कंपनी का दावा है कि पिछले कुछ सालों में मेटा ने चुनावों के बेहतर सुरक्षा और लोगों को वोट देने और अपने प्लेटफॉर्म को बेस्ट बनाने के लिए भारी निवेश किए हैं। मेटा ने अपने एक बयान में कहा है कि हमने यह जाना है कि सार्वजनिक राय और निर्वाचन स्थल में लोगों के मत पर कुछ विशेष प्रकारों के भाषण सबसे ज्यादा मायने रखने वाला प्रभाव डालते हैं।
इनमें वे विज्ञापन शामिल हैं, जो सामाजिक मुद्दों, चुनावों या राजनैतिक नीति पर हमारे विज्ञापनों के अंतर्गत महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा, बहस या वकालत या विरोध करते हैं। यह प्रवर्तन सामाजिक मुद्दों के नौ विषयों पर आधारित विज्ञापनों पर लागू होगा जिनमें पर्यावरण की राजनीति, अपराध, अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य, राजनैतिक मूल्य एवं शासन-प्रणाली, नागरिक एवं सामाजिक अधिकार, अप्रवास, शिक्षा एवं सुरक्षा और विदेश नीति शामिल हैं।
भारत में साल 2019 के आम चुनावों से पहले चुनावी और राजनैतिक विज्ञापन चलाने के इच्छुक विज्ञापनदाताओं को सरकार द्वारा जारी फोटो आईडी का इस्तेमाल के बाद ही विज्ञापनों का भुगतान किया गया। इसके अलावा डिस्क्लेमर्स लगाकर ऑथोराइजेशन प्रक्रिया से गुजरना भी जरूरी था।
इसका मतलब यह है कि भारत में इस प्रकार के विज्ञापन चलाने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति को सबसे पहले अपनी पहचान और जगह की पुष्टि करनी होगी और इसका ज्यादा विवरण देना होगा कि विज्ञापन के लिए किसने भुगतान किया या विज्ञापन को किसने प्रकाशित किया।
इसमें राजनैतिक हस्तियों, राजनैतिक दलों या चुनावों का हवाला देने वाले विज्ञापन बनाने, रूपांतरित करने, प्रकाशित करने या रोकने वाला कोई भी व्यक्ति शामिल है। ये विज्ञापन सात वर्षों के लिये हमारी एड लाइब्रेरी में भी शामिल हो गए हैं।
मेटा ने कहा, ‘दिसंबर 2021 से हम ऐसे विज्ञापनदाताओं के लिए ऑथोराइजेशन की वही प्रक्रिया अनिवार्य बना रहे हैं, जो फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सामाजिक मुद्दों वाले विज्ञापन चलाना चाहते हैं। फेसबुक पर वह कोई भी राजनैतिक, चुनावी या सामाजिक मुद्दे का विज्ञापन, जिसमें सही ऑथोराइजेशन या डिस्क्लेमर नहीं हैं, प्लेटफॉर्म से हटा दिया जाएगा और सात वर्षों तक एक पब्लिक ऐड लाइब्रेरी में रख दिया जाएगा।’