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आइसलैंडः चार दिन के कार्य सप्ताह के प्रयोग का कैसा रहा अनुभव, दुनियाभर में हो रही चर्चा

आइसलैंड दुनिया के सबसे छोटे देशों में एक है, लेकिन वहां हुए एक प्रयोग का अनुभव जानने में दुनिया ने गहरी दिलचस्पी ली है। वहां बिना तनख्वाह काटे चार दिन के कार्य सप्ताह का प्रयोग किया गया। अब उसके अनुभवों की समीक्षा की जा रही है, जिसकी चर्चा दुनिया भर में है। ये प्रयोग फिलहाल पब्लिक सेक्टर में किया गया। प्रयोग का पहला अनुभव यह रहा है कि कर्मचारियों के सप्ताह में चार ही दिन काम करने से कंपनी की कुल उत्पादकता में कोई गिरावट नहीं आई।

आइसलैंड का प्रयोग वहां की कुल कामकाजी आबादी के सिर्फ 1.3 प्रतिशत हिस्से पर किया गया। ब्रिटिश अखबार द फाइनेंशियल टाइम्स में छपे एक विश्लेषण में कहा गया है कि हालांकि ज्यादातर कंपनियों के बॉस अपने कर्मचारियों से अधिक से अधिक काम कराना चाहते हैं, लेकिन आइसलैंड के प्रयोग से सामने आया कि कर्मचारी अगर अधिक स्वस्थ और खुश हों, तो उसका फायदा कंपनी को ही मिलता है।

चार साल चला यह प्रयोग
आइसलैंड में ये प्रयोग चार साल तक चला। आइसलैंड के एनजीओ अल्दा और ब्रिटिश थिंक टैंक ऑटोनोमी की एक रिपोर्ट के मुताबिक प्रयोग के अच्छे अनुभव को देखते हुए आइसलैंड में पब्लिक सेक्टर के 86 फीसदी कर्मचारियों के कामकाज के घंटों में कटौती की योजना पेश की गई है। कुछ जगहों पर कर्मचारियों को ये अधिकार दिया गया है कि वे चाहें तो कम घंटे काम करें।

न्यूजीलैंड में प्रयोग शुरू करने की तैयारी
उधर प्राइवेट सेक्टर की कंपनी यूनीलिवर और क्राउडफंडिग प्लैटफॉर्म-किकस्टार्टर अब न्यूजीलैंड में चार दिन का कार्य सप्ताह लागू करने की संभावना पर स्टडी कर रहे हैं। उनका इरादा ऐसा अमेरिका में भी करने का है। पहले फ्रांस में भी ऐसी योजना बनाई गई थी, लेकिन फ्रांस सरकार ने उस पर आगे ना बढ़ने का फैसला किया।

धनी देशों के संगठन ऑर्गनाइडेशन फॉर इकॉनमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट (ओईसीडी) के एक अध्ययन के मुताबिक इस बात के ठोस सबूत हैं कि अगर कामकाज के घंटे कम रहते हैं, तो उत्पादकता बढ़ती है। नॉर्वे में हुए प्रयोग का भी ऐसा ही तजुर्बा रहा है। इसके बावजूद ज्यादातर कंपनियां अभी चार दिन का कार्य सप्ताह लागू करने के लिए तैयार नहीं हैं। 

बड़ी कंपनियों के प्रबंधक ऐसी योजना का यह कह कर कड़ा विरोध करते हैं कि इसकी वजह से उन्हें अधिक संख्या में कर्मचारियों को नौकरी पर रखना होगा। लेकिन नॉर्वे और आइसलैंड का अनुभव रहा है कि चार दिन के कार्य सप्ताह के कारण कुछ विभागों में नए कर्मचारी रखने की जरूरत पड़ी, लेकिन कुल इस पर बढ़ा खर्च मामली ही रहा।

नौकरी के लिए नए अवसर पैदा होंगे
ब्रिटिश थिंक टैंक ऑटोनोमी ने कहा है कि अगर ब्रिटेन अपने यहां इस योजना को लागू करे, तो उसे भी इसका लाभ मिल सकता है। इससे नौकरियों के लिए नए मौके भी पैदा होंगे, जो इस योजना का एक अतिरिक्त लाभ होगा। 

ऑटोनोमी के मुताबिक आइसलैंड जैसे छोटे देश में अगर पब्लिक सेक्टर में सप्ताह में 32 घंटे काम करने का सिस्टम पूरी तरह लागू कर दिया जाए, तो वहां नौकरियों के पांच लाख नए अवसर पैदा होंगे। उससे पे-रोल यानी कर्मचारियों के वेतन पर होने वाले खर्च में छह फीसदी की बढ़ोतरी होगी। लेकिन दूसरे क्षेत्रों में उसे फायदे दर्ज होंगे।

डिलाइट के मुताबिक ब्रिटेन में योजना लागू हुई तो इतना लाभ
ऑटोनोमी के मुताबिक इस योजना से एक तरफ उत्पादकता बढ़ेगी। दूसरी तरफ थकान के कारण कर्मचारियों में होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के इलाज पर होने वाला खर्च घटेगा। बहुराष्ट्रीय प्रोफेशनल सर्विसेज नेटवर्क-डिलॉइट के एक अध्ययन के मुताबिक ब्रिटेन में ये योजना लागू होने पर कंपनियों को असल में 42 से 45 अरब पाउंड तक का लाभ हो सकता है। 

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