सार
2001 से ही नरेंद्र मोदी के साथ विवादों के जुड़ने का जो दौर शुरू हुआ, वह अब तक जारी है। अमर उजाला आपको बता रहा है कि नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद वह कौन से विवाद हैं, जिन पर विपक्ष उन्हें आज तक घेर रहा है।
पीएम मोदी के सत्ता में रहते हुए 20 साल पूरे।
– फोटो : Amar Ujala
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गुजरात की राजनीति में नरेंद्र मोदी का उदय 21वीं सदी की शुरुआत में ही तय हो गया था। 1998 में गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले मोदी ने शंकर सिंह वाघेला की बजाय केशुभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाना तय करवाया और पार्टी को टूटने से बचा लिया। इसके साथ ही मोदी को राज्य में भाजपा के जीतने का अहम कारण माना जाने लगा। 2001 में जब केशुभाई पटेल के शासन के दौरान भुज में बड़ा भूकंप आया, तब स्थितियों को न संभाल पाने की वजह से भाजपा के नेतृत्व को कमजोर माना गया।
इसका असर यह हुआ कि भाजपा ने उपचुनाव में कुछ सीटें गंवा दीं। बताया जाता है कि जब केंद्रीय नेतृत्व ने पटेल की सरकार को लेकर मोदी से जानकारी मांगी, तो उनकी राय नकारात्मक रही। इसके बाद जब मोदी को डिप्टी सीएम बनने का प्रस्ताव दिया गया, तो उन्होंने यह पद लेने से इनकार कर दिया। आखिरकार 3 अक्टूबर 2001 को मोदी को गुजरात का सीएम पद सौंपा गया। भाजपा ने 2002 का विधानसभा चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ा और जबरदस्त जीत हासिल की। इन दोनों वाकयों के बाद शंकर सिंह वाघेला से लेकर केशुभाई पटेल तक के समर्थक मोदी पर अपने साथी नेताओं की ताकत कम करने का आरोप लगाते रहे।
मोदी के सत्ता में रहते हुए जो सबसे बड़ा विवाद उनसे जुड़ा, वह था 2002 का गुजरात दंगा। गोधरा कांड के बाद गुजरात में हिंदू-मुस्लिमों के बीच हुए दंगों ने राज्य की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया। विपक्ष ने इन दंगों के बाद मोदी पर ही दंगों की साजिश रचने का आरोप लगा दिया। उधर, कुछ और दलों ने कहा कि मोदी ने दंगों के बीच पुलिस को कार्रवाई करने से रोका, जिसके चलते ज्यादा लोगों की जान गई। इन दंगों की वजह से ही अमेरिका ने मोदी की देश में एंट्री को बैन कर दिया था। गुजरात दंगों को लेकर बैठी जांच में पीएम मोदी को भी आरोपी बनाया गया था। हालांकि, बाद में उन्हें क्लीन चिट मिल गई।
28 फरवरी 2002 को गुजरात में दंगों के दौरान अहमदाबाद के चमनपुरा में एक सोसाइटी में गुस्साई भीड़ ने पत्थरबाजी शुरू कर दी थी। आसपास के कई मकानों में आग भी लगा दी गई। इसमें कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की मौत हो गई थी, जबकि 31 लोग घटना के बाद लापता घोषित हुए थे। इस घटना की जांच के बाद लापता लोगों को मृत मान लिया गया था। कुल 69 लोगों की मौत रिकॉर्ड हुई थी। इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने मुख्यमंत्री मोदी को जिम्मेदार बताया था। उनका आरोप था कि मोदी एक सांसद की भी सुरक्षा नहीं कर पाए। तीस्ता ने लंबे समय तक मोदी को घेरना जारी रखा, लेकिन बाद में खुद उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लग गए।
संजीव भट्ट गुजरात कैडर के पूर्व आईपीएस अफसर थे, जिन्होंने गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट दाखिल कर सनसनी पैदा कर दी थी। उन्होंने दावा किया था कि वे सीएम की तरफ से बुलाई उस मीटिंग का हिस्सा थे, जिसमें पुलिस अफसरों को कथित तौर पर दंगाइयों पर कोई कार्रवाई न करने के आदेश दिए गए थे। हालांकि, बाद में मामले की जांच के लिए बनी एसआईटी और सुप्रीम कोर्ट ने भट्ट के आरोपों को झूठा पाया और कहा कि उन्होंने ऐसी कोई बैठक में हिस्सा नहीं लिया था। 2015 में भट्ट को सेवा से गैरहाजिर रहने के आरोप में आईपीएस पद से हटा दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पाया था कि भट्ट कई मामलों में विपक्षी पार्टियों के संपर्क में थे और उन्हें दबाव बनाने के लिए ही खड़ा किया गया था।
