सार
सरकार दूरसंचार कंपनियों के खिलाफ करीब 40,000 करोड़ रुपये के विवादों से जुड़ी कानूनी मामले को वापस लेने पर विचार कर रही है। इसके लिए दूरसंचार विभाग ने सुप्रीम कोर्ट से तीन सप्ताह का समय मांगा है ताकि सरकार सोच-समझकर फैसला ले सके कि मौजूदा अपील पर आगे बढ़ना है या नहीं।
टेलीकॉम स्पेक्ट्रम (सांकेतिक तस्वीर)
– फोटो : iStock
सरकार दूरसंचार कंपनियों को करीब 40,000 करोड़ रुपये के स्पेक्ट्रम यूजर शुल्क बकाया मामले में राहत देने की तैयारी में है। एक सूत्र ने बताया कि दूरसंचार विभाग ने अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशंस के खिलाफ एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया है कि सरकार इन कंपनियों से स्पेक्ट्रम यूजर शुल्क वसूलने की प्रक्रिया की समीक्षा कर रही है।
दरअसल, सरकार दूरसंचार कंपनियों के खिलाफ करीब 40,000 करोड़ रुपये के विवादों से जुड़ी कानूनी मामले को वापस लेने पर विचार कर रही है। इसके लिए दूरसंचार विभाग ने सुप्रीम कोर्ट से तीन सप्ताह का समय मांगा है ताकि सरकार सोच-समझकर फैसला ले सके कि मौजूदा अपील पर आगे बढ़ना है या नहीं। विभाग ने मामले में सुनवाई को चार सप्ताह तक स्थगित करने का भी अनुरोध किया।
शीर्ष कोर्ट ने इसकी मंजूरी दे दी। अगली सुनवाई 17 नवंबर, 2021 को होगी। चार अक्तूबर, 2021 को दायर हलफनामे में विभाग ने कहा कि दूरसंचार क्षेत्र विभिन्न परिस्थितियों के कारण कुछ समय से वित्तीय संकट से गुजर रहा है और दूरसंचार सेवाप्रदाता घाटे में चल रहे हैं। उसने भारतीय बैंक संघ के ज्ञापन का हवाला देते हुए कहा कि दूरसंचार क्षेत्र में प्रतिकूल घटनाक्रमों से नाकामी, खत्म होती प्रतिस्पर्धा, एकाधिकार, अस्थिर संचालन जैसी समस्याएं आ सकती हैं। यह बैंकिंग प्रणाली के लिए गंभीर नुकसान का कारण बन सकता है, जिसका इस क्षेत्र में बहुत बड़ा जोखिम है।
एयरटेल-वोडा आइडिया पर 12,803 करोड़ बकाया
- स्पेक्ट्रम यूजर शुल्क के रूप में दूरसंचार कंपनियों पर कुल 40,000 करोड़ रुपये बकाया है।
- इसमें भारती एयरटेल पर सबसे ज्यादा 8,414 करोड़ रुपये का बकाया है।
- वोडाफोन-आइडिया पर 4,389 करोड़ रुपये वन टाइम स्पेक्ट्रम शुल्क बकाया है। अन्य स्पेक्ट्रम मामलों की समीक्षा चल रही है।
- इसके अलावा जून तिमाही में वोडाफोन-आइडिया पर कुल 1.92 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था।
- इसमें स्पेक्ट्रम शुल्क, समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) बकाया और बैंकों का बकाया शामिल है। इनमें स्पेक्ट्रम शुल्क का बकाया करीब 1.06 लाख करोड़ है।
प्रयास से 5जी प्रौद्योगिकी में निवेश को मिलेगा बढ़ावा
सिरिल अमरचंद मंगलदास के पार्टनर समीर चुग ने कहा कि दूरसंचार विभाग ने रिलायंस कम्युनिकेशंस मामले में दूरसंचार विवाद अपीलीय न्यायाधिकरण (टीडीसैट) के आदेश के खिलाफ अपील पर आगे बढ़ने के अपने फैसले की समीक्षा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से समय मांगा है। यह पिछली विसंगतियों को दूर करने की दिशा में एक कदम है। सरकार के इस प्रयास से दूरसंचार क्षेत्र को राहत मिलेगी और यह सुधार के रास्ते पर आगे बढ़ेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि इससे एयरटेल और वोडाफोन जैसी दूरसंचार कंपनियों के लिए आगे की राह आसान हो जाएगी, जिससे वे 5जी जैसी प्रौद्योगिकियों में निवेश करने पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
