सार
अगर वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की सालाना रिपोर्ट ‘जेंडर गैप इंडेक्स 2021’ पर गौर करें तो भारत 28 पायदान नीचे नजर आता है। अब यह 156 देशों के सूची में भारत 140वें पायदान पर है।
कोरोना काल में दुनिया थम चुकी थी। कारोबार ठप थे और अगले दिन चूल्हा कैसे जलेगा, इसका जवाब किसी के भी पास नहीं था। ऐसे में मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही की महिलाओं ने अपने खेतों में सब्जियां उगाईं और उन्हें ऑनलाइन बेचना शुरू कर दिया। संकट के उस काल में कुछ ऐसी ही हिम्मत बस्ती के खुशहालगंज गांव में रहने वाली मीना सिंह ने दिखाई। उन्होंने गांव की कई महिलाओं के साथ मिलकर चप्पल बनाने का काम शुरू किया। उन्होंने न सिर्फ अपना घर चलाया, बल्कि आसपास की तमाम महिलाओं को भी रोजगार दिया। ये दो उदाहरण महज बानगी हैं उन महिलाओं की आत्मनिर्भरता के, जिनके हौसले कोरोना काल में भी नहीं टूटे। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है और हम आपको बता रहे हैं कि इस दौरान महिलाओं की स्थिति कैसे रही और उन्होंने हालात का सामना कैसे किया?
आंकड़े बताते हैं कि कोरोना महामारी के दो साल के दौरान अगर सबसे ज्यादा दिक्कत किसी को हुई तो वे महिलाएं थीं। महामारी का हवाला देकर न सिर्फ उनकी नौकरी छीनी गई, बल्कि घर के कामकाज का बोझ भी उन पर काफी ज्यादा बढ़ गया। कूपर ग्रुप के सीईओ और को-फाउंडर मंदार मराठे के मुताबिक, कोरोना काल में 47 फीसदी महिलाओं की नौकरी चली गई। वहीं, दिसंबर 2020 के आखिर तक पुरुषों की तुलना में सात फीसदी महिलाएं अपने काम पर नहीं लौट पाईं।
अगर वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की सालाना रिपोर्ट ‘जेंडर गैप इंडेक्स 2021’ पर गौर करें तो भारत 28 पायदान नीचे नजर आता है। अब यह 156 देशों के सूची में भारत 140वें पायदान पर है। इस रिपोर्ट की मानें तो भारतीय अर्थव्यवस्था में महिलाओं के योगदान और उनके लिए मौजूद अवसरों में पिछले साल के मुकाबले तीन फीसदी की कमी आई है। वहीं, कुल लेबर फोर्स में उनका योगदान महज 22 फीसदी रह गया। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में महिलाओं की बेरोजगारी दर पुरुषों के मुकाबले दोगुनी (17 प्रतिशत) है। वहीं, महामारी से पहले महिलाओं की कमाई प्रति सप्ताह 770 रुपये थी, जो घटकर 180 रुपये प्रति सप्ताह रह गई है।
मंदार बताते हैं कि महिलाएं कार्यस्थल पर पहले से लैंगिक असमानता की शिकार बनती रही हैं और कोरोना काल में इसका फायदा उठाकर उन्हें नौकरी से भी हटाया गया। हालांकि, महिलाओं ने इस दौर की भी चुनौतियों को सामना किया और अपना कारोबार शुरू किया। बचत बढ़ाई और खर्चों में कमी लाकर खुद को आत्मनिर्भर बनाया है। हालांकि, वर्क फ्रॉम होम के दौरान घर में महिलाओं की जिम्मेदारियां काफी ज्यादा बढ़ गईं। इसके अलावा उन्हें पहले के मुकाबले लैंगिक भेदभाव का काफी ज्यादा सामना भी करना पड़ा।
ब्रांच पर्सनल फाइनेंस एप की एमडी इंडिया सुचेता महापात्रा का मानना है कि महामारी के दौर में महिलाओं की कार्यक्षमता पर यकीनन काफी बुरा असर पड़ा, लेकिन अब वे पहले से ज्यादा आत्मनिर्भर हो गई हैं। सुचेता कहती हैं कि हमने महिलाओं को कामयाबी की नई ऊंचाइयों पर पहुंचते देखा है। उन्होंने अपने जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को बेहतरीन तरीके से पार किया और अपने साथ-साथ दूसरे के लिए भी नए रास्ते खोले। महामारी के दौर में उन्होंने घर संभालने के साथ-साथ अपनी नौकरी और कारोबार को भी बखूबी संभालना सीखा। जब महामारी की वजह से महिलाओं का वेतन कटा या उन्हें आय में नुकसान हुआ तो उन्होंने अत्यधिक सतर्कता के साथ प्रबंधन किया और हालात संभाल लिए।
विस्तार
कोरोना काल में दुनिया थम चुकी थी। कारोबार ठप थे और अगले दिन चूल्हा कैसे जलेगा, इसका जवाब किसी के भी पास नहीं था। ऐसे में मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही की महिलाओं ने अपने खेतों में सब्जियां उगाईं और उन्हें ऑनलाइन बेचना शुरू कर दिया। संकट के उस काल में कुछ ऐसी ही हिम्मत बस्ती के खुशहालगंज गांव में रहने वाली मीना सिंह ने दिखाई। उन्होंने गांव की कई महिलाओं के साथ मिलकर चप्पल बनाने का काम शुरू किया। उन्होंने न सिर्फ अपना घर चलाया, बल्कि आसपास की तमाम महिलाओं को भी रोजगार दिया। ये दो उदाहरण महज बानगी हैं उन महिलाओं की आत्मनिर्भरता के, जिनके हौसले कोरोना काल में भी नहीं टूटे। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है और हम आपको बता रहे हैं कि इस दौरान महिलाओं की स्थिति कैसे रही और उन्होंने हालात का सामना कैसे किया?
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