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अमेरिकी मदद पर रुख पलटा: कम्युनिस्टों की धमकी से होश ठिकाने आ गए देउबा के

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Thu, 17 Feb 2022 05:09 PM IST

सार

अब इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री देउबा के लिए बड़ी असहज स्थिति पैदा हो गई है। मंगलवार को उन्होंने खुद कहा था कि अनुमोदन प्रस्ताव संसद में रखने के बारे में उन्होंने खुद प्रतिनिधि सभा के स्पीकर अग्नि सपकोटा से बात की है। लेकिन बुधवार को प्रधानमंत्री के सचिवालय ने एक बयान जारी कर कहा- ‘प्रधानमंत्री देउबा और दहल के बीच एमसीसी से जुड़े प्रस्ताव को अभी सदन में पेश न करने पर सहमति बनी है।’

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अमेरिकी संस्था मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) की मदद स्वीकार करने के मुद्दे पर नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा को अपना रुख पलटना पड़ा है। मंगलवार को देउबा की सत्ताधारी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने अपनी बैठक में फैसला किया था कि 50 करोड़ डॉलर की अमेरिकी संस्था की मदद को लेने के लिए हुए करार के संसदीय अनुमोदन की प्रक्रिया हर हाल में पूरी की जाएगी। बुधवार को सत्ताधारी गठबंधन में शामिल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) ने इस मुद्दे पर सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी। कुछ ही घंटों के बाद खबर आई कि देउबा एमसीसी करार के अनुमोदन का प्रस्ताव संसद में पेश न करने पर सहमत हो गए हैं।

संसदीय अनुमोदन प्रक्रिया की समयसीमा 28 फरवरी

इस मुद्दे पर कम्युनिस्ट पार्टियां और कई दूसरे संगठन सड़क पर भी उतर गए हैं। बुधवार को काठमांडू में हुए एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस को आंसू गैस और पानी की धार छोड़नी पड़ी। एमसीसी से 50 करोड़ डॉलर की सहायता लेने का समझौता 2017 में हुआ था। लेकिन नेपाल में इस मुद्दे पर गहरे राजनीतिक मतभेद के कारण समझौते का संसदीय अनुमोदन नहीं कराया जा सका है। अब एमसीसी ने अनुमोदन की प्रक्रिया पूरी करने के लिए 28 फरवरी की समयसीमा तय कर दी है। उधर अमेरिका सरकार ने कहा है कि अगर नेपाल ने ये प्रक्रिया पूरी नहीं की, तो वह नेपाल के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों पर पुनर्विचार कर सकती है।

अब इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री देउबा के लिए बड़ी असहज स्थिति पैदा हो गई है। मंगलवार को उन्होंने खुद कहा था कि अनुमोदन प्रस्ताव संसद में रखने के बारे में उन्होंने खुद प्रतिनिधि सभा के स्पीकर अग्नि सपकोटा से बात की है। लेकिन बुधवार को प्रधानमंत्री के सचिवालय ने एक बयान जारी कर कहा- ‘प्रधानमंत्री देउबा और दहल के बीच एमसीसी से जुड़े प्रस्ताव को अभी सदन में पेश न करने पर सहमति बनी है।’ अब बताया गया है कि इस बारे में प्रधानमंत्री सत्ताधारी गठबंधन में शामिल पांचों दलों के नेताओं से राय-मशविरा करने के बाद ही आखिर फैसला लेंगे।

गठबंधन में पड़ सकती है दरार

नेपाली अखबारों में छपी रिपोर्ट के मुताबिक दहल ने प्रधानमंत्री से बातचीत में सत्ताधारी गठबंधन से अलग हो जाने की दो टूक धमकी दी। दहल का कहना है कि इस करार का उसके मौजूदा रूप में अनुमोदन नहीं किया जा सकता। अगर एमसीसी इसमें संशोधन के लिए तैयार हो, तो तभी अनुमोदन की प्रक्रिया को माओइस्ट सेंटर पार्टी समर्थन देगी। दहल की पार्टी के अलावा सत्ताधारी गठबंधन की घटक कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड सोशलिस्ट) भी मौजूदा रूप में इस करार को स्वीकार करने के खिलाफ है।

माओइस्ट सेंटर पार्टी की सांसद रेखा शर्मा ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा है- ‘विभिन्न पार्टियों के प्रतिनिधियों के बीच इस करार को लेकर मतभेद हैं। स्पीकर ने भी कहा है कि करार के अनुमोदन का प्रस्ताव पार्टियों के बीच आम सहमति बनने के बाद ही पेश किया जा सकता है।’

