न्यूज डेस्क, अमर उजाला, गुवाहाटी
Published by: गौरव पाण्डेय
Updated Sun, 23 Jan 2022 09:43 PM IST
सार
असम में पुलिस की गोलीबारी में पूर्व छात्र नेता के घायल होने की घटना को लेकर पुलिस ने कहा है कि वह मादक पदार्थों की बिक्री कर रहा था। वहीं, उसके परिजनों और मित्रों ने पुलिस की कहानी को फर्जी बताया है। पढ़िए पूरा मामला…
सांकेतिक तस्वीर
– फोटो : पेक्सेल्स
असम के नगांव जिले में एक पूर्व छात्र नेता पुलिस की गोलीबारी में घायल हो गया है। कानून प्रवर्तन एजेंसियों का आरोप है कि वह मादक पदार्थों का तस्कर है। विपक्ष ने इस घटना को जंगलराज का प्रभाव बताया है और दावा किया है कि वर्तमान हालात 1990 के दशक की खुफिया हत्याओं के दौर से भी बदतर हैं। मामले में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने जांच का आदेश दिया है।
पुलिस ने दावा किया है कि नगांव कॉलेज का पूर्व महासिचव कीर्ति कमल बोरा मादक पदार्थों की बिक्री कर रहा था। शनिवार को उसने कानून प्रवर्तकों पर हमला किया था जिसके जवाब में की गई कार्रवाई में उसके पैर में गोली लगी थी। वहीं, ऑल असम छात्र संघ (एएएसयू) का कहना है कि बोरा ने एक युवक को पीट रहे शराब के नशे में धुत पुलिसकर्मियों का विरोध किया था।
इस घटना को लेकर मुख्यमंत्री सरमा ने कहा है कि अतिरिक्त मुख्य सचिव पवन बोरठाकुर को जांच की जिम्मेदारी दी गई है। वह सात दिन में रिपोर्ट जमा करेंगे। सरमा ने आगे कहा कि पुलिस अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी लेकिन उन्हें आम आदमी का मित्र होना चाहिए। अगर कोई पुलिस अधिकारी दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।
नगांव पुलिस थाने के बाहर हुआ प्रदर्शन
गोलीबारी की इस घटना के खिलाफ बोरा की मां और कुछ छात्रों ने नगांव पुलिस थाने के बाहर प्रदर्शन भी किया। ये लोग घटना में शामिल पुलिस कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई और मामले की न्यायिक जांच की मांग उठा रहे थे। पुलिस के अनुसार वरिष्ठ अधिकारियों ने उनसे कहा कि मुख्य द्वार को अवरोधित करने के स्थान पर अपनी मांगों को लेकर उन्हें एक ज्ञापन सौंपना चाहिए।
असम पुलिस ने ट्विटर पर दी प्रतिक्रिया
इसे लेकर प्रदर्शनों और आरोपों को लेकर असम पुलिस ने ट्विटर पर प्रतिक्रिया दी है। इसने एक ट्वीट में लिखा, ‘ नगांव के कचलुखुआ में गोलीबारी की घटना में शामिल पुलिस कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से पुलिस रिजर्व में भेज दिया गया है। हमने सरकार से एक कमिश्नर स्तरीय जांच करवाने का अनुरोध किया है। अगर कोई गलती पाई जाती है तो उस पर कदम उठाए जाएंगे।’
पुलिस ने बताई कुछ ऐसे हुई थी घटना
समाचार एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार नगांव पुलिस अधीक्षक आनंद मिश्रा ने कहा है कि मैं इस मामले की निजी स्तर पर जांच करूंगा और यह पता लगाऊंगा कि क्या यह मामला पुलिस की ज्यादती का है। उन्होंने कहा कि शुरुआती जांच में मुझे पता चला है कि पुलिस को इस बात की सूचना मिली थी कि कुछ बाइक सवार मादक पदार्थों की बिक्री कर रहे थे।
मिश्रा ने बताया कि जब दो पुलिसकर्मी सादी वेशभूषा में वहां पहुंचे तो इस पूर्व छात्र नेता ने उनसे पूछा कि क्या वह कानून प्रवर्तक हैं। जब उन्होंने इसके जवाब में हां कहा को आरोपी ने एक पर अपने हेलमेट से हमला कर दिया। पास ही में एक बैकअप पुलिस बल मौजूद था जो वहां पहुंचा और आरोपी को पकड़ने की कोशिश की। लेकिन वह उनपर लगातार हमले करता रहा।
उन्होंने आगे कहा कि जब पुलिस के पास कोई चारा नहीं बचा तो उन्होंने उसके पैर पर गोली मारी। उसके पास से आठ शीशियां बरामद हुई हैं जिनमें हेरोइन थी। उधर, आरोपी को गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में भर्ती कराया गया है। उसकी हालत अब स्थिर है। बोरा के परिजनों, मित्रों और विपक्षी दलों ने इस हादसे को लेकर पुलिस के पक्ष को फर्जी करार दिया है।
विस्तार
असम के नगांव जिले में एक पूर्व छात्र नेता पुलिस की गोलीबारी में घायल हो गया है। कानून प्रवर्तन एजेंसियों का आरोप है कि वह मादक पदार्थों का तस्कर है। विपक्ष ने इस घटना को जंगलराज का प्रभाव बताया है और दावा किया है कि वर्तमान हालात 1990 के दशक की खुफिया हत्याओं के दौर से भी बदतर हैं। मामले में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने जांच का आदेश दिया है।
पुलिस ने दावा किया है कि नगांव कॉलेज का पूर्व महासिचव कीर्ति कमल बोरा मादक पदार्थों की बिक्री कर रहा था। शनिवार को उसने कानून प्रवर्तकों पर हमला किया था जिसके जवाब में की गई कार्रवाई में उसके पैर में गोली लगी थी। वहीं, ऑल असम छात्र संघ (एएएसयू) का कहना है कि बोरा ने एक युवक को पीट रहे शराब के नशे में धुत पुलिसकर्मियों का विरोध किया था।
इस घटना को लेकर मुख्यमंत्री सरमा ने कहा है कि अतिरिक्त मुख्य सचिव पवन बोरठाकुर को जांच की जिम्मेदारी दी गई है। वह सात दिन में रिपोर्ट जमा करेंगे। सरमा ने आगे कहा कि पुलिस अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी लेकिन उन्हें आम आदमी का मित्र होना चाहिए। अगर कोई पुलिस अधिकारी दोषी पाया जाता है तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।
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