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अमेरिकी मदद बनी नेपाल सरकार के गले की हड्डी: गठबंधन में शामिल पार्टियों ने की खिलाफत

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Mon, 17 Jan 2022 03:55 PM IST

सार

एमएसीसी से नेपाल सरकार ने 2017 में एक करार पर दस्तखत किए थे। तब भी देउबा प्रधानमंत्री थे और उनकी सरकार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) के समर्थन से चल रही थी। बाद में जब केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने भी इस समर्थन को स्वीकार करने की इच्छा दिखाई थी…

नेपाल में प्रदर्शन
– फोटो : Agency (File Photo)

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देश में भारी विरोध के कारण नेपाल की शेर बहादुर देउबा सरकार अब तक 50 करोड़ डॉलर की एक अमेरिकी संस्था की मदद को स्वीकार करने के बिल संसद में पारित नहीं करवा पाई है। देउबा की नेपाली कांग्रेस ने साफ कहा है कि वह ये मदद लेना चाहती है, लेकिन इस पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल कम्युनिस्ट पार्टियां इसके खिलाफ हैं। विपक्षी नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) तो खुल कर ये मदद लेने का विरोध कर रही है। इस बीच अब इस मदद की पेशकश करने वाली अमेरिकी एजेंसी ने भी चेतावनी दे दी है कि वह अनिश्चित काल तक इंतजार नहीं कर सकती।

नेपाल के लिए इस मदद की पेशकश अमेरिकी संस्था मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) ने की है। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों का कहना है कि मदद की ये पेशकश नेपाल पर चीन का प्रभाव कम करने के मकसद से की गई है। यह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बीच चल रही होड़ का हिस्सा है। कम्युनिस्ट पार्टियों ने नेपाल सरकार से मांग की है वह दो बड़ी ताकतों की होड़ में ना फंसे।

संसदीय अनुमोदन की प्रक्रिया पूरी करे नेपाल

अब एमसीसी के कार्यवाहक चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर महमूद बाह ने कहा है कि नेपाल सरकार इस मदद को लेगी या नहीं, यह जानने के लिए एमसीसी अनंत काल तक इंतजार नहीं करेगी। नेपाल के अखबार काठमांडू पोस्ट को दिए एक इंटरव्यू में बाह ने कहा- एमसीसी की तरफ से दी जा रही 50 करोड़ डॉलर की सहायता को स्वीकार करना या न करने का फैसला नेपाल को करना है। उन्होंने कहा- ‘2017 से एमसीसी नेपाल की जनता की मदद करने के प्रति वचनबद्ध रहा है। वह इस इंतजार में है कि नेपाल सरकार अंतरराष्ट्रीय समझौतों को लागू करने के लिए संसदीय अनुमोदन की प्रक्रिया पूरी करे।’

एमएसीसी से नेपाल सरकार ने 2017 में एक करार पर दस्तखत किए थे। तब भी देउबा प्रधानमंत्री थे और उनकी सरकार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) के समर्थन से चल रही थी। बाद में जब केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने भी इस समर्थन को स्वीकार करने की इच्छा दिखाई थी। उनकी ही सरकार ने 2019 में इस करार के अनुमोदन का प्रस्ताव संसद में पेश किया था। लेकिन वह प्रस्ताव आज तक पारित नहीं हो सका। उधर विपक्ष में जाने के बाद ओली ने पूरी तरह से अपना रुख बदल लिया।

दहल और माधव नेपाल की पार्टियां कर रहीं विरोध

मौजूदा समय में ये करार नेपाली राजनीति में गहरे मतभेद का विषय बना हुआ है। नेपाली कांग्रेस इसके अनुमोदन के लिए जोर लगा रही है, लेकिन उसके गठबंधन में शामिल पुष्प कमल दहल के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओइस्ट सेंटर) और माधव कुमार नेपाल के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट (यूनिफाइड सोशलिस्ट) इसका विरोध कर रही हैं। इन दोनों पार्टियों का कहना है कि इस करार को इसके मौजूदा रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

काठमांडू पोस्ट को दिए इंटरव्यू में बाह ने कहा- ‘2012 के बाद से नेपाल की हर राजनीतिक पार्टी और सरकार ने एमसीसी से करार करना चाहा है। इन तमाम दलों और उनके नेताओं ने इस करार के अनुमोदन का उसके मूल रूप में समर्थन किया है।’ पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस टिप्पणी के साथ एमसीसी ने मामले के लगातार खिंचने पर अपने गहरे असंतोष का इजहार कर दिया है।

