Desh

सुप्रीम कोर्ट: पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन दो पक्षों के बीच विवाद नहीं, आम जनता को प्रभावित करता है

एजेंसी, नई दिल्ली।
Published by: Jeet Kumar
Updated Thu, 02 Sep 2021 02:58 AM IST

सार

पीठ ने कहा, वन कानून का उल्लंघन, पर्यावरण कानून का उल्लंघन आमतौर पर दो पक्षों के बीच के विवाद नहीं होते हैं। हो सकता है, इसका असर एक व्यक्ति पर पड़ रहा हो, लेकिन आम जनता पर भी इसका असर पड़ रहा है।

ख़बर सुनें

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि पर्यावरण और वन कानूनों का उल्लंघन केवल दो पक्षों के बीच विवाद नहीं है बल्कि यह आम जनता को भी प्रभावित करता है। न्यायालय ने यह टिप्पणी इस मुद्दे की जांच करते हुए की कि क्या राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के पास मामलों का स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन सहित पर्यावरण संरक्षण, वनों के संरक्षण और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटारे के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (एनजीटी), 2010 के तहत अधिकरण की स्थापना की गई है।

जस्टिस ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, निष्पक्ष होने के लिए अधिकरण पर्यावरणीय मुद्दों से परे किसी भी और क्षेत्र में नहीं जाता है। पीठ में जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सी टी रविकुमार भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि अधिकरण पर्यावरण से संबंधित विशेष उद्देश्य और मुकदमे के लिए बनाया गया एक मंच है।

शीर्ष अदालत ने मामले में मुकुल रोहतगी, दुष्यंत दवे, ए एन एस नादकर्णी, कृष्णन वेणुगोपाल और वी गिरि सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनीं। रोहतगी ने कहा कि मुद्दा यह है कि क्या अधिकरण के पास स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है या नहीं।

उन्होंने कहा, एनजीटी के पास स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि उसके पास वैधानिक नियम से परे जाने का कोई अधिकार नहीं है। पीठ ने कहा कि एनजीटी अधिनियम कहता है कि अधिकरण के पास पर्यावरण से संबंधित मुद्दों से निपटने का अधिकार क्षेत्र है। पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें एनजीटी के स्वत: संज्ञान लेने के अधिकार से संबंधित मुद्दा उठाया गया था।
 

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि पर्यावरण और वन कानूनों का उल्लंघन केवल दो पक्षों के बीच विवाद नहीं है बल्कि यह आम जनता को भी प्रभावित करता है। न्यायालय ने यह टिप्पणी इस मुद्दे की जांच करते हुए की कि क्या राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के पास मामलों का स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि पर्यावरण से संबंधित कानूनी अधिकारों के प्रवर्तन सहित पर्यावरण संरक्षण, वनों के संरक्षण और अन्य प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटारे के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम (एनजीटी), 2010 के तहत अधिकरण की स्थापना की गई है।

जस्टिस ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, निष्पक्ष होने के लिए अधिकरण पर्यावरणीय मुद्दों से परे किसी भी और क्षेत्र में नहीं जाता है। पीठ में जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सी टी रविकुमार भी शामिल हैं। पीठ ने कहा कि अधिकरण पर्यावरण से संबंधित विशेष उद्देश्य और मुकदमे के लिए बनाया गया एक मंच है।

शीर्ष अदालत ने मामले में मुकुल रोहतगी, दुष्यंत दवे, ए एन एस नादकर्णी, कृष्णन वेणुगोपाल और वी गिरि सहित वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनीं। रोहतगी ने कहा कि मुद्दा यह है कि क्या अधिकरण के पास स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार है या नहीं।

उन्होंने कहा, एनजीटी के पास स्वत: संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि उसके पास वैधानिक नियम से परे जाने का कोई अधिकार नहीं है। पीठ ने कहा कि एनजीटी अधिनियम कहता है कि अधिकरण के पास पर्यावरण से संबंधित मुद्दों से निपटने का अधिकार क्षेत्र है। पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें एनजीटी के स्वत: संज्ञान लेने के अधिकार से संबंधित मुद्दा उठाया गया था।

 

Source link

Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Most Popular

To Top
%d bloggers like this: