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NSE Case: कैसे हिमालय के रहस्यमयी योगी के आदेश पर CEO चलाती रहीं स्टॉक एक्सचेंज? 10 बिंदुओं में जानें पूरा घोटाला

चित्रा रामकृष्ण।

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Fri, 18 Feb 2022 10:41 AM IST

सार

Chitra Ramkrishna NSE case: अमर उजाला आपको बिंदुवार तरीके से बता रहा है कि एनएसई की चित्रा रामकृष्णन से जुड़ा यह पूरा मामला क्या है, इसकी शुरुआत कब हुई और अब सेबी ने इस घोटाले को लेकर क्या कदम उठाए हैं…

चित्रा रामकृष्ण।
– फोटो : अमर उजाला।

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विस्तार

भारत के वित्तीय नियामक सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) ने पिछले हफ्ते नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में गड़बड़ियों को लेकर कई चौंकाने वाले खुलासे किए। सेबी ने एनएसई की पूर्व मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) और प्रबंधन निदेशक (एमडी) चित्रा रामकृष्ण पर तीन करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया। आरोप हैं कि चित्रा ने स्टॉक एक्सचेंज की कई गुप्त जानकारियां बिना पहचान वाले व्यक्ति से साझा कर दीं। इस अनजान व्यक्ति की सलाह पर ही उन्होंने एनएसई में एक नया पद बनाया और एक सरकारी कंपनी के सामान्य से अधिकारी को इस पद पर बैठा दिया। 

सबसे आश्चर्य की बात यह है कि सेबी ने जब चित्रा से सवाल पूछे तो उन्होंने कहा कि इन सब फैसलों के लिए उन्हें ‘हिमालय के एक योगी’ ने सलाह दी थी, जिसे उन्होंने खुद न कभी देखा और न ही कभी बात की। चित्रा ने कहा कि वे सिर्फ इस रहस्यमयी योगी के ई-मेल के आधार पर अपने फैसले लेती थीं। 

एनएसई में हुए पूरे गड़बड़झाले, पूर्व सीईओ चित्रा रामकृष्ण की तरफ से लिए गए फैसलों का यह मामला काफी जटिल है। अमर उजाला आपको बिंदुवार तरीके से बता रहा है कि आखिर यह पूरा मामला है क्या, इसकी शुरुआत कब हुई और अब सेबी ने इस घोटाले को लेकर क्या कदम उठाए हैं…

1. कौन हैं चित्रा रामकृष्ण

चित्रा रामकृष्ण 2013 से लेकर 2016 तक नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) की सीईओ और एमडी रहीं। वे 1990 में एनएसई की शुरुआत से ही इससे जुड़ी थीं। उन्हें 2009 में एनएसई का संयुक्त प्रबंध निदेशक नियुक्त किया गया था। 2013 में उन्हें सीईओ पद सौंप दिया गया। 2016 में उन्हें पद के गलत इस्तेमाल और एक घोटाले से नाम जुड़ने के बाद एनएसई से निकाल दिया गया। 

चित्रा पर आरोप हैं कि उन्होंने 2013 से 2016 के बीच पद पर रहते हुए कई ऐसे फैसले लिए, जिन्हें शेयर बाजार के हित से जुड़ा नहीं माना गया। इनमें एक फैसला था आनंद सुब्रमण्यम की नियुक्ति का, जिनके लिए चित्रा ने एनएसई में अधिकारी स्तर का पद सृजित किया। इतना ही नहीं, चित्रा ने अपने कार्यकाल के दौरान हर बार आनंद सुब्रमण्यम को प्रमोशन दिया और करोड़ों की तनख्वाह भी पहुंचाई। सेबी ने मामले की जांच आनंद सुब्रमण्यम की नियुक्ति में हुई गड़बड़ियों को लेकर ही शुरू की थी, जिसके बाद इतने बड़े मामले का खुलासा हुआ है। 

2. कौन हैं आनंद सुब्रमण्यम?

आनंद सुब्रमण्यम एक अप्रैल, 2013 को एनएसई में चीफ स्ट्रैटिजिक एडवाइजर (सीएसई) के पद पर नियुक्त हुए थे। वे इसके बाद एक अप्रैल 2015 से लेकर 21 अक्तूबर 2016 तक एनएसई के ग्रुप ऑपरेटिंग ऑफिसर (जीओओ) और एमडी-सीईओ चित्रा सुब्रमण्यम के सलाहकार के पद पर भी रहे। ये दोनों ही पद एनएसई में चित्रा सुब्रमण्यम की नियुक्ति से पहले नहीं थे।

3. एनएसई में कैसे हुई सुब्रमण्यम की भर्ती?