विस्तार

देश में भारी विरोध के कारण नेपाल की शेर बहादुर देउबा सरकार अब तक 50 करोड़ डॉलर की एक अमेरिकी संस्था की मदद को स्वीकार करने के बिल संसद में पारित नहीं करवा पाई है। देउबा की नेपाली कांग्रेस ने साफ कहा है कि वह ये मदद लेना चाहती है, लेकिन इस पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल कम्युनिस्ट पार्टियां इसके खिलाफ हैं। विपक्षी नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (यूएमएल) तो खुल कर ये मदद लेने का विरोध कर रही है। इस बीच अब इस मदद की पेशकश करने वाली अमेरिकी एजेंसी ने भी चेतावनी दे दी है कि वह अनिश्चित काल तक इंतजार नहीं कर सकती।

नेपाल के लिए इस मदद की पेशकश अमेरिकी संस्था मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) ने की है। नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टियों का कहना है कि मदद की ये पेशकश नेपाल पर चीन का प्रभाव कम करने के मकसद से की गई है। यह इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बीच चल रही होड़ का हिस्सा है। कम्युनिस्ट पार्टियों ने नेपाल सरकार से मांग की है वह दो बड़ी ताकतों की होड़ में ना फंसे।

संसदीय अनुमोदन की प्रक्रिया पूरी करे नेपाल

अब एमसीसी के कार्यवाहक चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर महमूद बाह ने कहा है कि नेपाल सरकार इस मदद को लेगी या नहीं, यह जानने के लिए एमसीसी अनंत काल तक इंतजार नहीं करेगी। नेपाल के अखबार काठमांडू पोस्ट को दिए एक इंटरव्यू में बाह ने कहा- एमसीसी की तरफ से दी जा रही 50 करोड़ डॉलर की सहायता को स्वीकार करना या न करने का फैसला नेपाल को करना है। उन्होंने कहा- ‘2017 से एमसीसी नेपाल की जनता की मदद करने के प्रति वचनबद्ध रहा है। वह इस इंतजार में है कि नेपाल सरकार अंतरराष्ट्रीय समझौतों को लागू करने के लिए संसदीय अनुमोदन की प्रक्रिया पूरी करे।’

एमएसीसी से नेपाल सरकार ने 2017 में एक करार पर दस्तखत किए थे। तब भी देउबा प्रधानमंत्री थे और उनकी सरकार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) के समर्थन से चल रही थी। बाद में जब केपी शर्मा ओली प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने भी इस समर्थन को स्वीकार करने की इच्छा दिखाई थी। उनकी ही सरकार ने 2019 में इस करार के अनुमोदन का प्रस्ताव संसद में पेश किया था। लेकिन वह प्रस्ताव आज तक पारित नहीं हो सका। उधर विपक्ष में जाने के बाद ओली ने पूरी तरह से अपना रुख बदल लिया।

दहल और माधव नेपाल की पार्टियां कर रहीं विरोध

मौजूदा समय में ये करार नेपाली राजनीति में गहरे मतभेद का विषय बना हुआ है। नेपाली कांग्रेस इसके अनुमोदन के लिए जोर लगा रही है, लेकिन उसके गठबंधन में शामिल पुष्प कमल दहल के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओइस्ट सेंटर) और माधव कुमार नेपाल के नेतृत्व वाली कम्युनिस्ट (यूनिफाइड सोशलिस्ट) इसका विरोध कर रही हैं। इन दोनों पार्टियों का कहना है कि इस करार को इसके मौजूदा रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।

काठमांडू पोस्ट को दिए इंटरव्यू में बाह ने कहा- ‘2012 के बाद से नेपाल की हर राजनीतिक पार्टी और सरकार ने एमसीसी से करार करना चाहा है। इन तमाम दलों और उनके नेताओं ने इस करार के अनुमोदन का उसके मूल रूप में समर्थन किया है।’ पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस टिप्पणी के साथ एमसीसी ने मामले के लगातार खिंचने पर अपने गहरे असंतोष का इजहार कर दिया है।

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