पूरे देश के लिए आज की सुबह एक दुख भरी खबर लेकर आई। स्वर कोकिला लता मंगेशकर के निधन की खबर सामने आते ही हर कोई टूट गया। लता जी के निधन की खबर सुन ना सिर्फ फिल्म इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ पड़ी है, बल्कि उनके फैंस की आंखें भी नम हो गई है। 8 जनवरी को कोरोना संक्रमित पाई गईं लता मंगेशकर बीते कई दिनों से अस्पताल में भर्ती थी। कोरोना और निमोनिया की चपेट में आने के बाद उनकी तबीयत चिंताजनक बनी हुई थी। हालांकि बाद में कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद उनकी तबीयत में धीरे-धीरे सुधार आ रहा। लेकिन शनिवार को अचानक उनकी हालत से नाजुक हो गई, जिसके बाद रविवार सुबह 8 बजकर 12 मिनट पर सुरों की मल्लिका लता जी ने दुनिया को अलविदा कह दिया।
अपनी मधुर आवाज से लोगों को दीवाना बनाने वालीं लता मंगेशकर की आवाज का जादू आज भी लोगों के सर चढ़कर बोलता है। सुरों की मल्लिका से लेकर स्वर कोकिला तक लता मंगेशकर की आवाज को परिभाषित करने के लिए यह नाम सटीक लगते हैं। अपनी मीठी आवाज के दम पर लता मंगेशकर आज इंडस्ट्री में उस मुकाम तक पहुंच गई हैं, जहां पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं। अपने मधुर गानों से लोगों का मनोरंजन करने वालीं लता जी के एक गाने ने सभी की आंखों में आंसू ला दिए थे। इतना ही नहीं उनके इस गाने को सुन देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी रो पड़े थे। आइए जानते हैं गायिका के इस गाने से जुड़े किस्सों के बारे में-
26 जनवरी हो या 15 अगस्त लोगों में देशभक्ति का जोश भरने वाला गीत ‘ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी’ आज भी देश के लिए कुर्बान हुए शहीदों की याद दिलाता है। यह गाना सुनने में जितना भावुक है, गाने में भी उतना ही भावुक था। दरअसल लोगों की आंखों में आंसू भरने वाला यह गीत खुद लता मंगेशकर और देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की आंखें भी नम कर गया था।
गीत से जुड़े यूं तो कई किस्से मशहूर हैं, लेकिन कहा जाता है कि लता मंगेशकर ने पहले इस गाने को गाने सें मना कर दिया था। बाद में इस गाने के लेखक कवि प्रदीप ने लता जी को इसे गाने के लिए राजी किया था। इतना ही नहीं जब लता जी ने कवि प्रदीप से इस गाने को सुना तो वह इसे सुन रो पड़ी थीं। इस गीत को गाने के लिए गायिका ने प्रदीप के सामने शर्त रखी थी कि जब इस गाने का अभ्यास होगा तो खुद प्रदीप को वहां मौजूद हो रहना होगा। ऐसे में लता जी की इस शर्त को प्रदीप ने स्वीकार कर लिया और फिर यह गाना इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया।
इस गाने का एक किस्सा देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से भी जुड़ा हुआ है। लता जी ने जब इस गाने को नेशनल स्टेडियम में प्रधानमंत्री नेहरू के सामने गाया तो उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। लता जी की आवाज में इस गाने को सुनने के बाद नेहरू जी गायिका से बात करना चाहते थे। इस पर लता मंगेशकर काफी घबरा गई थीं, क्योंकि उन्हें लगा था कि उनसे कोई गलती हो गई है। लेकिन जब वह पंडित जी से मिली तो उनकी आंखों में आंसू थे। इस दौरान उन्होंने लता जी से कहा लता तूने मुझे रुला दिया। इतना ही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि जो इस गाने से प्रेरित नहीं हो सकता मेरे ख्याल से वह हिंदुस्तानी नहीं है।
ऐ मेरे वतन के लोगों यह गीत आज भी लोगों के बीच काफी खास है। इसे सुनते ही हर देशवासी के अंदर जोश और जुनून दौड़ पड़ता है। यह गाना सुनने में जितना खास है। उतना ही खास तरीके से इसे लिखा भी गया था। कहा जाता है कि इस गीत के कवि प्रदीप मुंबई के माहीम बीच पर टहल रहे थे। इस दौरान टहलते हुए उनके दिमाग में गाने के यह शब्द आए। लेकिन तब उनके पास ना ही कलम थी और ना ही कागज। ऐसे में उन्होंने पास से गुजर रहे एक अजनबी से पैन मांगा और सिगरेट की डिब्बी के एलुमिनियम फॉइल पर इस गाने के बोल को लिखा था। कौन जानता था कि सिगरेट के फॉइल पर लिखा यह गाना एक दिन इतिहास बन जाएगा।
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