सार
संयुक्त राष्ट्र ने सोमवार को कहा कि अफगानिस्तान एक जबरदस्त मानवीय आपदा का सामना कर रहा है। आने वाले महीनों में कड़ाके की ठंड पड़ने वाली है जो इस संकट को और बढ़ाएगा।
भारी संकट में पड़ी अपनी अर्थव्यवस्था को बाहर निकालने के लिए तालिबान अफगानिस्तान की अरबों डॉलर की फंसी संपत्ति को जारी करवाने के लिए अमेरिका के आगे गिड़गिड़ा रहा है। दूसरी तरफ वह अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के दर पर भी भटक रहा है। अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक ने लगभग 10 अरब डॉलर का भंडार जमा किया था, जिसमें से कुछ अमेरिका में है और यह फ्रीज कर दिया गया है।
अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने अमेरिकी कांग्रेस को एक पत्र लिखकर अफगानिस्तान की केंद्रीय बैंक की संपत्ति को जारी करने के लिए कहा। वहीं उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने सोमवार को कतर के दोहा में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के निदेशक अचिम स्टेनर से मुलाकात की।
तालिबान के कतर स्थित राजनीतिक कार्यालय के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने सोमवार को एक ट्वीट में कहा कि दोनों पक्षों ने अफगानिस्तान की आर्थिक चुनौतियों और मौजूदा स्थिति पर चर्चा की। पिछले हफ्ते इस्लामिक अमीरात के अधिकारियों ने संयुक्त राष्ट्र के पांच शीर्ष अधिकारियों के साथ भी मुलाकात की थी। जिसमें अमेरिका में फंसे अफगानिस्तान के पैसों को हासिल करने और मानवीय सहायता जारी रखने पर बातचीत हुई।
हालांकि एक राजनीतिक विशेषज्ञ अब्दुल नसीर रिश्तिया ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया को बताया ” ये बैठकों अफगानिस्तान की संपत्ति जारी करने या गरीबी कम करने या किसी भी तरह की सहायता प्रदान करने में प्रभावी नहीं होंगी।” “इन चुनौतियों का समाधान तब तक नहीं होगा जब तक तालिबान अंतरराष्ट्रीय समुदाय की शर्तों को पूरा नहीं करता।” वहीं भारत के विशेषज्ञों का भी कहना है कि जब तक देशों को यह भरोसा नहीं हो जाता है कि अफगानिस्तान में महिलाओं और बच्चों के अधिकार सुनिश्चित हैं तब तक उसकी आर्थिक समस्याएं दूर नहीं हो सकती। हालांकि विशेषज्ञ मानवीय सहायता जारी रखने के पक्ष में हैं।
अमेरिका को लिखे पत्र में क्या कहा
मुत्ताकी ने अपने पत्र में लिखा है ‘दोहा समझौते पर हस्ताक्षर के बाद इस्लामिक अमीरात और अमेरिका अब न तो सीधे संघर्ष में हैं और न ही सैन्य विरोध में। यह काफी आश्चर्यजनक है कि नई सरकार की घोषणा के साथ, अमेरिकी प्रशासन ने हमारे केंद्रीय बैंक की संपत्ति पर प्रतिबंध लगा दिए। यह हमारी उम्मीदों के साथ-साथ दोहा समझौते के खिलाफ है’। पत्र में लिखा है कि “वर्तमान में हमारे लोगों की मूलभूत चुनौती वित्तीय सुरक्षा है और इस चिंता की जड़ की वजह यही है कि अमेरिकी सरकार ने हमारी संपत्ति को फ्रीज कर दिया है।
जबकि हमारा मानना है कि हमारे पैसे को फ्रीज करने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। इसलिए हमारी पूंजी हमें वापिस कर देना चाहिए। पत्र में आगे कहा गया है कि सर्दी तेजी से बढ़ रही और यदि मौजूदा स्थिति बनी रहती है, तो अफगान सरकार और लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। इससे बड़े पैमाने पर लोगों का पलायन शुरू हो सकता है। जिसकी वजह से दुनिया के सामने मानवीय और आर्थिक मुद्दे पैदा होंगे।
देश के वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता अहमद वली हकमल ने पिछले महीने अक्तूबर में कहा था “पैसा अफगान राष्ट्र का है। बस हमें हमारा पैसा दें। इस पैसे को फ्रीज करना अनैतिक है और सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मूल्यों के खिलाफ है।” मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि हकमल ने यह वादा किया कि पैसे के बदले तालिबान महिलाओं की शिक्षा और मानवाधिकारों का सम्मान करेगा।
