सार
अफगानिस्तान के संविधान के मुताबिक, देश में एक राष्ट्रपति और दो उपराष्ट्रपतियों का नियम है। इन उपराष्ट्रपतियों में एक प्रथम उपराष्ट्रपति रहता है। यह राष्ट्रपति की गैरमौजूदगी, मौत या इस्तीफे जैसी घटनाओं में देश का कार्यभार संभालने के लिए जिम्मेदार है।
अफगानिस्तान में बरकरार रहा संविधान, तो तालिबान नहीं बना सकता राष्ट्राध्यक्ष।
– फोटो : Amar Ujala
अमेरिका के दो सांसदों ने हाल ही में राष्ट्रपति जो बाइडेन से अपील की है कि वे अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी में लड़ रहे नॉर्दर्न अलायंस (अहमद मसूद और अमरुल्लाह सालेह के नेतृत्व वाले गठबंधन) को सरकार के तौर पर मान्यता दें। दोनों सांसदों ने बाइडेन से अपील की कि अमेरिका अब भी अफगानिस्तान के संविधान को प्रभावी माने और तालिबान के कब्जे को अवैध करार दे। अमेरिकी नेताओं के इस बयान के बाद हर तरफ यही सवाल है कि आखिर अफगानिस्तान का संविधान क्या था, यह कब बना और अगर यह लागू हुआ, तो कैसे तालिबान को अपना राष्ट्रपति बनाने में खासी दिक्कतें आएंगी?
अफगानिस्तान का मौजूदा संविधान 2004 में बनकर लागू हुआ था। हालांकि, यह कोई पहली बार नहीं था, जब अफगान नागरिकों के लिए संविधान बनाया गया हो। 1919 में ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद अफगान राजा अमानुल्लाह ने 1921 और 1923 में संविधान तैयार करवाया। हालांकि, 1929 में ताजिक बागियों ने सरकार गिरा दी। इसके बाद 1931 में एक बार फिर नया संविधान पास हुआ। इसके लागू होने के 15 साल बाद पहली बार चुनावों का एलान हुआ, स्वतंत्र मीडिया और संसद की स्थापना करने का भी निर्णय हुआ।
1952 में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शुरू हुए शीतयुद्ध के बीच अफगानिस्तान की राजनीति में धार्मिक रुढ़िवादी नेताओं की एंट्री हुई। इसके बाद पुराने संविधान को बदलकर 1964 में नया संविधान तैयार किया गया। 1970 आते-आते कई क्रांतिकारियों ने सोवियत प्रोपेंगडा पर संविधान बनवाने का आरोप लगाया और विद्रोह छेड़ दिया। इससे सोवियत संघ को अफगानिस्तान में सेना भेजने का मौका मिला और इसके विरोध में मुजाहिदीनों की नई ताकत खड़ी हुई। 1989 में सोवियत के जाने से लेकर 2001 में अमेरिका के आने तक मुजाहिदीनों ने अपनी लड़ाई जारी रखी। 1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान पर तालिबान ने भी राज किया, लेकिन इस दौरान देश में संविधान का कोई भी नामोनिशान नहीं रहा।
अमेरिका के आने के बाद 2001 में ही तालिबान को सत्ता से हटना पड़ा। इसके बाद 2004 में अमेरिका समर्थित नेता हामिद करजई के नेतृत्व में नए संविधान को लागू किया गया। इसके तहत अफगानिस्तान की स्थापना एक इस्लामिक गणतंत्र के तौर पर हुई। संविधान में इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म माना गया और मानवाधिकार के प्रति सर्वभौमिक प्रतिबद्धता तय की गई। 2004 के संविधान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को प्रमुखता से जगह दी गई। नशीले पदार्थों के उत्पादन पर भी रोक लगाने की बात कही गई। इसके अलावा सत्ता की ताकत को राष्ट्रपति, संसद और सुप्रीम कोर्ट के बीच बांटने पर भी सहमति बनी।
हाल ही में इस बात की चर्चा तेज है कि अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता आने के बाद राष्ट्रपति कौन बनेगा? हालांकि, इस सवाल के जवाब से पहले यह पता चलना अहम है कि अफगानिस्तान में पूरी दुनिया में स्वीकार किया गया पुराना संविधान लागू रहेगा या नहीं? अगर तालिबान पुराने संविधान को मानता है, तो वह अफगानिस्तान का अगला राष्ट्रपति नहीं चुन सकेगा।
