सार
साइबर युद्ध पद्धति में कोई फिजिकल जंग नहीं होती। न किसी का खून बहता है और न ही तोप के गोले चलते हैं। बिना किसी देश की सीमा में घुसे दुश्मन का बहुत बड़ा नुकसान किया जा सकता है। उसका डाटा नष्ट किए जा सकता है और ऑनलाइन सभी ऑपरेशनों को रोका जा सकता है। इस महारत को हासिल करने में दुनिया के 120 देश साइबर सेना को मजबूत करने में लगे हैं….
जितनी तेजी से डिजिटल लाइफ सपोर्ट पर सब कुछ आटोमोटिव मूड में आगे बढ़ रहा है, ज्ञान और तकनीक के विस्फोट के इस दौर में उतने ही खतरनाक तरीके से अचानक सबकुछ ठप कर दिए जाने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण यूक्रेन में साइबर हमला था। हैकरों ने यूक्रेन की कंप्यूटर नेटवर्क प्रणाली में सेंध मारकर बैंकिंग से लेकर तमाम क्षेत्रों की गतिविधियां रोक दी थीं। अनुमान लगाया जा रहा था कि इसके पीछे रूस के शातिर हैकरों या फिर रूस की साइबर सेना का हाथ है। यूक्रेन के साइबर सुरक्षा के वरिष्ठ अधिकारी इल्लया वित्युक ने भी यही संभावना व्यक्त की। इसके अगले आक्रमण में यूक्रेन की आर्टिलरी यूनिट या सैन्य दस्ते को नुकसान पहुंचाने का अनुमान था। हालांकि रूस ने इस साइबर गतिरोध में अपना हाथ होने से इनकार किया।
यूक्रेन पर यह कोई पहला साइबर हमला नहीं हुआ है। 2014 में स्नेक या आरोबोरोस नामक साइबर हमले ने यूक्रेन की सरकारी प्रणाली को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। इसके पीछे भी रूस का ही हाथ होने की संभावना जताई गई थी। स्नेक टूलकिट ने 2010 में यूक्रेन के कंप्यूटरों में फैलना शुरू किया था और 2014 तक इसने कंप्यूटर नेटवर्क उपकरणों के साथ-साथ कंप्यूटर नेटवर्क पर हमला बोल दिया। 2014-2016 तक क्राउडस्ट्राइक के अनुसार रूसी एटीपी फैंसी बियर ने यूक्रेन की सेना के रॉकेट विंग और तोपखाने पर हमला किया था। एंड्रायड एप का संक्रमित संस्करण उपयोग में लाकर डी-30 हावित्जर तोपखाने को प्रभावित किया था। इसे एक सफल साइबर हमला माना जाता है।
इस्राइल के इस हमले ने भी किया था हैरान
इस्राइल की साइबर सेना भी हैकिंग में महारत रखती है। पांच मई 2019 को इस्राइली सुरक्षा बलों ने साइबर हमले का सहारा लेकर एक इमारत को निशाना बनाया और ध्वस्त कर दिया था। यह पहला साइबर हमला था जिसमें बिल्डिंग के ध्वस्त हो जाने के कारण में उसमें मौजूद लोग भी मारे गए थे। इसके पहले इस तरह के हमलों में लोगों के मारे जाने की कोई घटना सामने नहीं आई थी। दरअसल, इस्राइली सुरक्षा बलों को एक भवन में अपने दुश्मनों के होने की खुफिया सूचना हैकिंग के सहारे मिली। साइबर सुरक्षा दस्ते ने इस सूचना का सदुपयोग किया और साइबर कवर देते हुए स्ट्राइक करके बिल्डिंग को ध्वस्त करने की योजना पर काम किया। देखते ही देखते पूरी बिल्डिंग जमींदोज हो गई। इस बिल्डिंग को जमीदोंज करने की इस्राइली सुरक्षा की बलों की विशेषज्ञता ने दुनिया के ताकतवर देशों को चौका दिया।