सेबी की जांच आनंद सुब्रमण्यम की भर्ती को लेकर ही शुरू हुई थी। यानी जांच की पहली कड़ी सुब्रमण्यम ही थे। वे एनएसई में शामिल होने से पहले बामर एंड लॉरी नाम की एक कंपनी में काम करते थे। यहां उनकी तनख्वाह 15 लाख रुपये सालाना थी। साथ ही पूंजी बाजार में उन्हें काम का कोई अनुभव नहीं था। 

आरोप है कि इस सबके बावजूद तत्कालीन सीईओ चित्रा रामकृष्ण ने उन्हें एनएसई में चीफ स्ट्रैटिजिक ऑफिसर (सीएसई) के पद पर भर्ती कर लिया। इतना ही नहीं, उन्हें 1.68 करोड़ रुपये का सैलरी पैकेज भी दिया गया। हफ्ते में उन्हें सिर्फ चार दिन ही काम करना होता था। 

4. क्या थीं सुब्रमण्यम की भर्ती में गड़बड़ियां, कैसे सेबी की निगाह में आया?

एनएसई में सुब्रमण्यम की भर्ती सीधे चित्रा रामकृष्ण ने की। आरोप है कि इसके लिए स्टॉक एक्सचेंज के ह्यूमन रिसोर्स (एचआर) डिपार्टमेंट से भी चर्चा नहीं की गई। इसके अलावा एनएसई में भर्ती के लिए कोई विज्ञापन या नोटिस भी जारी नहीं हुआ था, न ही इस पद के लिए कोई और नाम सामने आए। सुब्रमण्यम की भर्ती सीधे रामकृष्ण से इंटरव्यू के बाद हो गई थी। हालांकि, इस इंटरव्यू की कोई भी जानकारी सुब्रमण्यम की फाइल में नहीं मिली। 

जांच कहती है कि नियुक्ति के बाद सुब्रमण्यम की तनख्वाह और मुआवजे को अप्रत्याशित रूप से बढ़ाया गया। वित्त वर्ष 2017 में सुब्रमण्यम सलाहकार रहने के बावजूद एनएसई से 4.21 करोड़ रुपये तनख्वाह के तौर पर ले रहे थे। यह तनख्वाह एक्सचेंज के कई बड़े और वरिष्ठ अफसरों की तनख्वाह से भी ज्यादा थी। सुब्रमण्यम को यह फायदे एनएसई के प्रबंधन में प्रमुख लोगों की सूची में शामिल हुए बिना मिले थे।

एनएसई में हो रहे इस गड़बड़झाले पर सेबी की जांच के दौरान सामने आया कि रामकृष्ण ने स्टॉक एक्सचेंज की कई आंतरिक गोपनीय जानकारियां बाहर साझा कीं। इन जानकारियों में एनएसई की संगठनात्मक संरचना (यानी कौन किस पद पर है, क्या कार्य करता है), डिविडेंड सिनेरियो (लाभांश परिदृश्य), वित्तीय नतीजे, मानव संसाधन विभाग की नीतियां, विनियामकों को दी गई प्रतिक्रियाएं शामिल थीं। चित्रा ने यह जानकारियां 2014-2016 के बीच एक अज्ञात व्यक्ति से शेयर की थीं।

5. सेबी के सामने कैसे आई हिमालय के रहस्यमयी योगी’ की कहानी

जब सेबी ने चित्रा रामकृष्ण से एनएसई की गोपनीय जानकारियों को बाहर साझा करने पर सवाल पूछा, तो उन्होंने बताया कि rigyajursama नाम से बनी ईमेल आईडी एक सिद्धपुरुष/योगी की है, जो कि हिमालय में वर्षों से विचरण कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ईमेल लिखने वाले योगी आध्यात्मिक शक्ति रखते हैं। पिछले 20 वर्षों से उन्हें रास्ता दिखा रहे हैं और वे अपनी इच्छा के अनुसार ही प्रकट होंगे।

सेबी ने इस मामले में जो आदेश दिया है, उसमें कहा गया कि चित्रा रामकृष्ण इस योगी से काफी प्रभावित थीं। इसी योगी ने ही चित्रा को ईमेल लिखे और उन्हें सुब्रमण्यम की भर्ती से लेकर उन्हें दी जाने वाली तनख्वाह तक के बारे में निर्देश दिए। मजेदार बात यह है कि ये ईमेल चित्रा रामकृष्ण के साथ सुब्रमण्यम को भी भेजे जाते थे। इतना ही नहीं, इसी रहस्यमयी योगी ने रामकृष्ण को सुब्रमण्यम और बाकी वरिष्ठ अफसरों के प्रमोशन को लेकर बार-बार सलाहें दीं।

6. क्या एनएसई को पता थी रामकृष्ण के योगी से संपर्क की बात?

