अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली।
Published by: Jeet Kumar
Updated Thu, 03 Feb 2022 02:08 AM IST
सार
आरबीआई के कंधे पर इसे नए वित्त वर्ष से शुरू करने की जिम्मेदारी है। पारंपरिक रुपये के साथ इसका इस्तेमाल होता रहेगा। यह डिजिटल करेंसी किसी पारंपरिक नोट या सिक्के जैसी ही है।
ई-सीएनवाई परियोजना से चीन ने 2020 में युआन का डिजिटल करेंसी परीक्षण शुरू किया। वहां के प्रमुख शहरों में लोगों को 200 डिजिटल युआन मुफ्त दिया गया है, जिन्हें 14 दिन में खर्च करने को कहा गया। दुकानदारों को इसे करेंसी नोट जैसा ही मानने को कहा गया। परीक्षण सफल रहा। आज इस डिजिटल युआन को रेनमिनबी नाम से सभी एप स्वीकार कर रहे हैं। बीजिंग ओलंपिक में चीन इसे दुनिया के सामने रख सकता है।
ऐसी ही पहल भारत में भी इस साल होने जा रही है। आम बजट में सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) शुरू करने की घोषणा इसकी शुरुआत है। इससे न सिर्फ पारंपरिक लेनदेन का तरीका बदल जाएगा बल्कि उद्योगों में पारदर्शिता भी आएगी। आरबीआई के कंधे पर इसे नए वित्त वर्ष से शुरू करने की जिम्मेदारी है। पारंपरिक रुपये के साथ इसका इस्तेमाल होता रहेगा। यह डिजिटल करेंसी किसी पारंपरिक नोट या सिक्के जैसी ही है। फर्क सिर्फ इतना है कि इसका अस्तित्व डिजिटल या वर्चुअल है। आरबीआई इसे जारी करेगा, इसलिए इसकी विश्वसनीयता भी वैसी ही रहेगी।
किसे क्या फायदा
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सरकार : आज फिजिकल नोट छापना, चलाना, संभालना और सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। सीबीडीसी न इन समस्याओं से छुटकारा दिलाएगा बल्कि मुद्रा के रखरखाव का खर्च भी कम करे देगा। सरकार के पास हर रुपये के लेनदेन की जानकारी होगी तो कालेधन और भ्रष्टाचार पर लगाम कसेगी।
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आम लोग : नकदी की सुरक्षा को लेकर चिंता से छुटकारा मिलेगा। जिनके पास बैंक खाते नहीं हैं, वे भी बैंकिंग प्रणाली में शामिल हो सकेंगे। एप और फिनटेक कंपनियां डिजिटल रुपया रखने एवं अपने प्लेटफॉर्म से लेनदेन करवाने के लिए ग्राहकों को ऑफर भी दे सकती हैं।
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देश : 90 फीसदी अंतरराष्ट्रीय कारोबार अमेरिकी डॉलर में होता है। चीन इस वर्चस्व को रेनमिनबी से तोड़ना चाहता है। भारत के लिए सही समय है कि डिजिटल रुपये को मजबूती और विश्वसनीयता से वैश्विक मंच पर पेश करे।
भारत-चीन ही नहीं पूरी दुनिया में परीक्षण
- 60 फीसदी देश डिजिटल करेंसी के तकनीकी परीक्षण के ढांचे बना रहे हैं।
- 86 फीसदी केंद्रीय बैंक विभिन्न देशों में डिजिटल करेंसी लाने पर विचार कर रहे हैं।
- 14 फीसदी देशों में इन्हें पायलट प्रोजेक्ट या अन्य किसी रूप में नागरिकों को दिया गया है।
- स्वीडन ने डिजिटल क्रोना का परीक्षण शुरू किया है तो बहामास ने डिजिटल सैंड डॉलर नागरिकों को दिया है।
डिजिटल और क्रिप्टोकरेंसी में फर्क