अक्तूबर 2012 में हिमाचल प्रदेश में एक चुनावी रैली के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने शशि थरूर पर परोक्ष हमले के दौरान सुनंदा पुष्कर को ’50 करोड़ की गर्लफ्रेंड’ करार दिया था। मोदी का ये बयान राजनीतिक हलकों और सोशल मीडिया में चर्चा का मुद्दा बना था। हालांकि, मोदी ने किसी का नाम नहीं लिया और कहा, ‘कांग्रेस के एक नेता थे, जो मंत्री थे। उन पर क्रिकेट से संपत्ति बनाने का आरोप था। भाजपा नेता का इशारा थरूर और उनसे जुड़े 2011 के आईपीएल विवाद को लेकर था जिसमें पुष्कर शामिल थीं और आखिरकार थरूर को मंत्री पद गंवाना पड़ा था।
गुजरात में लोकायुक्त की तैनाती को लेकर भी लंबे समय तक विवाद चला। राज्य में 2009 में कमला बेनीवाल के राज्यपाल का पद संभालने के बाद सरकार ने कई बार लोकायुक्त नियुक्ति के लिए नाम उनके पास भेजे। लेकिन कभी नेता प्रतिपक्ष, तो कभी गुजरात हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की आपत्ति रही। इसके बाद जब बेनीवाल ने मुख्य न्यायाधीश के प्रस्ताव पर आरए मेहता का नाम लोकपाल बनाने के लिए तय किया, तो मोदी सरकार इसके खिलाफ पहले गुजरात हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक गई। लेकिन उसे दोनों ही अदालतों में सफलता नहीं मिली।
नरेंद्र मोदी पर देर-सबेर मीडिया को साधने के आरोप भी लगते रहे हैं। इसी सिलसिले में उनके साथ एक विवाद 2013 में जुड़ा, जब एक अखबार ने दावा किया था कि मोदी ने उत्तराखंड में आई त्रासदी के बीच 15 हजार लोगों को निकाल लिया। अखबार ने इसे मोदी का रैंबो ऐक्ट (बहादुरी भरा काम) करार दिया था। हालांकि, जब मोदी पर इस दावे को लेकर सवाल उठे, तो अखबार गुपचुप तरीके से माफी मांगकर अपनी बात से पीछे हट गया।
मोदी ने आम चुनाव से पहले 2013 में रॉयटर्स को एक इंटरव्यू दिया था। इसमें गुजरात दंगों पर जब उनसे पूछा गया कि क्या जो कुछ हुआ था, उसका उन्हें दुख है? इस पर मोदी ने कहा था, “दुख तो होता ही है। अगर कुत्ते का बच्चा भी कार के नीचे आ जाए तो भी दुख होता है।” मोदी के इस बयान के बाद ट्विटर पर #PuppyGate ट्रेंड होने लगा और लोगों ने आरोप लगाया कि मोदी ने गुजरात दंगों में मारे गए लोगों की तुलना कुत्ते के बच्चे से कर दी। हालांकि, बयान पर बवाल होने पर मोदी ने खुद ट्विटर के जरिए सफाई दी। उन्होंने ट्वीट किया, “हमारी संस्कृति में जीवन का हर रूप अनमोल और पूजनीय माना जाता है।”
2012 में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पीएम के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट करना शुरू किया, तब उनके गुजरात मॉडल को भी जोर-शोर से प्रचारित किया गया। हालांकि, इस बीच विपक्ष ने गुजरात में फैले कुपोषण पर भाजपा को घेर लिया। दरअसल, पूरा विवाद राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की एक रिपोर्ट आने के बाद खड़ा हुआ था, जिसमें गुजरात में सेहत और कुपोषण की स्थित चिंताजनक बताई गई थी। देश के बड़े औद्योगिक राज्यों में स्वास्थ्य के मामले में गुजरात को इस रिपोर्ट में बहुत नीचे दर्शाया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात में स्वास्थ्य का स्तर राष्ट्रीय स्तर और कुछ गरीब राज्यों से भी नीचे था।
