सार
बांग्लादेश के अस्तित्व में आने के आज 50 साल पूरे हो चुके हैं। भारत के विजय दिवस और बांग्लादेश के बिजोय दिबोस के इस अहम मौके पर हम आपके लिए लेकर आए हैं पाकिस्तान के बंटवारे और भारत की बुलंदी की वह दास्तां, जो यकीनन इतिहास से रूबरू कराते हुए आपको रोमांचित करेगी।
आज विजय दिवस की 50वीं वर्षगांठ
– फोटो : अमर उजाला
1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। 1965 के बाद पाकिस्तान को भारत के हाथों एक बार फिर पराजय का सामना करना पड़ा। इसके अलावा दुनिया के नक्शे पर एक और देश का जन्म हो गया, लेकिन सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के महज 24 साल बाद ही उसके टुकड़े क्यों हो गए? क्यों उसका एक हिस्सा टूटकर बांग्लादेश बन गया? क्या बांग्लादेश के जन्म की कहानी 1971 में ही शुरू हुई थी या इसके बीज भी 1947 में ही बो दिए गए थे और भारत इस लड़ाई में क्या सिर्फ बांग्लादेश की मदद करने के लिए कूदा या इसके पीछे भी कोई दूसरा ही मकसद था? अगर विजय दिवस, जिसे बांग्ला में बिजोय दिबोस भी कहते हैं, की 50वीं वर्षगांठ पर आपके मन में भी तमाम ऐसे सवाल हैं तो यह स्पेशल रिपोर्ट खास आपके लिए ही तैयार की गई है।
1950 में ही पड़ गई थी बंटवारे की नींव
बात जब भी भारत-पाकिस्तान के बीच दूसरे युद्ध और बांग्लादेश के जन्म की होती है तो सबसे पहले साल 1971 का जिक्र होता है, लेकिन यह बात बेहद कम ही लोग जानते हैं कि बांग्लादेश के गठन की नींव एक तरह से भारत-पाकिस्तान विभाजन के तुरंत बाद ही पड़ने लगी थी। बंगाली अस्मिता और उसकी पहचान को लेकर तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में जातीय संघर्ष की शुरुआत हो गई थी, लेकिन असल शुरुआत 1950 में हुई थी। दरअसल, यह वही साल था, जब भारत ने अपना संविधान लागू कर दिया था और उसकी देखादेखी पाकिस्तान भी इसकी तैयारी में जुट गया था। उसी दौरान पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले बंगालियों ने बांग्ला भाषा को उचित प्रोत्साहन देने की मांग करते हुए आंदोलन शुरू कर दिया। कुछ दिन बाद यह आंदोलन भले ही खत्म हो गया, लेकिन इसमें उठाई गईं मांगें धीरे-धीरे परवान चढ़ती रहीं।
लगातार बिगड़ते रहे पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के रिश्ते
भारत-पाक विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान के पूर्वी और पश्चिमी हिस्से में रहने वाले लोगों के बीच मनमुटाव बढ़ रहा था। यह तनातनी सिर्फ अलग-अलग क्षेत्र में रहने की ही नहीं, बल्कि भाषा, संस्कृति, रहन-सहन और विचारों के आधार पर भी थी। ऐसे में शेख मुजीबुर्रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान की आजादी के लिए संघर्ष शुरू कर दिया था और इसके लिए उन्होंने छह सूत्रीय कार्यक्रम का एलान भी किया था। इन सभी कदमों की वजह से वह और अन्य कई बंगाली नेता पाकिस्तान के निशाने पर आ गए थे। पाकिस्तान ने दमन नीति के तहत शेख मुजीबुर्रहमान और अन्य लोगों पर मुकदमा चलाया, लेकिन यह चाल उस पर भारी पड़ गई।
1970 के आम चुनाव ने की आखिरी चोट
1950 में शुरू हुए आंदोलन को पश्चिमी पाकिस्तान ने भले ही दबा दिया, लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में रहने वाले बंगालियों की मांगों का हल नहीं निकाल पाया। यही वजह रही कि तनातनी का यह दौर धीरे-धीरे 1970 तक पहुंच चुका था। साल खत्म होने की ओर था और पाकिस्तान में आम चुनाव की शुरुआत हो गई थी। उस दौर में शेख मुजीबुर्रहमान ने अपनी लोकप्रियता साबित की और उनकी राजनीतिक पार्टी पूर्वी पाकिस्तानी अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान की 169 में से 167 सीटों पर जीत हासिल की। इससे मुजीबुर्रहमान के पास 313 सीटों वाली पाकिस्तानी संसद में सरकार बनाने के लिए जबर्दस्त बहुमत था, लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान पर शासन कर रहे लोगों को सियासत में उनका दखल मंजूर नहीं था। इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की नाराजगी बढ़ गई और उन्होंने आंदोलन शुरू कर दिया, जिसे दबाने के लिए पूर्वी पाकिस्तान में सेना भेज दी गई।
…और अस्तित्व में आ गया बांग्लादेश
