न्यूज डेस्क, अमर उजाला, पुणे
Published by: प्रांजुल श्रीवास्तव
Updated Sat, 19 Feb 2022 12:38 PM IST
सार
राकांपा नेता अजित पवार ने कहा कि, मराठाओं को आरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन यह अन्य समुदाय के कोटे में खलल डाले बिना होना चाहिए। इसके लिए केंद्र सरकार को कानून बनाने की जरूरत है।
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने शनिवार को मराठा समुदाय को आरक्षण दिए जाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि मराठा समुदाय को भी आरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन यह अन्य समुदाय के लिए निर्धारित कोटे खलल डाले बिना होना चाहिए। इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार से कानून में व्यापक बदलाव की अपील की।
अजित पवार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अधिकतम 50 प्रतिशत कोटा निर्धारित किया है, लेकिन इस सीमा को हटाने की जरूरत है। दरअसल, शनिवार को राकांपा नेता छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के अवसर पर पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कानून को बताया था असंवैधानिक
राकांपा नेता ने कहा कि हम सभी मराठा समुदाय के आरक्षण के पक्ष में हैं। इसके लिए राज्य सरकार की ओर से एक आयोग भी बनाया गया था। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इसके पक्ष में निर्णय दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। दरअसल, पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने मराठों को प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र कानून को असंवैधानिक करार दिया था। उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा था कि, 1992 द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को भंग नहीं किया जा सकता।
विस्तार
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने शनिवार को मराठा समुदाय को आरक्षण दिए जाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि मराठा समुदाय को भी आरक्षण मिलना चाहिए, लेकिन यह अन्य समुदाय के लिए निर्धारित कोटे खलल डाले बिना होना चाहिए। इसके लिए उन्होंने केंद्र सरकार से कानून में व्यापक बदलाव की अपील की।
अजित पवार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अधिकतम 50 प्रतिशत कोटा निर्धारित किया है, लेकिन इस सीमा को हटाने की जरूरत है। दरअसल, शनिवार को राकांपा नेता छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के अवसर पर पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे।
सुप्रीम कोर्ट ने कानून को बताया था असंवैधानिक
राकांपा नेता ने कहा कि हम सभी मराठा समुदाय के आरक्षण के पक्ष में हैं। इसके लिए राज्य सरकार की ओर से एक आयोग भी बनाया गया था। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इसके पक्ष में निर्णय दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया। दरअसल, पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने मराठों को प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने वाले महाराष्ट्र कानून को असंवैधानिक करार दिया था। उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा था कि, 1992 द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को भंग नहीं किया जा सकता।
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