भारतीय विदेश मंत्रालय और कूटनीतिक जानकारों के सामने यह सवाल यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा हो गया है। हालांकि सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि रूस की सेना यूक्रेन की राजधानी कीव में घुस चुकी है। यह तेजी से निर्णायक मोड़ की तरफ बढ़ रही है। हालांकि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के मुताबिक यह युद्ध लंबा चलेगा और इससे पैदा होने वाले असर के लिए तैयार रहना चाहिए।
वरसाव से लौटे भारतीय राजनयिक ने बताया कि कीव में हालात चिंताजनक हैं। वहां बिजली, पानी की आपूर्ति का संकट खड़ा हो रहा है। खाने के सामान की किल्लत बढ़ रही है। अब हालात ज्यादा जटिल होते जा रहे हैं। रूस ने बुल्गारिया, पोलैंड और चेक रिपब्लिक के लिए भी एयरस्पेस बंद कर दिया है।
अभी अकेले लड़ रहे हैं यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की
रूस की सैन्य और मारक क्षमता यूक्रेन के मुकाबले 8-10 गुणा अधिक है। रूस के करीब दो लाख सैनिक यूक्रेन के हौसले को पस्त करने में लगे हैं। इसके लिए रूस ने वायुसेना, काला सागर में नौसेना के जरिए यूक्रेन की जबरदस्त घेरेबंदी कर रखी है। पूरे हवाई क्षेत्र को घेर रखा है। इस लड़ाई में यूरोपीय देश और अमेरिका तथा उसके नेतृत्व वाला नाटो संगठन यूक्रेन को सैन्य मदद देने का निर्णय नहीं ले पा रहा है।
खुद यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की का कहना है कि वह और उनका देश सहयोगियों की मदद से अकेले रूस के आक्रमण का मुकाबला कर रहा है। इस दौरान कीव में कर्फ्यू काफी कड़ा कर दिया गया है। भारतीय राजनयिकों का भी कहना है कि यूक्रेन से भारतीय छात्रों को निकालना मुश्किल होता जा रहा है। भारत अपने छात्रों को निकालने के लिए वायुसेना का ऑपरेशन शुरू करने पर विचार कर रहा है।
आर्थिक प्रतिबंधों से क्या हैं आगे के खतरे?
अमेरिका और उसके दबदबे वाले नाटो संगठन के देश तथा यूरोप के पास रूस को सबक सिखाने का अभी सबसे कारगर हथियार आर्थिक प्रतिबंध लगाना ही है। जैसे-जैसे तारीख आगे बढ़ रही है, अमेरिका ने दुनिया के तमाम देशों पर रूस के खिलाफ माहौल बनाने पर फोकस करना और समर्थन के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया है। समझा जा रहा है कि जल्द ही भारत को भी रूस के साथ किसी भी तरह के व्यापार, रक्षा सौदे, आयात-निर्यात आदि के लिए अमेरिकी घुड़की का सामना करना पड़ सकता है।
इसकी जद में चीन जैसे देश भी आ सकते हैं। फिलहाल अमेरिका, ब्रिटेन समेत तमाम देश रूस के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबंध को कड़ा करते जा रहे हैं। राष्ट्रपति पुतिन और विदेश मंत्री लावरोव की संपत्ति पर ब्रिटेन प्रतिबंध लगा चुका है। अमेरिका ने पुतिन की अपने देश में यात्रा को भी प्रतिबंधित कर दिया है। जर्मनी ने नार्ड स्ट्रीम-2 गैस परियोजना को स्थगित कर दिया है। ब्रिटेन ने रूस के पांच बैंकों के कामकाज और पुतिन के करीबी तथा रूस के तीन प्रमुख उद्योगपतियों की संपत्ति को भी जब्त करने की घोषणा की है। रोमानिया, पोलैंड, समेत तमाम देश ताजा हालत पर मंथन के लिए समीक्षा बैठक कर रहे हैं।
क्या होगा इन आर्थिक प्रतिबंधों का असर?
अभी रूस के राष्ट्रपति पुतिन किसी भी तरह के प्रतिबंध की घोषणा को बहुत गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। हालांकि भारतीय जानकारों का कहना है कि यूक्रेन में घुसने के बाद रूस ने जहां अपनी मजबूती दिखाई है, वहीं हालात भी जटिल हो रहे हैं। यूरोप में प्राकृतिक गैस की कीमत कई गुणा बढ़ रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 125 डॉलर प्रति बैरल से अधिक जाने का अनुमान है। यूरोप में अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान पहुंचने की आशंका है। बताते हैं कुछ समय बाद इसका रूस पर बुरा असर पड़ता हुआ भी दिखाई देगा। कुल मिलाकर धीरे-धीरे स्थिति जटिल होती जा रही है।
अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मामलों पर नजर रखने वाले विपुल दास कहते हैं कि रूस पर आर्थिक प्रतिबंध और रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद केवल मास्को को ही नुकसान नहीं होगा। इसकी जद में पूरी दुनिया आएगी। इससे यूरोप पर काफी बड़ा आर्थिक बोझ बढ़ने वाला है। कच्चे तेल और गैस के दाम तो बढ़ेंगे ही, इसके साथ-साथ सामान्य मंहगाई में भी काफी बढ़ोत्तरी होगी। भारत जैसे देश को भी इसके दुष्प्रभाव का सामना करना पड़ेगा।
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी क्यों नहीं भेज रहे हैं सेना? कितना टिकेगा यूक्रेन?
पूर्व सैन्य अधिकारी मेजर जनरल एसके सिन्हा कहते हैं कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस या किसी भी देश के यूक्रेन के पक्ष में सेना भेजने का अर्थ है कि तीसरे विश्व युद्ध को दावत देना। इसलिए नाटो संगठन यह रिस्क नहीं उठाना चाह रहे हैं। इन देशों को उम्मीद थी कि आर्थिक प्रतिबंध समेत अन्य कार्रवाई से डरकर रूस के राष्ट्रपति यूक्रेन से सेना को वापस बैरक में बुला लेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जनरल सिन्हा ने कहा कि रूस की प्लानिंग बहुत सुनियोजित और अच्छी है।
रूस ने चारों तरफ से यूक्रेन को घेर रखा है। उसके निशाने पर कीव है। कीव पहुंचने के लिए रूस के सैन्य बलों ने अपनी सीमा से कीव तक एक गलियारा जैसा रास्ता चुना है। वह सीधे 200 किमी भीतर घुस गए। इसके पहले साइबर वार करके उन्होंने कीव के कम्युनिकेशन सिस्टम तक पैठ बनाई। रूस के सैनिक यूक्रेन के तमाम शहरों से होकर कीव बढ़ने के बजाय सीधे वहां तक पहुंच रहे हैं। प्लानिंग की सफलता का बड़ा कारण है कि यूक्रेन तक जाने वाली जमीन, हवा और समुद्र के सभी रास्ते को मास्को ने अपने नियंत्रण में ले रखा है। इसलिए यूक्रेन द्वारा राजधानी कीव को बचाने में अधिक प्रतिरोध खड़ा कर पाने की संभावना काफी कम है।