डिजिटल करेंसी
- केंद्रीकृत व्यवस्था के नियंत्रण में रहती है। यानी देश में सरकार या आरबीआई इसे नियंत्रित करते हैं।
- इसके लिए कानूनी ढांचा भी बनाया जाता है।
- इनका लेनदेन गुप्त रहता है। एक व्यक्ति ने दूसरे को कब और कितने रुपये दिए, यह जानकारी सार्वजनिक मंच पर दिखाने की जरूरत नहीं होती। हालांकि, सरकार इस पर नजर रखती है।
- यह एनक्रिप्टेड नहीं होती।
क्रिप्टोकरेंसी
- पूरी तरह विकेंद्रीकृत व्यवस्था में चलती है। किसी देश, सरकार या बैंक का नियंत्रण नहीं होता है।
- किसी कानूनी ढांचे के अधीन नहीं आती।
- यहां लेनदेन का लेखाजोखा वर्चुअल मंच पर सार्वजनिक रहता है। बिटकॉइन की तरह इसे कोई भी देख सकता है।
- यह पूरी तरह एनक्रिप्टेड होती है।
खतरे भी कायम
डिजिटल करेंसी में सबसे बड़ा खतरा डिजिटल धोखाधड़ी या साइबर अपराध का है। इसे एक पुख्ता व्यवस्था से ही सुरक्षित रखा जा सकता है। साइबर ठगों से बचाने के लिए नागरिकों को इसके उपयोग को लेकर जागरूक करना भी एक चुनौती होगी।
कम होगा मकान खरीदारों का पैसा डूबने का जोखिम
रियल एस्टेट कारोबारियों और डेवलपर्स का कहना है कि डिजिटल रुपया आने से क्षेत्र में पारदर्शिता बढ़ाने में मदद मिलेगी। मकान या अन्य संपत्तियों के खरीदारों के पैसे डूबने का जोखिम कम हो जाएगा।
डेवलपर्स एसोसिएशन नरेडको (नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल) का कहना है कि ब्लॉकचेन तकनीक की मदद से आने वाली आरबीआई की डिजिटल करेंसी की मदद से उद्योग के लिए कामकाज आसान हो जाएगा। इससे न सिर्फ उद्योग को अपनी रफ्तार बढ़ाने में मदद मिलेगी बल्कि ग्राहकों के बीच भरोसा बढ़ाने का भी काम करेगी।
विस्तार
ई-सीएनवाई परियोजना से चीन ने 2020 में युआन का डिजिटल करेंसी परीक्षण शुरू किया। वहां के प्रमुख शहरों में लोगों को 200 डिजिटल युआन मुफ्त दिया गया है, जिन्हें 14 दिन में खर्च करने को कहा गया। दुकानदारों को इसे करेंसी नोट जैसा ही मानने को कहा गया। परीक्षण सफल रहा। आज इस डिजिटल युआन को रेनमिनबी नाम से सभी एप स्वीकार कर रहे हैं। बीजिंग ओलंपिक में चीन इसे दुनिया के सामने रख सकता है।
ऐसी ही पहल भारत में भी इस साल होने जा रही है। आम बजट में सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) शुरू करने की घोषणा इसकी शुरुआत है। इससे न सिर्फ पारंपरिक लेनदेन का तरीका बदल जाएगा बल्कि उद्योगों में पारदर्शिता भी आएगी। आरबीआई के कंधे पर इसे नए वित्त वर्ष से शुरू करने की जिम्मेदारी है। पारंपरिक रुपये के साथ इसका इस्तेमाल होता रहेगा। यह डिजिटल करेंसी किसी पारंपरिक नोट या सिक्के जैसी ही है। फर्क सिर्फ इतना है कि इसका अस्तित्व डिजिटल या वर्चुअल है। आरबीआई इसे जारी करेगा, इसलिए इसकी विश्वसनीयता भी वैसी ही रहेगी।
किसे क्या फायदा
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सरकार : आज फिजिकल नोट छापना, चलाना, संभालना और सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। सीबीडीसी न इन समस्याओं से छुटकारा दिलाएगा बल्कि मुद्रा के रखरखाव का खर्च भी कम करे देगा। सरकार के पास हर रुपये के लेनदेन की जानकारी होगी तो कालेधन और भ्रष्टाचार पर लगाम कसेगी।