इसे लेकर जब मोदी से सवाल पूछा गया तो उन्होंने यह कह कर विवाद को और बढ़ा दिया था कि लड़कियां सुंदर दिखने की चाहत में सेहत से खिलवाड़ करती हैं। मोदी ने इंटरव्यू के दौरान कहा था कि गुजरात में मध्यम वर्गीय लोगों की तादाद ज्यादा है। यह लोग अपनी सेहत से ज्यादा अपनी सुंदरता व फिगर पर ध्यान देते हैं, इसलिए ऐसे लोग कुपोषण का शिकार होते हैं।
प्रधानमंत्री बनने से पहले मोदी अपने साथी नेताओं के बयानों की वजह से भी कई बार विपक्ष के निशाने पर आ गए। ऐसा ही एक बयान विश्व हिंदू परिषद के प्रवीण तोगड़िया का था, जब उन्होंने कथित तौर पर हिंदू बहुल इलाकों में बसे मुसलमानों को बलपूर्वक निकालने की बात कही थी। इस मामले में चुनाव आयोग ने उनके भाषण का टेप भी मांग लिया था। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि तोगड़िया का बयान मोदी की बांटने वाली राजनीति का ही हिस्सा है। इसे लेकर जब विवाद ज्यादा बढ़ा, तो मोदी ने खुद ट्वीट कर कहा था- “इस तरह के बयान देने वालों से मैं अपील करता हूं कि वे ऐसे बयान देने से बचें।”
हिंदूवादी संगठनों की तरफ से मोदी पर एक बार फिर तब निशाना साधा गया था, जब उन्होंने एक रैली के दौरान कहा था कि देश में पहले शौचालय बनने चाहिए और फिर देवालय यानी मंदिर। एक समारोह में मोदी ने कहा था कि हिंदुत्ववादी नेता की छवि होने के बाद भी उनमें यह बात कहने का साहस है। उन्होंने कहा, ‘मुझे हिंदुत्ववादी नेता कहा जाता है। मेरी छवि मुझे ऐसा कहने नहीं देगी, लेकिन मुझमें यह कहने का साहस है। वाकई मेरी सोच है-पहले शौचालय, फिर देवालय।’ उनके इस बयान पर विपक्ष को तो उन्हें घेरने का मौका मिला ही। ऊपर से विश्व हिंदू परिषद ने मोदी पर जबरदस्त हमले किए। प्रवीण तोगड़िया ने कहा है कि मोदी के बयान से हिंदुओं की भावनाओं को चोट पहुंची है और हिंदुओं का अपमान हुआ है, इसलिए भाजपा को माफी मांगनी चाहिए।
नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव के दौरान एक और मामले में विवाद में घिरे थे। चुनाव के एक चरण के दौरान उन्होंने भाजपा के चुनाव चिह्न ‘कमल’ के स्टिकर को हाथ में पकड़कर भाषण दिया था। साथ ही मतदान करने के बाद कमल के निशान के साथ सेल्फी भी पोस्ट की। इसे लेकर काफी विवाद हुआ था और विपक्ष ने इसकी शिकायत बाद में चुनाव आयोग से भी की। आखिर में चुनाव आयोग ने मोदी को ऐसी किसी भी गतिविधि से बचने की हिदायत दी थी।
विवादों से मोदी का नाता पीएम बनने के बाद भी नहीं छूटा। जनवरी 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मुलाकात के वक्त एक खास बंद गला सूट पहना था। इस सूट पर पीले रंग की लंबी पट्टियां थी, जिस पर उनका पूरा नाम नरेंद्र दामोदरदास मोदी लिखा था। मोदी के इस सूट की कीमत शुरुआत में 20 लाख बताई गई और समय के साथ विपक्ष ने इसे 15 लाख और 10 लाख रुपये का सूट भी बताया और लगातार मोदी को घेरने की कोशिश की। हालांकि, बाद में सामने आया कि सूट को हीरा कारोबारी रमेश कुमार भीखाभाई विरानी ने मोदी को गिफ्ट किया था। विरानी ने अपने बयान में कहा था कि मैंने गुजरात वाइब्रेंट के दौरान मुलाकात पर उन्हें (प्रधानमंत्री मोदी) को सूट गिफ्ट किया था। इस सूट को 2017 में नीलाम कर दिया गया।
मोदी ने 2014 के आम चुनाव से पहले कहा था कि वे स्विट्जरलैंड के बैंकों में जमा काले धन की एक-एक पाई भारत में लाएंगे। मोदी ने यहां तक कहा था कि अगर विदेश में जमा पूरा काला धन वापस भारत आ जाए, तो हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपये तक आ जाएंगे। पीएम बनने के बाद इन्हीं भाषणों को लेकर विपक्ष ने मोदी को कई बार घेरा। राहुल गांधी समेत कई कांग्रेसी नेताओं ने मोदी से काला धन वापस लाने को लेकर जानकारियां मांगीं। यह मुद्दा 2019 के चुनाव में फिर उछला, जब विपक्ष ने पूछा कि नोटबंदी से कितना काला धन जब्त हुआ और गरीबों के खाते में आने वाले 15 लाख रुपये कहां हैं?