अफगानिस्तान के संविधान के मुताबिक, देश में एक राष्ट्रपति और दो उपराष्ट्रपतियों का नियम है। इन उपराष्ट्रपतियों में एक प्रथम उपराष्ट्रपति रहता है। यह राष्ट्रपति की गैरमौजूदगी, मौत या इस्तीफे जैसी घटनाओं में देश का कार्यभार संभालने के लिए जिम्मेदार है। अगर ऐसी स्थिति में प्रथम उपराष्ट्रपति गैरमौजूद है, तो यह जिम्मेदारी दूसरे उपराष्ट्रपति के पास चली जाती है।
मौजूदा समय की बात करें, तो अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर जा चुके हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्हें पिछले हफ्ते ही अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया। यानी इस स्थिति में सत्ता की जिम्मेदारी प्रथम उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह के ऊपर आ जाती है, लेकिन तालिबान के काबुल पर धावा बोलने के बाद सालेह अफगानिस्तान के पंजशीर में हैं। चूंकि उन्होंने अफगानिस्तान नहीं छोड़ा है, इसलिए संविधान के मुताबिक, प्रथम उपराष्ट्रपति होने के चलते वे ही अफगानिस्तान के कार्यकारी राष्ट्रपति हैं।
खुद अमरुल्लाह सालेह भी अफगानिस्तान के कार्यकारी राष्ट्रपति होने का दावा कर चुके हैं। उन्होंने पश्चिमी ताकतों से उनकी सरकार को मान्यता देने की भी अपील की है। लेकिन पहले अफगान संविधान को स्वीकार करने के बावजूद काबुल और लगभग पूरे अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होने की वजह से कोई भी देश अफगान संविधान को मानने से बच रहा है।
विस्तार
अमेरिका के दो सांसदों ने हाल ही में राष्ट्रपति जो बाइडेन से अपील की है कि वे अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी में लड़ रहे नॉर्दर्न अलायंस (अहमद मसूद और अमरुल्लाह सालेह के नेतृत्व वाले गठबंधन) को सरकार के तौर पर मान्यता दें। दोनों सांसदों ने बाइडेन से अपील की कि अमेरिका अब भी अफगानिस्तान के संविधान को प्रभावी माने और तालिबान के कब्जे को अवैध करार दे। अमेरिकी नेताओं के इस बयान के बाद हर तरफ यही सवाल है कि आखिर अफगानिस्तान का संविधान क्या था, यह कब बना और अगर यह लागू हुआ, तो कैसे तालिबान को अपना राष्ट्रपति बनाने में खासी दिक्कतें आएंगी?
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कब बना था अफगानिस्तान का संविधान?
अफगानिस्तान का मौजूदा संविधान 2004 में बनकर लागू हुआ था। हालांकि, यह कोई पहली बार नहीं था, जब अफगान नागरिकों के लिए संविधान बनाया गया हो। 1919 में ब्रिटेन से आजादी मिलने के बाद अफगान राजा अमानुल्लाह ने 1921 और 1923 में संविधान तैयार करवाया। हालांकि, 1929 में ताजिक बागियों ने सरकार गिरा दी। इसके बाद 1931 में एक बार फिर नया संविधान पास हुआ। इसके लागू होने के 15 साल बाद पहली बार चुनावों का एलान हुआ, स्वतंत्र मीडिया और संसद की स्थापना करने का भी निर्णय हुआ।
1952 में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शुरू हुए शीतयुद्ध के बीच अफगानिस्तान की राजनीति में धार्मिक रुढ़िवादी नेताओं की एंट्री हुई। इसके बाद पुराने संविधान को बदलकर 1964 में नया संविधान तैयार किया गया। 1970 आते-आते कई क्रांतिकारियों ने सोवियत प्रोपेंगडा पर संविधान बनवाने का आरोप लगाया और विद्रोह छेड़ दिया। इससे सोवियत संघ को अफगानिस्तान में सेना भेजने का मौका मिला और इसके विरोध में मुजाहिदीनों की नई ताकत खड़ी हुई। 1989 में सोवियत के जाने से लेकर 2001 में अमेरिका के आने तक मुजाहिदीनों ने अपनी लड़ाई जारी रखी। 1996 से लेकर 2001 तक अफगानिस्तान पर तालिबान ने भी राज किया, लेकिन इस दौरान देश में संविधान का कोई भी नामोनिशान नहीं रहा।
क्या है अफगानिस्तान का संविधान?