सरकार पहले भी दे चुकी है राहत
सरकार ने 15 सितंबर, 2021 को वित्तीय संकट से जूझ रही दूरसंचार कंपनियों के लिए राहत की घोषणा की थी। इसके अलावा, ऑटोमैटिक रूट से आने वाले दूरसंचार क्षेत्र में 100 फीसदी विदेशी निवेश को भी मंजूरी दी थी। दूरसंचार विभाग ने कहा कि सार्वजनिक हित को बढ़ावा देने, सरकारी राजस्व को बचाने और विशेष रूप से दूरसंचार सेवाप्रदाताओं के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए इन कंपनियों को राहत देने की घोषणा की गई थी।
यह है मामला
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में 2जी घोटाला मामले में 122 दूरसंचार परमिट रद्द कर दिए थे। कोर्ट ने कहा कि यह सार्वजनिक संपत्ति नीलामी के जरिये आवंटित होनी चाहिए। उस समय की कैबिनेट ने निर्णय लिया कि अखिल भारतीय लाइसेंस के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन पर दूरसंचार कंपनी से 1,658 करोड़ रुपये का एकमुश्त स्पेक्ट्रम यूजर शुल्क लिया जाएगा। पहले यह शुल्क उपभोक्ताओं की संख्या से जुड़ा था। यूपीए-2 सरकार में इस नीति में बदलाव कर कहा गया कि 4.4 मेगाहर्ट्ज से ज्यादा के सभी स्पेक्ट्रम पर बाजार दर से शुल्क लिया जाएगा। दूरसंचार कंपनियों ने इसका विरोध किया।
इसके बाद यह मामला टीडीसैट में पहुंचा, जिसने जुलाई, 2019 में आदेश दिया कि कंपनियों से पिछले वर्षों का बकाया नए नियम से नहीं लिया जा सकता और यह आगे की तारीख से ही लागू होगा। इस आदेश को दूरसंचार विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अब सरकार मौजूदा स्पेक्ट्रम यूजर शुल्क व्यवस्था को खत्म कर इस मसले को कोर्ट के बाहर सुलझाना चाहती है।
विस्तार
सरकार दूरसंचार कंपनियों को करीब 40,000 करोड़ रुपये के स्पेक्ट्रम यूजर शुल्क बकाया मामले में राहत देने की तैयारी में है। एक सूत्र ने बताया कि दूरसंचार विभाग ने अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशंस के खिलाफ एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया है कि सरकार इन कंपनियों से स्पेक्ट्रम यूजर शुल्क वसूलने की प्रक्रिया की समीक्षा कर रही है।
दरअसल, सरकार दूरसंचार कंपनियों के खिलाफ करीब 40,000 करोड़ रुपये के विवादों से जुड़ी कानूनी मामले को वापस लेने पर विचार कर रही है। इसके लिए दूरसंचार विभाग ने सुप्रीम कोर्ट से तीन सप्ताह का समय मांगा है ताकि सरकार सोच-समझकर फैसला ले सके कि मौजूदा अपील पर आगे बढ़ना है या नहीं। विभाग ने मामले में सुनवाई को चार सप्ताह तक स्थगित करने का भी अनुरोध किया।
शीर्ष कोर्ट ने इसकी मंजूरी दे दी। अगली सुनवाई 17 नवंबर, 2021 को होगी। चार अक्तूबर, 2021 को दायर हलफनामे में विभाग ने कहा कि दूरसंचार क्षेत्र विभिन्न परिस्थितियों के कारण कुछ समय से वित्तीय संकट से गुजर रहा है और दूरसंचार सेवाप्रदाता घाटे में चल रहे हैं। उसने भारतीय बैंक संघ के ज्ञापन का हवाला देते हुए कहा कि दूरसंचार क्षेत्र में प्रतिकूल घटनाक्रमों से नाकामी, खत्म होती प्रतिस्पर्धा, एकाधिकार, अस्थिर संचालन जैसी समस्याएं आ सकती हैं। यह बैंकिंग प्रणाली के लिए गंभीर नुकसान का कारण बन सकता है, जिसका इस क्षेत्र में बहुत बड़ा जोखिम है।