2014 में लोकसभा चुनाव में बंपर जीत हासिल करने के बाद मोदी को बड़ा झटका 2015 में बिहार चुनाव के दौरान लगा था। तब भाजपा पर धर्म की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए अवॉर्ड वापसी अभियान की शुरुआत हुई। इस अभियान के तहत देशभर के 30 से ज्यादा साहित्यकारों और लेखकों ने खुद को मिले सम्मान लौटा दिए। इस लिस्ट में उदय प्रकाश, कृष्णा सोब्ती, मंगलेश डबराल, काशीनाथ सिंह, राजेश जोशी, केकी दारूवाला, अंबिकादत्त, मुनव्वर राणा समेत कई बड़े नाम शामिल रहे। इस अभियान के चलते प्रधानमंत्री मोदी की छवि को पहली बार धक्का लगा था।
मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद जर्मनी यात्रा के दौरान एक सभा में कहा था कि भारत की छवि अब स्कैम इंडिया से बदलकर स्किल इंडिया की हो रही है। इसके अलावा कनाडा दौरे पर मोदी ने कहा था कि जिन्हें गंदगी करनी थी, वो तो गंदगी कर के चले गए। साफ हम कर रहे हैं। मोदी के इन बयानों के बाद विपक्ष ने उन पर जमकर निशाना साधा और पिछली सरकारों की उपलब्धियां गिनाईं। कांग्रेस ने तो मोदी पर विदेश में भारत की छवि खराब करने का आरोप लगाया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री पर सवाल भी कई बार उठाए जा चुके हैं। इसे लेकर विपक्ष भी हमलावर रहा। दरअसल, दिल्ली के एक वकील ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से आरटीआई के जरिए पीएम मोदी की डिग्री की जानकारी मांगी थी। यूनिवर्सिटी ने दो बार जानकारी के देने से इनकार कर दिया। इससे पहले केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने 1978 के डीयू के बीए पास करने वालों के रिकॉर्ड की पड़ताल करने का निर्देश दिया था। हालांकि, बाद में यह विवाद भी भाजपा की ओर से जवाब आने के बाद खत्म हो गया।
प्रधानमंत्री मोदी पर पहले कार्यकाल से लेकर दूसरे कार्यकाल तक जबरदस्त बहुमत के साथ सरकार चलाने और ताकत का इस्तेमाल करते हुए कई अहम विधेयकों को कानून बनवा लेने का आरोप लगा। पहले जमीन अधिग्रहण अध्यादेश, फिर सीएए-एनआरसी, इसके बाद यूएपीए कानून में संशोधन और अब तीन कृषि कानूनों पर पीएम मोदी लगातार पंजाब-हरियाणा के किसान संगठनों और विपक्षी पार्टियों के निशाने पर हैं। इन्हीं कानूनों के चलते मोदी पर कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने तानाशाही रवैया रखने का आरोप भी लगाया है।
भारत में कोरोना महामारी के दौरान दुनिया में सबसे सख्त लॉकडाउन लगा था। हालांकि, इसका फायदा यह हुआ था कि भारत में जनवरी-फरवरी तक कोरोना मामले 20 हजार से भी कम पर स्थिर हो चुके थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कोरोना को हरा देने का ऐलान कर दिया। उन्होंने लगातार जनता को मास्क पहनने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के साथ सावधान रहने की भी अपील की। लेकिन मोदी की आधी बात सुनते हुए लगभग सभी राज्यो ने लोगों के मिलने-जुलने की सभी जगहों को खोल दिया। खुद भाजपा समेत कई राजनीतिक दलों ने चुनावी रैलियां कीं और कई धार्मिक आयोजन भी हुए। इसका असर यह हुआ कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर ने जमकर कहर बरपाया और मोदी के कोरोना पर जीत वाले बयान की चौतरफा आलोचना हुई।
मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार रक्षा से जुड़े एक मुद्दे पर भी लगातार घिरी है। यह मुद्दा है राफेल डील का। दरअसल, भाजपा सरकार ने ही फ्रांस के साथ राफेल फाइटर जेट्स खरीदने की डील फाइनल की। हालांकि, कांग्रेस ने इस समझौते में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और कहा कि डील महंगी हुई और इसे प्रधानमंत्री की ओर से एचएएल की जगह अपने पसंदीदा उद्योगपतियों को सौंपा गया। राफेल पर विपक्ष के विरोध के बीच यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। हालांकि, कोर्ट ने सीएजी जांच के आधार पर राफेल डील मामले में सरकार को राहत दी।
