पुतिन ने बृहस्पतिवार को यूक्रेन पर हमले का आदेश देने से ठीक पहले कहा, किसी को भी यह संदेह न हो कि रूस के खिलाफ सीधे जंग में उतरकर बच जाएगा, रूस के खिलाफ किसी भी संभावित हमले के नतीजे हमलावर के लिए बहुत विनाशकारी होंगे। इस तरह पुतिन ने परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के खुले संकेत देते हुए साफ कर दिया कि यूक्रेन में जारी मौजूदा रूसी सैन्य अभियान दुनिया को परमाणु युद्ध की तरफ धकेल सकती है।
दुनिया के सर्वनाश का खतरा
अगर रूस यूक्रेन में ही रुकता है, तो संभव है, परमाणु युद्ध की नौबत नहीं आए। लेकिन, रूस अगर नाटो सदस्यों में से कि भी देश की तरफ बढ़ा, तो निश्चित तौर पर दुनिया भयावह परमाणु युद्ध की चपेट में आ सकती है।
रूस भी नहीं चाहता पश्चिम से टकराव
सवाल उठता है कि जब बाइडन ने पहले ही साफ कर दिया था कि यूक्रेन में अमेरिकी या नाटो सेना नहीं भेजी जाएगा, तो पुतिन को परमाणु हथियारों की धमकी क्यों देनी पड़ी। जाहिर है, रूस पश्चिम के साथ किसी भी सैन्य टकराव से बचना चाहता है। इसी वजह से उसने ऐसी धमकी दी है।
दूरगामी नतीजे देख खामोश है अमेरिका
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन इस खतरे से अवगत हैं कि यदि नाटो ने यूक्रेन में सेना भेजी, तो अमेरिका रूस के बीच सीधी लड़ाई शुरू हो सकती है, जो परमाणु हथियारों के इस्तेमाल और तीसरे विश्व युद्ध में तब्दील हो सकती है। यही वजह है कि अमेरिका ने रूसी हमले को एक मौन स्वीकृति दी ।
अमेरिका ने भी दबाव में बदली एटमी नीति
पश्चिमी देशों के दबाव में ही अमेरिका ने अपने परमाणु जखीरे को छोटा किया था और इस पर अपनी नीतियों को सुस्त किया था। बाइडन प्रशासन ने कुछ समय पहले ही परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की नीति की समीक्षा की थी।
हिरोशिमा-नागासाकी का आज भी मलाल
1945 में अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए, इन हमलों में 2 लाख लोग मारे गए। मानवता के खिलाफ सबसे बड़े अपराध का अमेरिका को अब भी मलाल है।
एटमी होड़ घटने से मिली राहत
द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद थोड़े समय बाद तक अमेरिका का दुनिया में एकमात्र परमाणु ताकत संपन्न देश था। लेकिन, कुछ वर्षों के बाद सोवियत संघ ने परमाणु बम हासिल कर लिया।
-दोनों देशों में कई दशक तक अधिक शक्तिशाली हथियार बनाने और विकसित करने के लिए हथियारों की होड़ में लगी रही।
-1991 में सोवियत संघ के अंत के और बोरिस येल्तसिन के नेतृत्व में रूस में लोकतंत्र के आगमन की वेला में अमेरिका और रूस अपने हथियारों को सीमित करने पर सहमत हुए।
-सोवियत संघ के विघटन के बाद यूक्रेन, कजाखस्तान और बेलारूस ने स्वेच्छा से परमाणु त्याग दिए।