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NCPCR का निर्देश: दारुल उलूम देवबंद की ओर से जारी हो रहे गैरकानूनी फतवों की हो जांच, यूपी सरकार तुरंत करे कार्रवाई

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Sun, 16 Jan 2022 07:16 PM IST

सार

एनसीपीसीआर की तरफ से कहा गया है कि इस तरह के बयान बच्चों के अधिकारों के विपरीत हैं। वेबसाइट तक खुली पहुंच उनके लिए हानिकारक हैं। इसलिए, अनुरोध है कि इस संगठन की वेबसाइट की पूरी तरह से जांच की जाए, ऐसी किसी भी सामग्री को तुरंत हटा दिया जाए। 

दारुल उलूम देवबंद
– फोटो : डेमो

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विस्तार

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने दारुल उलूम देवबंद की ओर से जारी फतवों को लेकर सख्त रुख अपनाया है। आयोग ने यूपी सरकार को निर्देश दिया है कि वह कथित तौर पर गैरकानूनी और भ्रम फैलाने वाले फतवों को लेकर दारुल उलूम देवबंद की वेबसाइट की जांच करे। 

बच्चों के अधिकारों से इस शीर्ष संस्थान ने शनिवार को यूपी के मुख्य सचिव से कहा कि जब तक इस तरह की सामग्री हटा नहीं ली जाती, तब तक इसका एक्सेस ब्लॉक कर दिया जाए, ताकि यह आम लोगों की पहुंच से दूर हो जाए। एनसीपीसीआर ने कहा कि वह यह कार्रवाई उन शिकायतों के मिलने के बाद कर रही है, जिनमें आरोप लगाया गया है कि दारुल उलूम की वेबसाइट में ऐसे कई फतवे जारी किए गए हैं, जो कि देश के कानूनों के सीधे तौर पर खिलाफ हैं। 

आयोग ने यूपी के मुख्य सचिव को लिखी चिट्ठी में कहा कि मामले में बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम की धारा 13 (1) (जे) के तहत शिकायतों का संज्ञान लिया गया। वेबसाइट की जांच करने के बाद पाया गया कि लोगों द्वारा उठाए गए मसलों पर दिए गए स्पष्टीकरण और जवाब देश के कानूनों और अधिनियमों के अनुरूप नहीं हैं।

एनसीपीसीआर की तरफ से कहा गया है कि इस तरह के बयान बच्चों के अधिकारों के विपरीत हैं। वेबसाइट तक खुली पहुंच उनके लिए हानिकारक हैं। इसलिए, अनुरोध है कि इस संगठन की वेबसाइट की पूरी तरह से जांच की जाए, ऐसी किसी भी सामग्री को तुरंत हटा दिया जाए। 

चिट्ठी में मांग की गई है कि जब तक गैरकानूनी बयानों के प्रसार और हिंसा, दुर्व्यवहार, उपेक्षा, उत्पीड़न, बच्चों के खिलाफ भेदभाव की घटनाओं को रोकने के लिए ऐसी सामग्री को हटाया नहीं जाता है तब तक वेबसाइट के एक्सेस को प्रतिबंधित किया जा सकता है। आयोग ने राज्य सरकार को भारत के संविधान, भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), किशोर न्याय अधिनियम-2015 और शिक्षा के अधिकार अधिनियम-2009 के प्रावधानों का कथित रूप से उल्लंघन करने के लिए संस्थान के खिलाफ जरूरी कार्रवाई करने के लिये भी कहा है। साथ ही 10 दिनों के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है।

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