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LGBTQ Based Movies: बॉलीवुड की ये पांच फिल्में एलजीबीटीक्यू समुदाय के प्रति बदल कर रख देंगी आपका नजरिया

देश में भले ही समलैंगिक रिश्तों के कोर्ट ने मान्यता दे दी हो, लेकिन फिर भी समाज के प्रति उनका नजरिया और सोच अभी भी नहीं बदली है। इसी तरह से किन्नरों को लेकर भी लोगों में एक अलग रूढ़िवादी मानसिकता अभी भी बनी हुई है। इसी वजह से  एलजीबीटीक्यू समुदाय के लोगों को समाज में कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ती हैं, हालांकि हिंदी सिनेमा अपनी फिल्मों के जरिए हमेशा से ही इन मुद्दों उठाता रहा है। वैसे तो ज्यादातर देखा जाता है कि लीक से हटकर विषयों पर बनी फिल्मों को कम ही दर्शक मिलते हैं, लेकिन कई ऐसी फिल्में रहीं जिन्होंने समलैंगिक संबंधों और किन्नरों के प्रति समाज का नजरिया बदलने की कोशिश की और हिट भी रहीं। आज नजर डालेंगे ऐसी ही फिल्मों पर जो एलजीबीटीक्यू समाज के प्रति लोगों का नजरिया बदलती हैं।

फायर-1996

दीपा मेहता की फिल्म फायर साल 1996 में आई थी। शायद यह बॉलीवुड की ऐसी पहली फिल्म रही होगी जिसमें समलैंगिकता के मुद्दे को मेनस्ट्रीम में उठाया गया था। 90 के दशक में बनी इस फिल्म में शबाना आजमी और नंदिता दास थीं। उस समय में ऐसे मुद्दों को लेकर लोगों की मानसिकता और भी ज्यादा जड़ थी और यही वजह थी कि लेस्बियन रिश्तें को दर्शाने वाली इस फिल्म को काफी आलोचनाएं झेलनी पड़ीं।

दरमियां-1997

कल्पना लाजिमी की बनी फिल्म दरमियां में किरण खेर और आरिफ जकारिया मुख्य भूमिकाओं में थे। इस फिल्म में ट्रांसजेंडर के दर्द को और समाज में उसके संघर्ष को बखूबी दिखाया गया था। ये फिल्म एक्ट्रेस और उसके किन्नर बेटे के जीवन पर आधारित थी। ट्रांसजेंडर के मुद्दों को दिखाने वाली फिल्म दरमियां को साल 1997 में रिलीज किया गया था।

तमन्ना-1997

निर्देशक महेश भट्ट की फिल्म तमन्ना में मूल रूप से थर्ड जेंडर के प्रति समाज के नकारात्मक पहलू को दर्शाया गया था। इस फिल्म में दिग्गज अभिनेता परेश रावन ने एक किन्नर का किरदार निभाया था जो एक बच्ची (पूजा भट्ट) को पालते हैं। साल 1997 में आई इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था।

अलीगढ़ 2016-

हंसल मेहता की फिल्म ‘अलीगढ़’ एक सच्ची घटना पर आधारित फिल्म थी। इस फिल्म में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रामचंद्र सिरसा की कहानी दिखाई गई थी, जो एक गे थे। यह फिल्म समलैंगिक रिश्ते के मुद्दों को दिखाती है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे रूढ़िवादी लोगों के चलते किसी के जीवन पर किस तरह से नकारात्मक असर पड़ता। साल 2016 में आई मनोज वाजपेयी की इस फिल्म ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं।

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