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Mithun Chakraborty: ‘अमर उजाला’ से बोले मिथुन, ‘अगर मैं अपनी जड़ों से कट गया तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा’

मिथुन चक्रवर्ती को सिनेमा में आए पांच दशक पूरे होने को हैं। कभी एक दिन में चार फिल्मों की शूटिंग करने वाले मिथुन अब वही किरदार करना चाहते हैं जो उन्हें गुदगुदा सकें। मिथुन देश में सबसे ज्यादा इनकम टैक्स देने का सम्मान जीत चुके हैं। विदेशी ब्रांड्स के भारत आने के शुरूआत दौर में वह ‘नेशनल’ टीवी के ब्रांड अंबेसडर रहे। मिथुन के नाम बतौर मेन लीड सबसे ज्यादा हिंदी फ़िल्में करने का रिकॉर्ड भी है। अब वह अपनी पहली वेब सीरीज ‘बेस्टसेलर’ लेकर आ रहे हैं। इस मौके पर मिथुन चक्रवर्ती से ये खास बातचीत की ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल ने, वह मिथुन को फिल्म ‘भोले शंकर’ में निर्देशित भी कर चुके हैं।

अभी कुछ दिन पहले गंगूबाई काठियावाड़ी’ के निर्माता जयंतीलाल गडा बता रहे थे कि वीडियो लाइब्रेरी के दौर से लेकर सैटेलाइट राइट्स तक मिथुन चक्रवर्ती की लोकप्रियता सबसे आगे रही है, क्या है मिथुन का ये मैजिक?

ये सब मेरे चाहने वालों का प्यार है। मेरे पास मेरे प्रशंसकों का आधार इतना मजबूत है कि मैं अभी तक काम कर पा रहा हूं, नहीं तो कब का मैं रिटायरमेंट लेकर घर बैठ गया होता..

46 साल हो गए आपको अभिनय करते हुए और लोग कहते हैं कि हिंदी सिनेमा में मुंबई के फुटपाथों से उठकर सुपरस्टार बन जाने वाला शख्स न मिथुन से पहले कोई हुआ और शायद ही अब न आगे होगा..

वहीं तो मैं कह रहा हूं कि आप जैसे लोग हैं मेरे साथ शुभ शुभ बोलने वाले, मेरा ख्याल रखने वाले। मैं ये समझता हूं कि लोग मेरे बारे में ऐसा बोलते हैं। लोग मेरे बारे में कहते हैं कि वह एक महान कलाकार है। एक जीती जागती किंवदंती है। लेकिन, ये आप भी जानते हैं कि मैं वही इंसान हूं, जैसा शुरू में था। बतौर इंसान मेरे भीतर कोई बदलाव कम से कम मेरे हिसाब से तो नहीं आया है..

हां, ये तो सच है, इसे तो मैंने खुद देखा है..

ये इसलिए नहीं आया क्योंकि मैं अपने भीतर बदलाव आने ही नहीं देता। मैं कभी नहीं सोचता कि मैं इतना बड़ासुपरस्टार हूं या कि मैं लीजेंडरी सुपरस्टार हूं। लोग तो क्या क्या नहीं बोलते मुझे। लेकिन, मैं इसे बस सुनता हूं। दिमाग तक नहीं आने देता। मैं ये चाहता हूं कि मेरी जो जड़ें हैं, जहां से मैं आ रहा हूं, मेरा वह रास्ता न खो जाए क्योंकि अगर वह कट गया तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा।

 

और, लोग तो अब भी आपके बंगले के सामने साइकिल से ही ना जाने देश के किस किस कोने से पहुंच जाते हैं। ऐसा अब तक कैसे हो रहा है?

वे अपना समझते हैं मुझे। वे समझते हैं कि मैं उनका नेक्स्ट डोर स्टार हूं। पड़ोसी समझते हैं मुझे अपना। उनको लगता है कि मैं उनके गांव का रहने वाला हूं कि वो गांव में जो गली है ना, उसका जो आगे टर्न आएगा ना, उधऱ मिथुन का घर है। उनको लगता है कि वे मुझे हाथ बढ़ाकर छू सकते हैं। और, ये एहसास सबके अंदर है। आप कहीं चले जाइए। बिहार चले जाइए। यूपी चले जाइए। राजस्थान चले जाइए। सबको यही लगता है कि मिथुन मेरे पास वाले घर में ही रहते हैं। मेरा एहसास भी यही रहा है कि मैं एक आम आदमी का हीरो हूं, एक आम आदमी का स्टार…

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