पूर्वी पाकिस्तान में शुरू हुआ पाकिस्तानी सेना का अत्याचार लगातार बढ़ता जा रहा था। मार्च 1971 में तो पाकिस्तानी सेना ने बर्बरता की हर हद पार कर दी। पूर्वी पाकिस्तान की आजादी की मांग करने वाले लोगों की बेरहमी से हत्याएं की गईं। महिलाओं से दुष्कर्म जैसी घटनाएं आम हो गईं। ऐसे में पूर्वी पाकिस्तान से भागकर भारत आने वाले शरणार्थियों की संख्या बढ़ने लगी और भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने के दबाव में भी इजाफा हो गया। ऐसे में मार्च 1971 के अंत में भारत सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान की मुक्तिवाहिनी की मदद करने का फैसला कर लिया। दरअसल, मुक्तिवाहिनी पूर्वी पाकिस्तान के लोगों द्वारा तैयार की गई सेना थी, जिसका मकसद पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराना था। 31 मार्च, 1971 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारतीय संसद में इस संबंध में अहम एलान किया। 29 जुलाई, 1971 को भारतीय संसद में सार्वजनिक रूप से पूर्वी बंगाल के लड़ाकों की मदद करने की घोषणा की गई। हालांकि, इसके बाद भी कई महीने तक दोनों देशों के बीच शीत युद्ध चलता रहा। तीन दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान ने भारत के कई शहरों पर हमला किया तो भारत को भी युद्ध का एलान करना पड़ा। महज 13 दिन बाद यानी 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के साथ ही दुनिया के नक्शे पर नया देश बांग्लादेश बन गया। हालांकि, बांग्लादेश आज भी 26 मार्च को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है, क्योंकि 1971 में इसी तारीख को शेख मुजीबुर्रहमान ने पूर्वी पाकिस्तान की आजादी का एलान किया था।
भारत ने तय किए कई कूटनीतिक आयाम
1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुई इस जंग में भारत ने कई कूटनीतिक आयाम भी तय किए। इनकी मदद से भारत ने सिर्फ पूर्वी पाकिस्तान को पाकिस्तान के जुल्म से आजाद ही नहीं कराया, बल्कि दुनिया से अपने फैसलों की धाक भी मनवाई। दिसंबर 1971 में पाकिस्तान से युद्ध शुरू होने से पहले दोनों देशों के बीच शीत युद्ध जारी था। उस दौरान अक्टूबर-नवंबर के महीने में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने यूरोप व अमेरिका का दौरा किया था। साथ ही, दुनिया के सामने भारत के नजरिए को पेश किया। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि उस दौर में अमेरिका पाकिस्तान का समर्थन करके चीन से अपने रिश्ते सुधारना चाहता था। इस वजह से उसने भारत की बात सुनने से साफ इनकार कर दिया। ऐसे में भारत ने सोवियत संघ से सहयोग संधि की, जिसका फायदा उसे 1971 की जंग में बखूबी मिला। दरअसल, भारत-पाक युद्ध के दौरान एक वक्त पर अमेरिका पाकिस्तान की मदद के लिए आगे आ गया था। उसने जापान के करीब तैनात अपने नौसेना के सातवें बेड़े को पाकिस्तान की मदद के लिए बंगाल की खाड़ी की ओर भेज दिया था। ऐसे में रूस ने भारत की मदद के लिए परमाणु क्षमता से लैस अपनी पनडुब्बी और विध्वंसक जहाजों को प्रशांत महासागर से हिंद महासागर की ओर भेज दिया। ऐसे में अमेरिकी सेना पाकिस्तान की मदद के लिए नहीं पहुंच सकीं और 1971 की जंग का परिणाम भारत के पक्ष में आ गया।
विस्तार
1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ। 1965 के बाद पाकिस्तान को भारत के हाथों एक बार फिर पराजय का सामना करना पड़ा। इसके अलावा दुनिया के नक्शे पर एक और देश का जन्म हो गया, लेकिन सवाल यह उठता है कि पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के महज 24 साल बाद ही उसके टुकड़े क्यों हो गए? क्यों उसका एक हिस्सा टूटकर बांग्लादेश बन गया? क्या बांग्लादेश के जन्म की कहानी 1971 में ही शुरू हुई थी या इसके बीज भी 1947 में ही बो दिए गए थे और भारत इस लड़ाई में क्या सिर्फ बांग्लादेश की मदद करने के लिए कूदा या इसके पीछे भी कोई दूसरा ही मकसद था? अगर विजय दिवस, जिसे बांग्ला में बिजोय दिबोस भी कहते हैं, की 50वीं वर्षगांठ पर आपके मन में भी तमाम ऐसे सवाल हैं तो यह स्पेशल रिपोर्ट खास आपके लिए ही तैयार की गई है।
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