मजेदार बात यह है कि जब कांग्रेस इस डील पर सवाल उठा रही थी, तो ज्यादातर समय मोदी चुप ही थे। लेकिन 2019 के चुनाव के दौरान जब मोदी रायबरेली में चुनाव प्रचार कर रहे थे, तो उन्होंने रामचरित मानस का हवाला देते हुए कहा, “कुछ लोग झूठ ही स्वीकारते हैं, झूठ ही खाते हैं और झूठ ही चबाते हैं। मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने देश की सुरक्षा को ताक पर रखकर सेना को झूठा बताया। अब उसे देश की सर्वोच्च अदालत भी झूठी लगने लगी है। वे न्यायपालिका को भी अविश्वास के कठघरे में खड़ा करते हैं।” उन्होंने कहा, “रक्षा सौदों में पिछली सरकारों ने घोटाला किया। इन सौदों में हमारी ईमानदारी और पारदर्शिता से कांग्रेस बौखला गई है। वह नहीं चाहती कि देश की सेना मजबूत हो।”
विस्तार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज सत्ता में रहते हुए 20 साल पूरे कर लिए हैं। मोदी ने 7 अक्टूबर 2001 को गुजरात के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके बाद वे 2014 में आम चुनाव जीतने तक गुजरात के सीएम बने रहे और फिर उन्होंने देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला। इस पद पर रहते हुए भी उन्हें सात साल का समय हो चुका है। शासन में रहते हुए अपने 20 वर्षों में मोदी के नाम कई उपलब्धियां जुड़ीं। हालांकि, 2001 से ही उनके साथ विवादों के जुड़ने का जो दौर शुरू हुआ, वह अब तक जारी है। विपक्ष ने कई बार उन्हें घेरने की कोशिश भी की, लेकिन इनमें से कई कोशिशें विफल हुईं।
1. साथी भाजपा नेताओं की ताकत कम करने के आरोप
गुजरात की राजनीति में नरेंद्र मोदी का उदय 21वीं सदी की शुरुआत में ही तय हो गया था। 1998 में गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले मोदी ने शंकर सिंह वाघेला की बजाय केशुभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाना तय करवाया और पार्टी को टूटने से बचा लिया। इसके साथ ही मोदी को राज्य में भाजपा के जीतने का अहम कारण माना जाने लगा। 2001 में जब केशुभाई पटेल के शासन के दौरान भुज में बड़ा भूकंप आया, तब स्थितियों को न संभाल पाने की वजह से भाजपा के नेतृत्व को कमजोर माना गया।
इसका असर यह हुआ कि भाजपा ने उपचुनाव में कुछ सीटें गंवा दीं। बताया जाता है कि जब केंद्रीय नेतृत्व ने पटेल की सरकार को लेकर मोदी से जानकारी मांगी, तो उनकी राय नकारात्मक रही। इसके बाद जब मोदी को डिप्टी सीएम बनने का प्रस्ताव दिया गया, तो उन्होंने यह पद लेने से इनकार कर दिया। आखिरकार 3 अक्टूबर 2001 को मोदी को गुजरात का सीएम पद सौंपा गया। भाजपा ने 2002 का विधानसभा चुनाव मोदी के चेहरे पर लड़ा और जबरदस्त जीत हासिल की। इन दोनों वाकयों के बाद शंकर सिंह वाघेला से लेकर केशुभाई पटेल तक के समर्थक मोदी पर अपने साथी नेताओं की ताकत कम करने का आरोप लगाते रहे।
2. 2002 के गुजरात दंगे
मोदी के सत्ता में रहते हुए जो सबसे बड़ा विवाद उनसे जुड़ा, वह था 2002 का गुजरात दंगा। गोधरा कांड के बाद गुजरात में हिंदू-मुस्लिमों के बीच हुए दंगों ने राज्य की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया। विपक्ष ने इन दंगों के बाद मोदी पर ही दंगों की साजिश रचने का आरोप लगा दिया। उधर, कुछ और दलों ने कहा कि मोदी ने दंगों के बीच पुलिस को कार्रवाई करने से रोका, जिसके चलते ज्यादा लोगों की जान गई। इन दंगों की वजह से ही अमेरिका ने मोदी की देश में एंट्री को बैन कर दिया था। गुजरात दंगों को लेकर बैठी जांच में पीएम मोदी को भी आरोपी बनाया गया था। हालांकि, बाद में उन्हें क्लीन चिट मिल गई।
3. गुलबर्ग सोसाइटी केस
28 फरवरी 2002 को गुजरात में दंगों के दौरान अहमदाबाद के चमनपुरा में एक सोसाइटी में गुस्साई भीड़ ने पत्थरबाजी शुरू कर दी थी। आसपास के कई मकानों में आग भी लगा दी गई। इसमें कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की मौत हो गई थी, जबकि 31 लोग घटना के बाद लापता घोषित हुए थे। इस घटना की जांच के बाद लापता लोगों को मृत मान लिया गया था। कुल 69 लोगों की मौत रिकॉर्ड हुई थी। इस मामले में सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ ने मुख्यमंत्री मोदी को जिम्मेदार बताया था। उनका आरोप था कि मोदी एक सांसद की भी सुरक्षा नहीं कर पाए। तीस्ता ने लंबे समय तक मोदी को घेरना जारी रखा, लेकिन बाद में खुद उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लग गए।
4. संजीव भट्ट केस
