वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, ब्रसेल्स
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Thu, 18 Nov 2021 08:30 PM IST
सार
वेबसाइट पॉलिटिको.ईयू के मुताबिक ईयू देशों ने 28 पेज का एक ड्राफ्ट तैयार किया है। वेबसाइट ने इसे एक कमजोर ड्राफ्ट बताया है। उसके मुताबिक ये ड्राफ्ट बताया है कि ईयू की महत्वाकांक्षा और हकीकत के बीच खाई कितनी चौड़ी है। इस ड्राफ्ट से सामने आता है कि ईयू जो सबसे बड़ी तैयारी कर सकता है वह यह है कि 2025 तक वह पांच हजार ऐसे सैनिक तैयार करे, जिन्हें वह लड़ाई वाले क्षेत्र में भेज सकेगा…
रूस और चीन की तरफ से बढ़ रही सैनिक चुनौतियों के बरक्स यूरोपियन यूनियन (ईयू) ने फिर अपने जाने-पहचाने हथियार का सहारा लिया है और वह है नीति दस्तावेज! ये बात यूरोप के मीडिया में व्यंग्य करते हुए कही गई है। इस हफ्ते ईयू के रक्षा मंत्रियों ने 27 देशों के इस समूह की सैनिक क्षमताओं को बढ़ाने की योजना पर विचार किया। उस दौरान ये समझ बनी कि ईयू हमेशा अमेरिका या उसके नेतृत्व वाले सैनिक गठबंधन नाटो पर निर्भर नहीं बना रह सकता। इसलिए रक्षा मंत्रियों ने फैसला किया कि वे इस बारे में एक नीति दस्तावेज तैयार करेंगे।
अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद उठाया कदम
ईयू का कहना है कि रक्षा मंत्रियों की ये बैठक इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण रही कि इसके साथ ईयू की अपनी रक्षा नीति पर पहली बार चर्चा शुरू हुई है। इससे यह तय होगा कि इस मामले में ईयू कितना महत्वाकांक्षी हो सकता है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक हालांकि इस बारे में चर्चा पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति अपनाने के बाद ही शुरू हो गई थी, लेकिन अगस्त में जिस तरह अमेरिका ने एकतरफा ढंग से अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुला ली, उसके बाद इसकी जरूरत अधिक महसूस की जाने लगी है।
वेबसाइट पॉलिटिको.ईयू के मुताबिक ईयू देशों ने 28 पेज का एक ड्राफ्ट तैयार किया है। वेबसाइट ने इसे एक कमजोर ड्राफ्ट बताया है। उसके मुताबिक ये ड्राफ्ट बताया है कि ईयू की महत्वाकांक्षा और हकीकत के बीच खाई कितनी चौड़ी है। इस ड्राफ्ट से सामने आता है कि ईयू जो सबसे बड़ी तैयारी कर सकता है वह यह है कि 2025 तक वह पांच हजार ऐसे सैनिक तैयार करे, जिन्हें वह लड़ाई वाले क्षेत्र में भेज सकेगा।
60 हजार सैनिकों का बल
विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि 1999 में ईयू ने 60 हजार सैनिकों का बल तैयार करने का कार्यक्रम बनाया था। लेकिन पर्याप्त बजट आवंटित ना होने की वजह से वह कार्यक्रम आगे नहीं बढ़ सका। एक राजनयिक ने वेबसाइट पॉलिटिको से कहा- ‘ईयू के सदस्य देश जब तक महत्वाकांक्षा के अनुरूप कदम नहीं उठाते हैं, उनकी बातें विश्वसनीय महसूस नहीं होंगी।’ बताया जाता है कि ईयू के अपना सैन्य बल बनाने की योजना का सबसे पुरजोर समर्थन फ्रांस कर रहा है। वह चाहता है कि अगले कुछ महीनों में इस योजना को अंतिम रूप दे दिया जाए। ड्राफ्ट इस दिशा में पहला कदम है। ईयू के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बॉरेल ने मंगलवार की बैठक के बाद कहा था- ‘यह सिर्फ एक अन्य नीति दस्तावेज नहीं है। यह आगे बढ़ने की दिशा निर्देशिका है।’
