न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Thu, 16 Dec 2021 04:43 AM IST
सार
इतिहास के पन्नों में सैम मानेकशॉ से जुड़े कई किस्से लोकप्रिय हैं, लेकिन युद्ध को लेकर इंदिरा गांधी से उनकी कई चर्चाएं भी सार्वजनिक डोमेन में हैं।
सैम मानेकशॉ
– फोटो : सोशल मीडिया
ख़बर सुनें
विस्तार
‘मैं युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहता हूं।’ दिसंबर 1971 में पाकिस्तान से युद्ध से ठीक पहले इंदिरा गांधी ने जब सैम मानेकशॉ युद्ध की तैयारियों के बारे में पूछा तो देश की पीएम को सेना के सर्वोच्च अफसर का जवाब कुछ ऐसा ही था। आज पाकिस्तान पर भारत की जीत को 50 साल पूरे हो चुके हैं। पूरा देश आज विजय दिवस के रंग में डूबा है तो इसके पीछे जहां इंदिरा गांधी की राजनीतिक और सैम मानेकशॉ की रणनीतिक इच्छाशक्ति को बड़ी वजह माना जाता है। 1971 के उस युद्ध में सैम मानेकशॉ की भूमिका कितनी बड़ी और अहम थी, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के अखबार तक आज भी दिल पर पत्थर रखकर कहते हैं कि पाकिस्तान की हार की बड़ी वजह जनरल मानेकशॉ ही थे।
पहले जानें कौन थे सैम मानेकशॉ?
सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में हुआ था। सैम के पिता होर्मुसजी मानेकशॉ चिकित्सक थे। सैम ने छोटे समय के लिए मेडिकल की पढ़ाई नैनीताल के शेरवुड कॉलेज और अमृतसर के हिंदू सभा कॉलेज से की। अपने पिता के खिलाफ जाकर जुलाई 1932 में मानेकशॉ ने भारतीय सैन्य अकादमी में दाखिला लिया और दो साल बाद 4/12 फ्रंटियर फोर्स रेजीमेंट में भर्ती हुए। छोटी-सी उम्र में ही उन्हें युद्ध में शामिल होना पड़ा था।
सैम लाहौर में सिलू बोडे से एक कार्यक्रम में मिले थे। दोनों ने 1939 में शादी कर ली थी। दोनों की दो बेटियां महा दारूवाला और शेरी बाटलीवाला हैं। सिलू का निधन 2001 में हुआ था।
द्वितीय विश्व युद्ध में खाई थीं 7 गोलियां
अपने सैन्य करियर में सैम ने कई कठिनाइयों का सामना किया। छोटी-सी उम्र में ही उन्हें युद्ध में शामिल होना पड़ा। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सैम के शरीर में 7 गोलियां लगी थीं। सबने उनके बचने की उम्मीद ही छोड़ दी थी, लेकिन डॉक्टरों ने समय रहते सारी गोलियां निकाल दीं और उनकी जान बच गई।
जब सैम का जवाब सुनकर इंदिरा गांधी भी रह गई थीं दंग
इतिहास के पन्नों में सैम मानेकशॉ से जुड़े कई किस्से लोकप्रिय हैं, लेकिन युद्ध को लेकर इंदिरा गांधी से उनकी कई चर्चाएं भी सार्वजनिक डोमेन में हैं। इस तरह के दो किस्सों के बारे में हम आपको बता रहे हैं।
किस्सा-1: जब इंदिरा गांधी को आठ महीने तक युद्ध से रोका
अप्रैल 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पाकिस्तान पर हमला करना चाहती थीं। वजह थी पूर्वी बंगाल में बढ़ते पाकिस्तान के जुल्म और वहां से भारत आने वाले शरणार्थियों की बढ़ती संख्या। लेकिन जनरल सैम ने पाकिस्तान से युद्ध करने से साफ इनकार कर दिया था। उन्होंने इंदिरा गांधी से कहा कि इस वक्त हमारी सेना युद्ध के लिए तैयार नहीं है। सेना को प्रशिक्षित करने के लिए कुछ समय चाहिए। उनकी बातें सुनकर इंदिरा दंग रह गईं। उन्होंने सेना के प्रशिक्षण के लिए कुछ समय दे दिया।
किस्सा-2: जब पीएम से बोले- मैं युद्ध के लिए तैयार और तीन हफ्तों में पाक को घुटनों पर लाए
दिसंबर में जब यह तय हो गया कि पाकिस्तान कभी भी भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ सकता है तो इंदिरा गांधी ने फिर से सैम को बुलाया। उन्होंने पूछा कि सैम क्या हम युद्ध के लिए तैयार हैं? इस पर जनरल मानेकशॉ बोले- मैं युद्ध के लिए हमेशा तैयार रहता हूं। उनके इस बयान के तीन हफ्ते के अंदर ही पाकिस्तानी सेना ने घुटने टेक दिए थे।
पाकिस्तानी अखबार भी मानेकशॉ के प्रशंसक
द डॉन अखबार ने जनरल सैम मानेकशॉ के निधन पर एक विशेष लेख निकाला था। इसमें कहा गया था कि सैम मानेकशॉ कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे। सैम बहादुर 1969 में भारत के सेना प्रमुख बने और यहां पाकिस्तान में हमें भारी मन से यह स्वीकार करना होगा कि उनके पूरे करियर की सबसे बड़ी उपलब्धि 1971 में पाकिस्तान की सेना के खिलाफ बड़ी जीत थी। तब हमने पूर्वी पाकिस्तान को गंवा दिया, जो बाद में बांग्लादेश बना।
फील्ड मार्शल की उपाधि पाने वाले पहले भारतीय जनरल
सैन मानेकशॉ को अपने सैन्य करियर के दौरान कई सम्मान प्राप्त हुए। 59 साल की उम्र में उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजा गया। यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय जनरल थे। 1972 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। एक साल बाद 1973 में वह सेना प्रमुख के पद से रिटायर हो गए। सेवानिवृत्ति के बाद वह तमिलनाडु के वेलिंग्टन चले गए। वेलिंग्टन में ही वर्ष 2008 में उनका निधन हो गया।