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Houthi Rebels: कौन हैं अबुधाबी एयरपोर्ट पर धमाके करने वाले हूती विद्रोही, आखिर क्यों किया यूएई पर हमला, ईरान से क्या है कनेक्शन? जानें

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Mon, 17 Jan 2022 06:14 PM IST

सार

अमर उजाला आपको बता रहा है कि आखिर यह हूती विद्रोही हैं कौन और आखिर क्यों इस इस्लामिक संगठन की तरफ से एक मुस्लिम देश यूएई को ही निशाना बनाया गया है।

हूती विद्रोही
– फोटो : सोशल मीडिया

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विस्तार

संयुक्त अरब अमीरात के हवाई अड्डे और तेल डिपो पर सोमवार को तीन बड़े धमाके हुए। घटना में तीन लोगों की मौत हुई है, जिसमें दो भारतीय और एक पाकिस्तानी नागरिक शामिल है। इसके अलावा छह लोग गंभीर रूप से जख्मी हैं। इन हमलों की जिम्मेदारी यमन के हूती विद्रोहियों ने ली है। इस संगठन ने यूएई पर आगे भी हमले जारी रखने की चेतावनी जारी की है। ऐसे में दुनियाभर की नजरें इस कट्टरपंथी संगठन पर टिक गई हैं। 

इस बीच अमर उजाला आपको बता रहा है कि आखिर यह हूती विद्रोही हैं कौन और आखिर क्यों इस इस्लामिक संगठन की तरफ से एक मुस्लिम देश यूएई को ही निशाना बनाया गया है। आखिर इस पूरे विवाद में ईरान कहां खड़ा है। 

कौन हैं और कहां से आते हैं हूती?

हूतियों का उदय 1980 के दशक में यमन में हुआ। यह यमन के उत्तरी क्षेत्र में शिया मुस्लिमों का सबसे बड़ा आदिवासी संगठन है। हूती उत्तरी यमन में सुन्नी इस्लाम की सलाफी विचारधारा के विस्तार के विरोध में हैं। 2011 से पहले जब यमन में सुन्नी नेता अब्दुल्ला सालेह की सरकार थी, तब शियाओं के दमन की कई घटनाएं सामने आईं। ऐसे में शियाओं में सुन्नी समुदाय के तानाशाह नेता के खिलाफ गुस्सा भड़क उठा। उन्होंने देखा कि अब्दुल्ला सालेह की आर्थिक नीतियों की वजह से उत्तरी क्षेत्र में असमानता बढ़ी है। वे इस आर्थिक असमानता से नाराज थे।

सरकार की नीतियों के खिलाफ बना हूतियों का विद्रोही संगठन

जर्मन वेबसाइट डायचे वेले के मुताबिक, 2000 के दशक में विद्रोही सेना बनने के बाद हूतियों ने 2004 से 2010 तक सालेह की सेना से छह बार युद्ध किया। साल 2011 में अरब देशों (सऊदी अरब, यूएई, बहरीन और अन्य) के हस्तक्षेप के बाद यह युद्ध शांत हुआ। देश में शांति के लिए बातचीत जारी ही थी कि तानाशाह सालेह को देश की जनता के प्रदर्शनों के चलते पद छोड़ना पड़ा। इस दौरान अब्दरब्बू मंसूर हादी यमन के नए राष्ट्रपति बने। 

देश की जनता ने हादी से सुधारों को लेकर काफी उम्मीदें जताई थीं। लेकिन देश में जिहादियों के बढ़ते हमले, दक्षिणी यमन में अलगाववादी आंदोलन, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सेना का पूर्व राष्ट्रपति सालेह को समर्थन हादी के लिए समस्या बना रहा। आखिरकार जब हूतियों को अपनी समस्याओं का हल होता नहीं दिखा, तो उन्होंने हादी को भी सत्ता से बेदखल कर दिया और राजधानी सना को अपने कब्जे में ले लिया। 

यमन में शियाओं और हूतियों की बढ़ती ताकत से घबराए सऊदी और यूएई

शिया समुदाय से आने वाले हूतियों की यमन में इसी बढ़ती ताकत से सुन्नी बहुल सऊदी अरब और यूएई में घबराहट बढ़ गई। उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन की मदद से हूतियों के खिलाफ हवाई और जमीनी हमले करने शुरू कर दिए और सत्ता से बेदखल हुए हादी का समर्थन किया। इसका असर यह हुआ कि यमन अब युद्ध का मैदान बन चुका है। यहां सऊदी अरब, यूएई की सेनाओं का मुकाबला हूती विद्रोहियों से है।

हूतियों को बढ़ावा देने में ईरान का नाम क्यों?

बताया जाता है कि हूती विद्रोहियों को सीधे तौर पर ईरान का समर्थन हासिल है। दरअसल, ईरान शिया बहुल देश है और हूती मुस्लिम भी इसी समुदाय से आते हैं। इसी सामुदायिक जुड़ाव के चलते ईरान पर हूतियों की मदद के आरोप लगते रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि हूतियों के पास जो हथियार और मिसाइलें मिलती हैं, वे भी ईरान द्वारा निर्मित होती है। इतना ही नहीं इस्लामिक जगत में राज के लिए ईरान का पहले ही सऊदी अरब और यूएई से लंबा विवाद रहा है। ऐसे में ईरान के लिए यमन को अरब देशों के प्रभाव में जाने से रोकना बड़ी चुनौती है। इसीलिए वह हूती विद्रोहियों का समर्थन कर यमन में सऊदी अरब और यूएई को रोकने की कोशिश में लगा है। 

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