादी’ नजरिया अपनाए।

अमेरिका के अलावा ब्रिटेन भी रूस से तेल और गैस मंगाने पर रोक लगा चुका है। लेकिन ईयू अभी तक ऐसा फैसला नहीं कर पाया है। ईयू देश अपने यहां तेल और गैस की जरूरतों के लिए रूस पर अत्यधिक निर्भर है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर अचानक रूस से तेल और गैस का आयात रोका गया, तो उसके विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं। खास कर जर्मनी में आशंका जताई गई है कि वैसी हालत में पूरा कारखाना उद्योग थम जाएगा। उधर ऑस्ट्रिया की ऊर्जा कंपनी ओएमवी ने साफ कहा है कि ऑस्ट्रिया के लिए रूस से तेल की खरीदारी रोकना असंभव है।

अमेरिका ने कहा है कि रूस से आयात रोकने पर यूरोप में एलएनजी (लिक्विफाइड नेचुरल गैस) की होने वाली कमी की वह पूर्ति करेगा। लेकिन इस राह में व्यावहारिक दिक्कतें हैं। मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि यूरोप के ज्यादातर एलएनजी टर्मिनल अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर रहे हैं। उनके पास अतिरिक्त ईंधन के भंडारण की क्षमता नहीं है। इस संकट के बीच यूरोपीय देशों में अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को विकसित करने पर चर्चा चल रही है। लेकिन यह एक दूरगामी योजना है।

इन हकीकतों के बावजूद पिछले हफ्ते यूरोपीय संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर रूसी तेल, प्राकृतिक गैस, कोयला, और परमाणु ऊर्जा के आयात पर तुरंत रोक लगाने की मांग की। मगर ईयू के सदस्य कुछ देशों ने इसका पुरजोर विरोध किया है। हंगरी और स्लोवाकिया ने साफ कहा है कि वे अपनी जनता के हितों को चोट पहुंचाते हुए ऐसा कदम नहीं उठाएंगे। जबकि कुछ देशों ने अपने नागरिकों से दिक्कत झेलने के लिए तैयार रहने की अपील की है।

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