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आम लोग : नकदी की सुरक्षा को लेकर चिंता से छुटकारा मिलेगा। जिनके पास बैंक खाते नहीं हैं, वे भी बैंकिंग प्रणाली में शामिल हो सकेंगे। एप और फिनटेक कंपनियां डिजिटल रुपया रखने एवं अपने प्लेटफॉर्म से लेनदेन करवाने के लिए ग्राहकों को ऑफर भी दे सकती हैं।
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देश : 90 फीसदी अंतरराष्ट्रीय कारोबार अमेरिकी डॉलर में होता है। चीन इस वर्चस्व को रेनमिनबी से तोड़ना चाहता है। भारत के लिए सही समय है कि डिजिटल रुपये को मजबूती और विश्वसनीयता से वैश्विक मंच पर पेश करे।
भारत-चीन ही नहीं पूरी दुनिया में परीक्षण
- 60 फीसदी देश डिजिटल करेंसी के तकनीकी परीक्षण के ढांचे बना रहे हैं।
- 86 फीसदी केंद्रीय बैंक विभिन्न देशों में डिजिटल करेंसी लाने पर विचार कर रहे हैं।
- 14 फीसदी देशों में इन्हें पायलट प्रोजेक्ट या अन्य किसी रूप में नागरिकों को दिया गया है।
- स्वीडन ने डिजिटल क्रोना का परीक्षण शुरू किया है तो बहामास ने डिजिटल सैंड डॉलर नागरिकों को दिया है।
डिजिटल और क्रिप्टोकरेंसी में फर्क
डिजिटल करेंसी
- केंद्रीकृत व्यवस्था के नियंत्रण में रहती है। यानी देश में सरकार या आरबीआई इसे नियंत्रित करते हैं।
- इसके लिए कानूनी ढांचा भी बनाया जाता है।
- इनका लेनदेन गुप्त रहता है। एक व्यक्ति ने दूसरे को कब और कितने रुपये दिए, यह जानकारी सार्वजनिक मंच पर दिखाने की जरूरत नहीं होती। हालांकि, सरकार इस पर नजर रखती है।
- यह एनक्रिप्टेड नहीं होती।
क्रिप्टोकरेंसी
- पूरी तरह विकेंद्रीकृत व्यवस्था में चलती है। किसी देश, सरकार या बैंक का नियंत्रण नहीं होता है।
- किसी कानूनी ढांचे के अधीन नहीं आती।
- यहां लेनदेन का लेखाजोखा वर्चुअल मंच पर सार्वजनिक रहता है। बिटकॉइन की तरह इसे कोई भी देख सकता है।
- यह पूरी तरह एनक्रिप्टेड होती है।
खतरे भी कायम
डिजिटल करेंसी में सबसे बड़ा खतरा डिजिटल धोखाधड़ी या साइबर अपराध का है। इसे एक पुख्ता व्यवस्था से ही सुरक्षित रखा जा सकता है। साइबर ठगों से बचाने के लिए नागरिकों को इसके उपयोग को लेकर जागरूक करना भी एक चुनौती होगी।
कम होगा मकान खरीदारों का पैसा डूबने का जोखिम
रियल एस्टेट कारोबारियों और डेवलपर्स का कहना है कि डिजिटल रुपया आने से क्षेत्र में पारदर्शिता बढ़ाने में मदद मिलेगी। मकान या अन्य संपत्तियों के खरीदारों के पैसे डूबने का जोखिम कम हो जाएगा।
डेवलपर्स एसोसिएशन नरेडको (नेशनल रियल एस्टेट डेवलपमेंट काउंसिल) का कहना है कि ब्लॉकचेन तकनीक की मदद से आने वाली आरबीआई की डिजिटल करेंसी की मदद से उद्योग के लिए कामकाज आसान हो जाएगा। इससे न सिर्फ उद्योग को अपनी रफ्तार बढ़ाने में मदद मिलेगी बल्कि ग्राहकों के बीच भरोसा बढ़ाने का भी काम करेगी।
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