एयरटेल-वोडा आइडिया पर 12,803 करोड़ बकाया
- स्पेक्ट्रम यूजर शुल्क के रूप में दूरसंचार कंपनियों पर कुल 40,000 करोड़ रुपये बकाया है।
- इसमें भारती एयरटेल पर सबसे ज्यादा 8,414 करोड़ रुपये का बकाया है।
- वोडाफोन-आइडिया पर 4,389 करोड़ रुपये वन टाइम स्पेक्ट्रम शुल्क बकाया है। अन्य स्पेक्ट्रम मामलों की समीक्षा चल रही है।
- इसके अलावा जून तिमाही में वोडाफोन-आइडिया पर कुल 1.92 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था।
- इसमें स्पेक्ट्रम शुल्क, समायोजित सकल राजस्व (एजीआर) बकाया और बैंकों का बकाया शामिल है। इनमें स्पेक्ट्रम शुल्क का बकाया करीब 1.06 लाख करोड़ है।
प्रयास से 5जी प्रौद्योगिकी में निवेश को मिलेगा बढ़ावा
सिरिल अमरचंद मंगलदास के पार्टनर समीर चुग ने कहा कि दूरसंचार विभाग ने रिलायंस कम्युनिकेशंस मामले में दूरसंचार विवाद अपीलीय न्यायाधिकरण (टीडीसैट) के आदेश के खिलाफ अपील पर आगे बढ़ने के अपने फैसले की समीक्षा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से समय मांगा है। यह पिछली विसंगतियों को दूर करने की दिशा में एक कदम है। सरकार के इस प्रयास से दूरसंचार क्षेत्र को राहत मिलेगी और यह सुधार के रास्ते पर आगे बढ़ेगा, जिससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि इससे एयरटेल और वोडाफोन जैसी दूरसंचार कंपनियों के लिए आगे की राह आसान हो जाएगी, जिससे वे 5जी जैसी प्रौद्योगिकियों में निवेश करने पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
सरकार पहले भी दे चुकी है राहत
सरकार ने 15 सितंबर, 2021 को वित्तीय संकट से जूझ रही दूरसंचार कंपनियों के लिए राहत की घोषणा की थी। इसके अलावा, ऑटोमैटिक रूट से आने वाले दूरसंचार क्षेत्र में 100 फीसदी विदेशी निवेश को भी मंजूरी दी थी। दूरसंचार विभाग ने कहा कि सार्वजनिक हित को बढ़ावा देने, सरकारी राजस्व को बचाने और विशेष रूप से दूरसंचार सेवाप्रदाताओं के बीच प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने के लिए इन कंपनियों को राहत देने की घोषणा की गई थी।
यह है मामला
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में 2जी घोटाला मामले में 122 दूरसंचार परमिट रद्द कर दिए थे। कोर्ट ने कहा कि यह सार्वजनिक संपत्ति नीलामी के जरिये आवंटित होनी चाहिए। उस समय की कैबिनेट ने निर्णय लिया कि अखिल भारतीय लाइसेंस के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन पर दूरसंचार कंपनी से 1,658 करोड़ रुपये का एकमुश्त स्पेक्ट्रम यूजर शुल्क लिया जाएगा। पहले यह शुल्क उपभोक्ताओं की संख्या से जुड़ा था। यूपीए-2 सरकार में इस नीति में बदलाव कर कहा गया कि 4.4 मेगाहर्ट्ज से ज्यादा के सभी स्पेक्ट्रम पर बाजार दर से शुल्क लिया जाएगा। दूरसंचार कंपनियों ने इसका विरोध किया।
इसके बाद यह मामला टीडीसैट में पहुंचा, जिसने जुलाई, 2019 में आदेश दिया कि कंपनियों से पिछले वर्षों का बकाया नए नियम से नहीं लिया जा सकता और यह आगे की तारीख से ही लागू होगा। इस आदेश को दूरसंचार विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अब सरकार मौजूदा स्पेक्ट्रम यूजर शुल्क व्यवस्था को खत्म कर इस मसले को कोर्ट के बाहर सुलझाना चाहती है।
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