वर्ल्ड न्यूज, अमर उजाला
Published by: प्रशांत कुमार झा
Updated Fri, 24 Dec 2021 03:08 PM IST
सार
विश्लेषकों का कहना है कि बातचीत से टीटीपी को दहशतगर्दी छोड़ने के लिए तैयार करने की पाकिस्तान सरकार की रणनीति सफल होने की शुरू से ही कोई संभावना नहीं थी। टीटीपी का मकसद बिल्कुल अलग है। वह पाकिस्तान में शरिया कानून पर आधारित इस्लामी व्यवस्था कायम करने के लिए लड़ रहा है।
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विस्तार
बातचीत जारी रहने की वजह से नौ नवंबर से 10 दिसंबर तक हमलों की संख्या कम रही। जबकि उसके पहले अफगानिस्तान पर अफगान तालिबान के कब्जे के समय से टीटीपी ने पाकिस्तान में हमले तेज कर रखे थे। इस साल जुलाई से सितंबर के बीच उसने पाकिस्तान में 44 हमले किए, जिनमें 73 लोग मारे गए थे।
विश्लेषकों का कहना है कि बातचीत से टीटीपी को दहशतगर्दी छोड़ने के लिए तैयार करने की पाकिस्तान सरकार की रणनीति सफल होने की शुरू से ही कोई संभावना नहीं थी। टीटीपी का मकसद बिल्कुल अलग है। वह पाकिस्तान में शरिया कानून पर आधारित इस्लामी व्यवस्था कायम करने के लिए लड़ रहा है। जानकारों के मुताबिक , टीटीपी का अफगान तालिबान से करीबी रिश्ता है, लेकिन उसने इस्लामिक स्टेट- खुरासान (आईएसआईएस-के) से भी संबंध बना रखे हैँ।
टीटीपी ने अफगान तालिबान को धमकी
अमेरिकी थिंक टैंक कारनेगी एन्डॉवमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस ने अपनी एक रिपोर्ट में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के हवाले से बताया था कि आईएसआईएस-के निकट भविष्य में अमेरिका सहित अन्य पश्चिमी देशों पर हमला करने में सक्षम है। कारनेगी एन्डॉवमेंट की इसी रिपोर्ट में ये बताया गया कि हाल में टीटीपी ने अफगान तालिबान को धमकी दी है कि अगर उसने पाकिस्तान सरकार से समझौता करने के लिए उस पर ज्यादा दबाव डाला, तो वह अपनी वफादारी बदल कर आईएसआईएस-के के खेमे में शामिल हो जाएगा। इसके पहले 2020 में अमेरिका की एक आतंकवाद संबंधी रिपोर्ट में बताया कहा था कि टीटीपी का अल-कायदा से भी गहरा रिश्ता है।
टीटीपी पाकिस्तान और अफगानिस्तान पर हमला करने में सक्षम
विश्लेषकों के मुताबिक, इन जानकारियों का मतलब यह है कि अफगान तालिबान का साथ मिले या नहीं, टीटीपी पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों जगहों पर हमले करने में सक्षम है। टीटीपी के दोनों देशों में अड्डे हैं। इन विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि टीटीपी ने अपना ध्यान राजनीतिक समाधान के बजाय सैनिक रास्ते से जीत पर केंद्रित रखा है।
इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि पाकिस्तान सरकार और टीपीपी के बीच बातचीत के लिए मध्यस्थता अफगान तालिबान ने की थी। मगर अफगान तालिबान के इस हस्तक्षेप के बावजूद टीटीपी अपने मुख्य रुख पर कायम रहा। पाकिस्तान सरकार के एक राजनयिक अधिकारी ने वेबसाइट एशिया टाइम्स को बताया कि अफगान तालिबान एक सीमा से आगे टीटीपी पर दबाव नहीं डाल सकता। अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की मौजूदगी के दौरान अफगान तालिबान और टीटीपी ने मिल कर लड़ाई लड़ी। उससे उनमें भाईचारा पैदा हुआ। अफगान तालिबान पाकिस्तान के लिए इस रिश्ते को तोड़ देगा, इसकी कोई संभावना नहीं है।