अमेरिका के आने के बाद 2001 में ही तालिबान को सत्ता से हटना पड़ा। इसके बाद 2004 में अमेरिका समर्थित नेता हामिद करजई के नेतृत्व में नए संविधान को लागू किया गया। इसके तहत अफगानिस्तान की स्थापना एक इस्लामिक गणतंत्र के तौर पर हुई। संविधान में इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म माना गया और मानवाधिकार के प्रति सर्वभौमिक प्रतिबद्धता तय की गई। 2004 के संविधान में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को प्रमुखता से जगह दी गई। नशीले पदार्थों के उत्पादन पर भी रोक लगाने की बात कही गई। इसके अलावा सत्ता की ताकत को राष्ट्रपति, संसद और सुप्रीम कोर्ट के बीच बांटने पर भी सहमति बनी।
अफगान राष्ट्रपति को लेकर क्या कहता है अफगानिस्तान का संविधान?
हाल ही में इस बात की चर्चा तेज है कि अफगानिस्तान में तालिबान की सत्ता आने के बाद राष्ट्रपति कौन बनेगा? हालांकि, इस सवाल के जवाब से पहले यह पता चलना अहम है कि अफगानिस्तान में पूरी दुनिया में स्वीकार किया गया पुराना संविधान लागू रहेगा या नहीं? अगर तालिबान पुराने संविधान को मानता है, तो वह अफगानिस्तान का अगला राष्ट्रपति नहीं चुन सकेगा।
क्या हैं नियम?
अफगानिस्तान के संविधान के मुताबिक, देश में एक राष्ट्रपति और दो उपराष्ट्रपतियों का नियम है। इन उपराष्ट्रपतियों में एक प्रथम उपराष्ट्रपति रहता है। यह राष्ट्रपति की गैरमौजूदगी, मौत या इस्तीफे जैसी घटनाओं में देश का कार्यभार संभालने के लिए जिम्मेदार है। अगर ऐसी स्थिति में प्रथम उपराष्ट्रपति गैरमौजूद है, तो यह जिम्मेदारी दूसरे उपराष्ट्रपति के पास चली जाती है।
मौजूदा समय की बात करें, तो अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर जा चुके हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन्हें पिछले हफ्ते ही अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया। यानी इस स्थिति में सत्ता की जिम्मेदारी प्रथम उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह के ऊपर आ जाती है, लेकिन तालिबान के काबुल पर धावा बोलने के बाद सालेह अफगानिस्तान के पंजशीर में हैं। चूंकि उन्होंने अफगानिस्तान नहीं छोड़ा है, इसलिए संविधान के मुताबिक, प्रथम उपराष्ट्रपति होने के चलते वे ही अफगानिस्तान के कार्यकारी राष्ट्रपति हैं।
जिस संविधान को पश्चिमी देशों ने दी स्वीकृति, अब उसी को मानने से पलटे
खुद अमरुल्लाह सालेह भी अफगानिस्तान के कार्यकारी राष्ट्रपति होने का दावा कर चुके हैं। उन्होंने पश्चिमी ताकतों से उनकी सरकार को मान्यता देने की भी अपील की है। लेकिन पहले अफगान संविधान को स्वीकार करने के बावजूद काबुल और लगभग पूरे अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होने की वजह से कोई भी देश अफगान संविधान को मानने से बच रहा है।
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