मगर कुछ मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि इस योजना को लेकर फ्रांस जितना उत्साहित है, जर्मनी उतना ही अनिच्छुक है। एक अधिकारी ने टिप्पणी की- ‘ईयू कितना महत्वाकांक्षी हो पाएगा, यह जर्मनी पर निर्भर करता है।’ पर्यवेक्षकों का कहना है कि सैनिक ताकत बनने की ईयू की महत्वाकांक्षा अतीत में दो बार नाकाम हो चुकी है। इसलिए इस बार उसके सामने विश्वसनीयता का संकट है। एक अधिकारी ने कहा- ‘यह सुनिश्चित करना होगा कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा और हमारी क्षमता के बीच खाई ना रहे, ताकि हम जितना करने में सक्षम हैं, उससे ज्यादा वादा ना कर दें।’
विस्तार
रूस और चीन की तरफ से बढ़ रही सैनिक चुनौतियों के बरक्स यूरोपियन यूनियन (ईयू) ने फिर अपने जाने-पहचाने हथियार का सहारा लिया है और वह है नीति दस्तावेज! ये बात यूरोप के मीडिया में व्यंग्य करते हुए कही गई है। इस हफ्ते ईयू के रक्षा मंत्रियों ने 27 देशों के इस समूह की सैनिक क्षमताओं को बढ़ाने की योजना पर विचार किया। उस दौरान ये समझ बनी कि ईयू हमेशा अमेरिका या उसके नेतृत्व वाले सैनिक गठबंधन नाटो पर निर्भर नहीं बना रह सकता। इसलिए रक्षा मंत्रियों ने फैसला किया कि वे इस बारे में एक नीति दस्तावेज तैयार करेंगे।
अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद उठाया कदम
ईयू का कहना है कि रक्षा मंत्रियों की ये बैठक इस लिहाज से महत्त्वपूर्ण रही कि इसके साथ ईयू की अपनी रक्षा नीति पर पहली बार चर्चा शुरू हुई है। इससे यह तय होगा कि इस मामले में ईयू कितना महत्वाकांक्षी हो सकता है। पर्यवेक्षकों के मुताबिक हालांकि इस बारे में चर्चा पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति अपनाने के बाद ही शुरू हो गई थी, लेकिन अगस्त में जिस तरह अमेरिका ने एकतरफा ढंग से अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुला ली, उसके बाद इसकी जरूरत अधिक महसूस की जाने लगी है।
वेबसाइट पॉलिटिको.ईयू के मुताबिक ईयू देशों ने 28 पेज का एक ड्राफ्ट तैयार किया है। वेबसाइट ने इसे एक कमजोर ड्राफ्ट बताया है। उसके मुताबिक ये ड्राफ्ट बताया है कि ईयू की महत्वाकांक्षा और हकीकत के बीच खाई कितनी चौड़ी है। इस ड्राफ्ट से सामने आता है कि ईयू जो सबसे बड़ी तैयारी कर सकता है वह यह है कि 2025 तक वह पांच हजार ऐसे सैनिक तैयार करे, जिन्हें वह लड़ाई वाले क्षेत्र में भेज सकेगा।
60 हजार सैनिकों का बल
विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि 1999 में ईयू ने 60 हजार सैनिकों का बल तैयार करने का कार्यक्रम बनाया था। लेकिन पर्याप्त बजट आवंटित ना होने की वजह से वह कार्यक्रम आगे नहीं बढ़ सका। एक राजनयिक ने वेबसाइट पॉलिटिको से कहा- ‘ईयू के सदस्य देश जब तक महत्वाकांक्षा के अनुरूप कदम नहीं उठाते हैं, उनकी बातें विश्वसनीय महसूस नहीं होंगी।’ बताया जाता है कि ईयू के अपना सैन्य बल बनाने की योजना का सबसे पुरजोर समर्थन फ्रांस कर रहा है। वह चाहता है कि अगले कुछ महीनों में इस योजना को अंतिम रूप दे दिया जाए। ड्राफ्ट इस दिशा में पहला कदम है। ईयू के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बॉरेल ने मंगलवार की बैठक के बाद कहा था- ‘यह सिर्फ एक अन्य नीति दस्तावेज नहीं है। यह आगे बढ़ने की दिशा निर्देशिका है।’
मगर कुछ मीडिया रिपोर्टों में बताया गया है कि इस योजना को लेकर फ्रांस जितना उत्साहित है, जर्मनी उतना ही अनिच्छुक है। एक अधिकारी ने टिप्पणी की- ‘ईयू कितना महत्वाकांक्षी हो पाएगा, यह जर्मनी पर निर्भर करता है।’ पर्यवेक्षकों का कहना है कि सैनिक ताकत बनने की ईयू की महत्वाकांक्षा अतीत में दो बार नाकाम हो चुकी है। इसलिए इस बार उसके सामने विश्वसनीयता का संकट है। एक अधिकारी ने कहा- ‘यह सुनिश्चित करना होगा कि राजनीतिक महत्वाकांक्षा और हमारी क्षमता के बीच खाई ना रहे, ताकि हम जितना करने में सक्षम हैं, उससे ज्यादा वादा ना कर दें।’
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