संजीव भट्ट गुजरात कैडर के पूर्व आईपीएस अफसर थे, जिन्होंने गुजरात दंगों में मोदी की भूमिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक एफिडेविट दाखिल कर सनसनी पैदा कर दी थी। उन्होंने दावा किया था कि वे सीएम की तरफ से बुलाई उस मीटिंग का हिस्सा थे, जिसमें पुलिस अफसरों को कथित तौर पर दंगाइयों पर कोई कार्रवाई न करने के आदेश दिए गए थे। हालांकि, बाद में मामले की जांच के लिए बनी एसआईटी और सुप्रीम कोर्ट ने भट्ट के आरोपों को झूठा पाया और कहा कि उन्होंने ऐसी कोई बैठक में हिस्सा नहीं लिया था। 2015 में भट्ट को सेवा से गैरहाजिर रहने के आरोप में आईपीएस पद से हटा दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पाया था कि भट्ट कई मामलों में विपक्षी पार्टियों के संपर्क में थे और उन्हें दबाव बनाने के लिए ही खड़ा किया गया था।
5. शशि थरूर पर तंज
अक्तूबर 2012 में हिमाचल प्रदेश में एक चुनावी रैली के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने शशि थरूर पर परोक्ष हमले के दौरान सुनंदा पुष्कर को ’50 करोड़ की गर्लफ्रेंड’ करार दिया था। मोदी का ये बयान राजनीतिक हलकों और सोशल मीडिया में चर्चा का मुद्दा बना था। हालांकि, मोदी ने किसी का नाम नहीं लिया और कहा, ‘कांग्रेस के एक नेता थे, जो मंत्री थे। उन पर क्रिकेट से संपत्ति बनाने का आरोप था। भाजपा नेता का इशारा थरूर और उनसे जुड़े 2011 के आईपीएल विवाद को लेकर था जिसमें पुष्कर शामिल थीं और आखिरकार थरूर को मंत्री पद गंवाना पड़ा था।
6. गुजरात में लोकायुक्त की तैनाती
गुजरात में लोकायुक्त की तैनाती को लेकर भी लंबे समय तक विवाद चला। राज्य में 2009 में कमला बेनीवाल के राज्यपाल का पद संभालने के बाद सरकार ने कई बार लोकायुक्त नियुक्ति के लिए नाम उनके पास भेजे। लेकिन कभी नेता प्रतिपक्ष, तो कभी गुजरात हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की आपत्ति रही। इसके बाद जब बेनीवाल ने मुख्य न्यायाधीश के प्रस्ताव पर आरए मेहता का नाम लोकपाल बनाने के लिए तय किया, तो मोदी सरकार इसके खिलाफ पहले गुजरात हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट तक गई। लेकिन उसे दोनों ही अदालतों में सफलता नहीं मिली।
7. मीडिया के साथ जुड़ाव
नरेंद्र मोदी पर देर-सबेर मीडिया को साधने के आरोप भी लगते रहे हैं। इसी सिलसिले में उनके साथ एक विवाद 2013 में जुड़ा, जब एक अखबार ने दावा किया था कि मोदी ने उत्तराखंड में आई त्रासदी के बीच 15 हजार लोगों को निकाल लिया। अखबार ने इसे मोदी का रैंबो ऐक्ट (बहादुरी भरा काम) करार दिया था। हालांकि, जब मोदी पर इस दावे को लेकर सवाल उठे, तो अखबार गुपचुप तरीके से माफी मांगकर अपनी बात से पीछे हट गया।
8. मोदी और पपी गेट विवाद
मोदी ने आम चुनाव से पहले 2013 में रॉयटर्स को एक इंटरव्यू दिया था। इसमें गुजरात दंगों पर जब उनसे पूछा गया कि क्या जो कुछ हुआ था, उसका उन्हें दुख है? इस पर मोदी ने कहा था, “दुख तो होता ही है। अगर कुत्ते का बच्चा भी कार के नीचे आ जाए तो भी दुख होता है।” मोदी के इस बयान के बाद ट्विटर पर #PuppyGate ट्रेंड होने लगा और लोगों ने आरोप लगाया कि मोदी ने गुजरात दंगों में मारे गए लोगों की तुलना कुत्ते के बच्चे से कर दी। हालांकि, बयान पर बवाल होने पर मोदी ने खुद ट्विटर के जरिए सफाई दी। उन्होंने ट्वीट किया, “हमारी संस्कृति में जीवन का हर रूप अनमोल और पूजनीय माना जाता है।”
9. गुजरात मॉडल और कुपोषण पर सवाल
2012 में जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को पीएम के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट करना शुरू किया, तब उनके गुजरात मॉडल को भी जोर-शोर से प्रचारित किया गया। हालांकि, इस बीच विपक्ष ने गुजरात में फैले कुपोषण पर भाजपा को घेर लिया। दरअसल, पूरा विवाद राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की एक रिपोर्ट आने के बाद खड़ा हुआ था, जिसमें गुजरात में सेहत और कुपोषण की स्थित चिंताजनक बताई गई थी। देश के बड़े औद्योगिक राज्यों में स्वास्थ्य के मामले में गुजरात को इस रिपोर्ट में बहुत नीचे दर्शाया गया था। रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात में स्वास्थ्य का स्तर राष्ट्रीय स्तर और कुछ गरीब राज्यों से भी नीचे था।