एमसीसी ने 2017 में हुए समझौते में किसी फेरबदल से इनकार कर दिया है। कम्युनिस्ट पार्टियों का कहना है कि एमसीसी की सहायता अमेरिका और चीन के बीच अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने की चल रही होड़ का हिस्सा है। नेपाल को इस होड़ से अलग रहना चाहिए। देउबा आरंभ से ही मदद स्वीकार करने के समर्थक रहे हैं। लेकिन अपनी सरकार बचाने के लिए उन्हें फिलहाल अपना रुख पलटना पड़ा है।

विस्तार

अमेरिकी संस्था मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (एमसीसी) की मदद स्वीकार करने के मुद्दे पर नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा को अपना रुख पलटना पड़ा है। मंगलवार को देउबा की सत्ताधारी पार्टी नेपाली कांग्रेस ने अपनी बैठक में फैसला किया था कि 50 करोड़ डॉलर की अमेरिकी संस्था की मदद को लेने के लिए हुए करार के संसदीय अनुमोदन की प्रक्रिया हर हाल में पूरी की जाएगी। बुधवार को सत्ताधारी गठबंधन में शामिल कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओइस्ट सेंटर) ने इस मुद्दे पर सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी। कुछ ही घंटों के बाद खबर आई कि देउबा एमसीसी करार के अनुमोदन का प्रस्ताव संसद में पेश न करने पर सहमत हो गए हैं।

संसदीय अनुमोदन प्रक्रिया की समयसीमा 28 फरवरी

इस मुद्दे पर कम्युनिस्ट पार्टियां और कई दूसरे संगठन सड़क पर भी उतर गए हैं। बुधवार को काठमांडू में हुए एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस को आंसू गैस और पानी की धार छोड़नी पड़ी। एमसीसी से 50 करोड़ डॉलर की सहायता लेने का समझौता 2017 में हुआ था। लेकिन नेपाल में इस मुद्दे पर गहरे राजनीतिक मतभेद के कारण समझौते का संसदीय अनुमोदन नहीं कराया जा सका है। अब एमसीसी ने अनुमोदन की प्रक्रिया पूरी करने के लिए 28 फरवरी की समयसीमा तय कर दी है। उधर अमेरिका सरकार ने कहा है कि अगर नेपाल ने ये प्रक्रिया पूरी नहीं की, तो वह नेपाल के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों पर पुनर्विचार कर सकती है।

अब इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री देउबा के लिए बड़ी असहज स्थिति पैदा हो गई है। मंगलवार को उन्होंने खुद कहा था कि अनुमोदन प्रस्ताव संसद में रखने के बारे में उन्होंने खुद प्रतिनिधि सभा के स्पीकर अग्नि सपकोटा से बात की है। लेकिन बुधवार को प्रधानमंत्री के सचिवालय ने एक बयान जारी कर कहा- ‘प्रधानमंत्री देउबा और दहल के बीच एमसीसी से जुड़े प्रस्ताव को अभी सदन में पेश न करने पर सहमति बनी है।’ अब बताया गया है कि इस बारे में प्रधानमंत्री सत्ताधारी गठबंधन में शामिल पांचों दलों के नेताओं से राय-मशविरा करने के बाद ही आखिर फैसला लेंगे।

गठबंधन में पड़ सकती है दरार

नेपाली अखबारों में छपी रिपोर्ट के मुताबिक दहल ने प्रधानमंत्री से बातचीत में सत्ताधारी गठबंधन से अलग हो जाने की दो टूक धमकी दी। दहल का कहना है कि इस करार का उसके मौजूदा रूप में अनुमोदन नहीं किया जा सकता। अगर एमसीसी इसमें संशोधन के लिए तैयार हो, तो तभी अनुमोदन की प्रक्रिया को माओइस्ट सेंटर पार्टी समर्थन देगी। दहल की पार्टी के अलावा सत्ताधारी गठबंधन की घटक कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (यूनिफाइड सोशलिस्ट) भी मौजूदा रूप में इस करार को स्वीकार करने के खिलाफ है।

माओइस्ट सेंटर पार्टी की सांसद रेखा शर्मा ने अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा है- ‘विभिन्न पार्टियों के प्रतिनिधियों के बीच इस करार को लेकर मतभेद हैं। स्पीकर ने भी कहा है कि करार के अनुमोदन का प्रस्ताव पार्टियों के बीच आम सहमति बनने के बाद ही पेश किया जा सकता है।’

एमसीसी ने 2017 में हुए समझौते में किसी फेरबदल से इनकार कर दिया है। कम्युनिस्ट पार्टियों का कहना है कि एमसीसी की सहायता अमेरिका और चीन के बीच अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने की चल रही होड़ का हिस्सा है। नेपाल को इस होड़ से अलग रहना चाहिए। देउबा आरंभ से ही मदद स्वीकार करने के समर्थक रहे हैं। लेकिन अपनी सरकार बचाने के लिए उन्हें फिलहाल अपना रुख पलटना पड़ा है।

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