सेबी के मुताबिक, एनएसई के अधिकारियों को पता था कि रामकृष्ण एक योगी से सलाह के जरिए ही अपने फैसले लेती थीं। हालांकि, स्टॉक एक्सचेंज बोर्ड ने यह सब जानते हुए भी सेबी को इसकी जानकारी नहीं दी। सेबी ने अपने आदेश में एनएसई को रामकृष्ण पर कार्रवाई न करने के लिए लताड़ लगाई। साथ ही उन्हें बिना अपने गलत कामों के नतीजे भुगते ही इस्तीफा लेकर निकालने के फैसले पर भी सवाल खड़े किए। 

7. कौन करता था चित्रा को मेल?

कंसल्टेंसी फर्म अर्न्स्ट एंड यंग (E&Y) की ओर से किए गए फॉरेंसिक ऑडिट में सामने आया है कि आनंद सुब्रमण्यम खुद इस मेल आईडी से योगी के तौर पर रामकृष्ण को ईमेल करते थे। अपने इसी हथकंडे से सुब्रमण्यम ने चित्रा रामकृष्ण के हर फैसले को प्रभावित किया। 

27 नवंबर 2018 को सेबी को भेजे गए एक पत्र में एनएसई ने कहा था कि उसके कानूनी सलाहकारों ने इस मामले में मनोवैज्ञानिकों से भी चर्चा की थी। मनोवैज्ञानिकों ने बताया था कि आनंद सुब्रमण्यम ने नई पहचान बनाकर रामकृष्ण को प्रभावित किया और अपने हिसाब से एनएसई के फैसले करवाए। जहां सुब्रमण्यम से रामकृष्ण हर मामले में सलाह लेती थीं, वहीं फैसलों के लिए वे पूरी तरह योगी पर निर्भर थीं। 

NSE Scam: चित्रा के पीछे का असली चित्र चौंकाने वाला, एनएसई जैसे संस्थान भी राम भरोसे

8. सेबी के 190 पन्नों के आदेश में क्या?

सेबी ने अपने आदेश में कहा है कि यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि ईमेल आईडी चलाने वाला व्यक्ति आनंद सुब्रमण्यम ही था। अर्न्स्ट एंड यंग की रिपोर्ट से साफ है कि एनएसई के पिछले पांच साल की गोपनीय जानकारियां जैसे- बिजनेस प्लान, लाभांश का भुगतान, बोर्ड मीटिंग का एजेंडा, कर्मचारियों और अधिकारियों के प्रमोशन, इन सबकी जानकारी बाहर साझा की गई थी। 

9. चित्रा रामकृष्ण से पहले सेबी के सीईओ रहे रवि नारायण पर केस क्यों?

सेबी के आदेश में कहा गया है कि रवि नारायण को एनएसई में सुब्रमण्यम की भर्ती को लेकर किए गए गड़बड़झाले की जानकारी थी। इसके अलावा उन्हें यह भी पता था कि चित्रा रामकृष्ण की तरफ से किसी अज्ञात व्यक्ति को एक्सचेंज की गोपनीय जानकारियां मुहैया कराई जा रही हैं। इसके बावजूद 21 अक्तूबर 2016 और 29 नवंबर 2016 को हुई बोर्ड की बैठक में नारायण ने इन मुद्दों का जिक्र नहीं किया। 

10. सेबी की तरफ से किस पर, क्या जुर्माना लगाया गया?

सेबी ने चित्रा रामकृष्ण पर तीन करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। उन्हें शेयर बाजार से जुड़े किसी भी संस्थान या सेबी में रजिस्टर्ड किसी मध्यस्थ संस्था में शामिल होने से तीन साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है। इसके अलावा सेबी ने एनएसई को आदेश दिया है कि वह रामकृष्ण को बची हुई छुट्टियों के लिए किए गए भुगतान की 1.54 करोड़ रुपये की राशि वापस ले। साथ ही रामकृष्ण को मिलने वाला 2.83 करोड़ का बोनस पेमेंट रोक दें। 

रवि नारायण और आनंद सुब्रमण्यम पर दो-दो करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया है। एनएसई को सख्त निर्देश दिया गया है कि वह छह महीनों तक कोई भी उत्पाद की लॉन्चिंग न करे। इसके अलावा नारायण और सुब्रमण्यम को भी शेयर बाजार से जुड़े किसी भी संस्थान या सेबी में रजिस्टर्ड किसी मध्यस्थ संस्था में शामिल होने से क्रमशः दो साल और तीन साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है।

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