इसे लेकर जब मोदी से सवाल पूछा गया तो उन्होंने यह कह कर विवाद को और बढ़ा दिया था कि लड़कियां सुंदर दिखने की चाहत में सेहत से खिलवाड़ करती हैं। मोदी ने इंटरव्यू के दौरान कहा था कि गुजरात में मध्यम वर्गीय लोगों की तादाद ज्यादा है। यह लोग अपनी सेहत से ज्यादा अपनी सुंदरता व फिगर पर ध्यान देते हैं, इसलिए ऐसे लोग कुपोषण का शिकार होते हैं।
10. विश्व हिंदू संगठन के बयान पर विवाद, मोदी पर भी आई आंच
प्रधानमंत्री बनने से पहले मोदी अपने साथी नेताओं के बयानों की वजह से भी कई बार विपक्ष के निशाने पर आ गए। ऐसा ही एक बयान विश्व हिंदू परिषद के प्रवीण तोगड़िया का था, जब उन्होंने कथित तौर पर हिंदू बहुल इलाकों में बसे मुसलमानों को बलपूर्वक निकालने की बात कही थी। इस मामले में चुनाव आयोग ने उनके भाषण का टेप भी मांग लिया था। विपक्ष ने आरोप लगाया था कि तोगड़िया का बयान मोदी की बांटने वाली राजनीति का ही हिस्सा है। इसे लेकर जब विवाद ज्यादा बढ़ा, तो मोदी ने खुद ट्वीट कर कहा था- “इस तरह के बयान देने वालों से मैं अपील करता हूं कि वे ऐसे बयान देने से बचें।”
11. पहले शौचालय, फिर देवालय पर अपनों ने ही घेरा
हिंदूवादी संगठनों की तरफ से मोदी पर एक बार फिर तब निशाना साधा गया था, जब उन्होंने एक रैली के दौरान कहा था कि देश में पहले शौचालय बनने चाहिए और फिर देवालय यानी मंदिर। एक समारोह में मोदी ने कहा था कि हिंदुत्ववादी नेता की छवि होने के बाद भी उनमें यह बात कहने का साहस है। उन्होंने कहा, ‘मुझे हिंदुत्ववादी नेता कहा जाता है। मेरी छवि मुझे ऐसा कहने नहीं देगी, लेकिन मुझमें यह कहने का साहस है। वाकई मेरी सोच है-पहले शौचालय, फिर देवालय।’ उनके इस बयान पर विपक्ष को तो उन्हें घेरने का मौका मिला ही। ऊपर से विश्व हिंदू परिषद ने मोदी पर जबरदस्त हमले किए। प्रवीण तोगड़िया ने कहा है कि मोदी के बयान से हिंदुओं की भावनाओं को चोट पहुंची है और हिंदुओं का अपमान हुआ है, इसलिए भाजपा को माफी मांगनी चाहिए।
12. चुनाव के दौरान कमल के निशान के साथ सेल्फी
नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव के दौरान एक और मामले में विवाद में घिरे थे। चुनाव के एक चरण के दौरान उन्होंने भाजपा के चुनाव चिह्न ‘कमल’ के स्टिकर को हाथ में पकड़कर भाषण दिया था। साथ ही मतदान करने के बाद कमल के निशान के साथ सेल्फी भी पोस्ट की। इसे लेकर काफी विवाद हुआ था और विपक्ष ने इसकी शिकायत बाद में चुनाव आयोग से भी की। आखिर में चुनाव आयोग ने मोदी को ऐसी किसी भी गतिविधि से बचने की हिदायत दी थी।
13. 10 लाख रुपये का मोदी नाम वाला सूट
विवादों से मोदी का नाता पीएम बनने के बाद भी नहीं छूटा। जनवरी 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मुलाकात के वक्त एक खास बंद गला सूट पहना था। इस सूट पर पीले रंग की लंबी पट्टियां थी, जिस पर उनका पूरा नाम नरेंद्र दामोदरदास मोदी लिखा था। मोदी के इस सूट की कीमत शुरुआत में 20 लाख बताई गई और समय के साथ विपक्ष ने इसे 15 लाख और 10 लाख रुपये का सूट भी बताया और लगातार मोदी को घेरने की कोशिश की। हालांकि, बाद में सामने आया कि सूट को हीरा कारोबारी रमेश कुमार भीखाभाई विरानी ने मोदी को गिफ्ट किया था। विरानी ने अपने बयान में कहा था कि मैंने गुजरात वाइब्रेंट के दौरान मुलाकात पर उन्हें (प्रधानमंत्री मोदी) को सूट गिफ्ट किया था। इस सूट को 2017 में नीलाम कर दिया गया।
14. काले धन और सभी खातों में 15 लाख रुपये वाला बयान
मोदी ने 2014 के आम चुनाव से पहले कहा था कि वे स्विट्जरलैंड के बैंकों में जमा काले धन की एक-एक पाई भारत में लाएंगे। मोदी ने यहां तक कहा था कि अगर विदेश में जमा पूरा काला धन वापस भारत आ जाए, तो हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपये तक आ जाएंगे। पीएम बनने के बाद इन्हीं भाषणों को लेकर विपक्ष ने मोदी को कई बार घेरा। राहुल गांधी समेत कई कांग्रेसी नेताओं ने मोदी से काला धन वापस लाने को लेकर जानकारियां मांगीं। यह मुद्दा 2019 के चुनाव में फिर उछला, जब विपक्ष ने पूछा कि नोटबंदी से कितना काला धन जब्त हुआ और गरीबों के खाते में आने वाले 15 लाख रुपये कहां हैं?