इसी साल अगस्त में तालिबान ने जब अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया और अपनी अंतरिम सरकार बना ली तो उसके बाद अमेरिका ने अफगानिस्ता के सेंट्रल बैंक में जमा पैसों को फ्रीज कर दिया। जिसके बाद अफगानिस्तान गहरे आर्थिक संकट में डूब गया। आर्थिक तंत्र के पूरी तरह टूट जाने और सूखे की वजह से वहां भूखमरी की नौबत आ गई है।
संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम ने कहा है कि इस सर्दी में देश की आधी से अधिक आबादी यानी 22.8 मिलियन लोग भूखमरी का शिकार हो सकते हैे। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पिछले महीने कहा कि अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था संकट के कारण शरणार्थी संकट और बढ़ सकता है जो पड़ोसी देशों, तुर्की और यूरोप को प्रभावित करेगा।
भूखे अफगानों की मीडिया तस्वीरें भले ही उसके तालिबानी शासकों को परेशान न करें, लेकिन आम नागरिकों की दुर्दशा अफगानिस्तान के साथ सीमा साझा करने वाले देशों के लिए गंभीर चिंता का विषय है। दिल्ली में पिछले हफ्ते सप्ताह हुई दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता, जिसमें रूस, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान के शीर्ष सुरक्षा विशेषज्ञों ने भाग लिया था उसमें भी अफगानिस्तान के सामने आने वाले खाद्य संकट पर चर्चा की गई।
विस्तार
भारी संकट में पड़ी अपनी अर्थव्यवस्था को बाहर निकालने के लिए तालिबान अफगानिस्तान की अरबों डॉलर की फंसी संपत्ति को जारी करवाने के लिए अमेरिका के आगे गिड़गिड़ा रहा है। दूसरी तरफ वह अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के दर पर भी भटक रहा है। अफगानिस्तान के केंद्रीय बैंक ने लगभग 10 अरब डॉलर का भंडार जमा किया था, जिसमें से कुछ अमेरिका में है और यह फ्रीज कर दिया गया है।
अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने अमेरिकी कांग्रेस को एक पत्र लिखकर अफगानिस्तान की केंद्रीय बैंक की संपत्ति को जारी करने के लिए कहा। वहीं उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने सोमवार को कतर के दोहा में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के निदेशक अचिम स्टेनर से मुलाकात की।
तालिबान के कतर स्थित राजनीतिक कार्यालय के प्रवक्ता मोहम्मद नईम ने सोमवार को एक ट्वीट में कहा कि दोनों पक्षों ने अफगानिस्तान की आर्थिक चुनौतियों और मौजूदा स्थिति पर चर्चा की। पिछले हफ्ते इस्लामिक अमीरात के अधिकारियों ने संयुक्त राष्ट्र के पांच शीर्ष अधिकारियों के साथ भी मुलाकात की थी। जिसमें अमेरिका में फंसे अफगानिस्तान के पैसों को हासिल करने और मानवीय सहायता जारी रखने पर बातचीत हुई।
हालांकि एक राजनीतिक विशेषज्ञ अब्दुल नसीर रिश्तिया ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया को बताया ” ये बैठकों अफगानिस्तान की संपत्ति जारी करने या गरीबी कम करने या किसी भी तरह की सहायता प्रदान करने में प्रभावी नहीं होंगी।” “इन चुनौतियों का समाधान तब तक नहीं होगा जब तक तालिबान अंतरराष्ट्रीय समुदाय की शर्तों को पूरा नहीं करता।” वहीं भारत के विशेषज्ञों का भी कहना है कि जब तक देशों को यह भरोसा नहीं हो जाता है कि अफगानिस्तान में महिलाओं और बच्चों के अधिकार सुनिश्चित हैं तब तक उसकी आर्थिक समस्याएं दूर नहीं हो सकती। हालांकि विशेषज्ञ मानवीय सहायता जारी रखने के पक्ष में हैं।
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