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समझौता: भारत ने केयर्न्स को दिए 7900 करोड़ रुपये, रेट्रो टैक्स विवाद का किया निपटारा

बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कुमार संभव
Updated Thu, 24 Feb 2022 09:10 PM IST

सार

गौरतलब है कि केयर्न्स ने 2006-07 के दौरान भारत में कारोबार किया था। इसके बाद कंपनी ने भारतीय यूनिट 2011 में वेदांता को बेच दी थी। 

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भारत सरकार ने केयर्न्स एनर्जी पीएलसी को 7900 करोड़ रुपये का भुगतान करके सात साल पुराने टैक्स विवाद पर विराम लगा दिया। बता दें कि यह रकम रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स के रूप में वसूली गई थी। इस संबंध में कंपनी ने भी बयान जारी कर दिया है। 

कैप्रिकॉर्न एनर्जी पीएलसी की ओर से जारी बयान में कहा कि कंपनी को 1.06 बिलियन डॉलर मिले हैं, जिसमें से 70 फीसदी रकम शेयरधारकों को लौटा दी जाएगी। बता दें कि इस मामले में टैक्स डिपार्टमेंट ने 2012 के कानून का इस्तेमाल किया था, जिससे विभाग को 50 साल पीछे जाकर नियम लागू करने का अधिकार मिल गया। ऐसे में वे कंपनियां भी दायरे में आ गईं, जिनका मालिकाना हक भले ही विदेशों में चला गया, लेकिन संपत्ति भारत में थी। इस नियम के तहत केयर्न्स पर 10,247 करोड़ रुपये का टैक्स लगा दिया गया। 

गौरतलब है कि केयर्न्स ने 2006-07 के दौरान भारत में कारोबार किया था। इसके बाद कंपनी ने भारतीय यूनिट 2011 में वेदांता को बेच दी थी। 2014 में इसी कंपनी के लाभ का हवाला देते हुए टैक्स लगा दिया गया। ब्रिटिश कंपनी ने इसके विरोध में मुकदमा दायर कर दिया। साथ ही, कहा कि पुनर्गठन तक कंपनी ने अपने सभी करों का भुगतान कर दिया था और तत्कालीन अधिकारियों ने इसकी पुष्टि भी की थी, लेकिन टैक्स डिपार्टमेंट ने 2014 में कंपनी की भारतीय यूनिट में बचे शेयरों को जब्त कर लिया और बाद में बेच भी दिया। इसके बाद कंपनी का टैक्स रिफंड भी रोक दिया गया और बचे हुए टैक्स की मांग करते हुए लाभांश भी रोक लिया। यह पूरी रकम 7900 करोड़ रुपये थी। 

इसके विरोध में कंपनी ने भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय अदालत में खींच लिया था, जहां सुनवाई के बाद 22 दिसंबर 2020 को फैसला कंपनी के पक्ष में सुनाया गया। फैसले में भारत सरकार को जुटाया गया टैक्स ब्याज और जुर्माने के साथ लौटाने का आदेश दिया गया। 

विस्तार

भारत सरकार ने केयर्न्स एनर्जी पीएलसी को 7900 करोड़ रुपये का भुगतान करके सात साल पुराने टैक्स विवाद पर विराम लगा दिया। बता दें कि यह रकम रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स के रूप में वसूली गई थी। इस संबंध में कंपनी ने भी बयान जारी कर दिया है। 

कैप्रिकॉर्न एनर्जी पीएलसी की ओर से जारी बयान में कहा कि कंपनी को 1.06 बिलियन डॉलर मिले हैं, जिसमें से 70 फीसदी रकम शेयरधारकों को लौटा दी जाएगी। बता दें कि इस मामले में टैक्स डिपार्टमेंट ने 2012 के कानून का इस्तेमाल किया था, जिससे विभाग को 50 साल पीछे जाकर नियम लागू करने का अधिकार मिल गया। ऐसे में वे कंपनियां भी दायरे में आ गईं, जिनका मालिकाना हक भले ही विदेशों में चला गया, लेकिन संपत्ति भारत में थी। इस नियम के तहत केयर्न्स पर 10,247 करोड़ रुपये का टैक्स लगा दिया गया। 

गौरतलब है कि केयर्न्स ने 2006-07 के दौरान भारत में कारोबार किया था। इसके बाद कंपनी ने भारतीय यूनिट 2011 में वेदांता को बेच दी थी। 2014 में इसी कंपनी के लाभ का हवाला देते हुए टैक्स लगा दिया गया। ब्रिटिश कंपनी ने इसके विरोध में मुकदमा दायर कर दिया। साथ ही, कहा कि पुनर्गठन तक कंपनी ने अपने सभी करों का भुगतान कर दिया था और तत्कालीन अधिकारियों ने इसकी पुष्टि भी की थी, लेकिन टैक्स डिपार्टमेंट ने 2014 में कंपनी की भारतीय यूनिट में बचे शेयरों को जब्त कर लिया और बाद में बेच भी दिया। इसके बाद कंपनी का टैक्स रिफंड भी रोक दिया गया और बचे हुए टैक्स की मांग करते हुए लाभांश भी रोक लिया। यह पूरी रकम 7900 करोड़ रुपये थी। 

इसके विरोध में कंपनी ने भारत सरकार को अंतरराष्ट्रीय अदालत में खींच लिया था, जहां सुनवाई के बाद 22 दिसंबर 2020 को फैसला कंपनी के पक्ष में सुनाया गया। फैसले में भारत सरकार को जुटाया गया टैक्स ब्याज और जुर्माने के साथ लौटाने का आदेश दिया गया। 

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