15. अवॉर्ड वापसी पर मोदी की छवि को झटका
2014 में लोकसभा चुनाव में बंपर जीत हासिल करने के बाद मोदी को बड़ा झटका 2015 में बिहार चुनाव के दौरान लगा था। तब भाजपा पर धर्म की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए अवॉर्ड वापसी अभियान की शुरुआत हुई। इस अभियान के तहत देशभर के 30 से ज्यादा साहित्यकारों और लेखकों ने खुद को मिले सम्मान लौटा दिए। इस लिस्ट में उदय प्रकाश, कृष्णा सोब्ती, मंगलेश डबराल, काशीनाथ सिंह, राजेश जोशी, केकी दारूवाला, अंबिकादत्त, मुनव्वर राणा समेत कई बड़े नाम शामिल रहे। इस अभियान के चलते प्रधानमंत्री मोदी की छवि को पहली बार धक्का लगा था।
16. विदेश में भारत की पिछली सरकार को घेरा, हुआ जबरदस्त विरोध
मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद जर्मनी यात्रा के दौरान एक सभा में कहा था कि भारत की छवि अब स्कैम इंडिया से बदलकर स्किल इंडिया की हो रही है। इसके अलावा कनाडा दौरे पर मोदी ने कहा था कि जिन्हें गंदगी करनी थी, वो तो गंदगी कर के चले गए। साफ हम कर रहे हैं। मोदी के इन बयानों के बाद विपक्ष ने उन पर जमकर निशाना साधा और पिछली सरकारों की उपलब्धियां गिनाईं। कांग्रेस ने तो मोदी पर विदेश में भारत की छवि खराब करने का आरोप लगाया।
17. मोदी और उनके मंत्री की डिग्री पर सवाल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री पर सवाल भी कई बार उठाए जा चुके हैं। इसे लेकर विपक्ष भी हमलावर रहा। दरअसल, दिल्ली के एक वकील ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से आरटीआई के जरिए पीएम मोदी की डिग्री की जानकारी मांगी थी। यूनिवर्सिटी ने दो बार जानकारी के देने से इनकार कर दिया। इससे पहले केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने 1978 के डीयू के बीए पास करने वालों के रिकॉर्ड की पड़ताल करने का निर्देश दिया था। हालांकि, बाद में यह विवाद भी भाजपा की ओर से जवाब आने के बाद खत्म हो गया।
18. जमीन अधिग्रहण, सीएए-एनआरसी और कृषि कानून को लेकर घिरे
प्रधानमंत्री मोदी पर पहले कार्यकाल से लेकर दूसरे कार्यकाल तक जबरदस्त बहुमत के साथ सरकार चलाने और ताकत का इस्तेमाल करते हुए कई अहम विधेयकों को कानून बनवा लेने का आरोप लगा। पहले जमीन अधिग्रहण अध्यादेश, फिर सीएए-एनआरसी, इसके बाद यूएपीए कानून में संशोधन और अब तीन कृषि कानूनों पर पीएम मोदी लगातार पंजाब-हरियाणा के किसान संगठनों और विपक्षी पार्टियों के निशाने पर हैं। इन्हीं कानूनों के चलते मोदी पर कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने तानाशाही रवैया रखने का आरोप भी लगाया है।
19. कोरोना पर जीत का एलान, दूसरी लहर के बाद उठे सवाल
भारत में कोरोना महामारी के दौरान दुनिया में सबसे सख्त लॉकडाउन लगा था। हालांकि, इसका फायदा यह हुआ था कि भारत में जनवरी-फरवरी तक कोरोना मामले 20 हजार से भी कम पर स्थिर हो चुके थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद कोरोना को हरा देने का ऐलान कर दिया। उन्होंने लगातार जनता को मास्क पहनने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के साथ सावधान रहने की भी अपील की। लेकिन मोदी की आधी बात सुनते हुए लगभग सभी राज्यो ने लोगों के मिलने-जुलने की सभी जगहों को खोल दिया। खुद भाजपा समेत कई राजनीतिक दलों ने चुनावी रैलियां कीं और कई धार्मिक आयोजन भी हुए। इसका असर यह हुआ कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर ने जमकर कहर बरपाया और मोदी के कोरोना पर जीत वाले बयान की चौतरफा आलोचना हुई।
20. राफेल डील पर विवाद, देना पड़ा जवाब
मजेदार बात यह है कि जब कांग्रेस इस डील पर सवाल उठा रही थी, तो ज्यादातर समय मोदी चुप ही थे। लेकिन 2019 के चुनाव के दौरान जब मोदी रायबरेली में चुनाव प्रचार कर रहे थे, तो उन्होंने रामचरित मानस का हवाला देते हुए कहा, “कुछ लोग झूठ ही स्वीकारते हैं, झूठ ही खाते हैं और झूठ ही चबाते हैं। मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने देश की सुरक्षा को ताक पर रखकर सेना को झूठा बताया। अब उसे देश की सर्वोच्च अदालत भी झूठी लगने लगी है। वे न्यायपालिका को भी अविश्वास के कठघरे में खड़ा करते हैं।” उन्होंने कहा, “रक्षा सौदों में पिछली सरकारों ने घोटाला किया। इन सौदों में हमारी ईमानदारी और पारदर्शिता से कांग्रेस बौखला गई है। वह नहीं चाहती कि देश की सेना मजबूत हो।”
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