अब बड़ी जंग के कम हैं आसार
साइबर युद्ध पद्धति में कोई फिजिकल जंग नहीं होती। न किसी का खून बहता है और न ही तोप के गोले चलते हैं। बिना किसी देश की सीमा में घुसे दुश्मन का बहुत बड़ा नुकसान किया जा सकता है। उसका डाटा नष्ट किए जा सकता है और ऑनलाइन सभी ऑपरेशनों को रोका जा सकता है। महारत को हासिल करने में दुनिया के 120 देश साइबर सेना को मजबूत करने में लगे हैं। इसके साथ-साथ लगभग सभी 120 देश अपने सुरक्षा तंत्र, बैकिंग प्रणाली, सरकारी प्रशासनिक व्यवस्था समेत अन्य को फुलप्रुफ बनाने का हर उपाय कर रहे हैं। इन 120 देशों में अमेरिका, रूस, चीन, ईरान, उत्तर कोरिया, इस्राइल, ब्रिटेन, भारत जैसे देश शामिल हैं। अमेरिका, रूस, चीन, इस्राइल, ईरान इसमें काफी महारत रखते हैं। ईरान ने भी साइबर सेना का गठन किया है। यह सेना हैकिंग से लेकर कंप्यूटर नेटवर्क प्रणाली को ध्वस्त करने समेत तमाम क्रियाओं में दक्ष है। ऐसा माना जाता है रूस के हैकरों ने अमेरिका में काफी दहशत फैला रखती है। अमेरिका की मोस्ट वांटेड लिस्ट में अधिकांश रूस के ही हैकर्स हैं।
साइबर सेना क्या कर सकती है?
किसी भी देश की सुरक्षा में सेंध लगा सकती है। सुरक्षा प्रणाली को निष्क्रिय कर सकती है, साथ ही रॉकेट, मिसाइल प्रणाली आदि को भी निष्क्रिय कर सकती है। कंप्यूटर नेटवर्क प्रणाली को ध्वस्त कर सकती है। बैंकिंग और सरकार के कामकाज तथा प्रशासनिक कामकाज को प्रभावित कर सकती है। सैटेलाइट टीवी, फोन, फैक्स, प्रिंटर, पेजर जैसी तमाम सेवाओं को बाधित कर सकती है। बैंकिंग प्रणाली, नेटग्रिड, यूटिलिटीज आदि को निष्क्रिय बना सकती है।
साइबर तकनीक का क्या महत्व है?
दो साल फिलिस्तीन के हथियारबंद दस्ते ने इस्राइल में राकेटों की बौछार कर दी थी। इतने बड़े पैमाने पर छोड़े गए राकेटों ने पूरे आसमान में जाल सा बना दिया, लेकिन इस्राइल का बाल तक बांका नहीं हुआ। इसकी तस्वीरे दुनिया भर में देखी गईं और दुनिया के तमाम देश अपने संवेदनशील प्रतिष्ठान की रक्षा के लिए इस्राइल की आयरन डोम प्रतिरक्षा प्रणाली को लेना चाहते हैं। यूक्रेन ने भी रूस के हमलों से बचने के लिए मांगा था और इस्राइल ने मना कर दिया था।
इसी तरह से रूस की एस-400 मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणाली या फिर अमेरिका की पैट्रिएट प्रणाली भी काफी उन्नत मानी जाती है। इन सभी प्रणालियों को स्वचालित कंप्यूटराइज्ड प्रणाली के जरिए संचालित किया जाता है। जहां सेंसर के माध्यम से प्रणाली स्वत: क्षेत्र में हवा से जमीन पर आ रहे दुश्मन के वार को पहचानती हैं। उसकी दूरी, गति, लक्ष्य की गणना करके प्रणाली को संदेश देती हैं। इस संदेश को पाने के प्रणाली तत्काल दुश्मन के आ रहे वार को हवा में ही पलक झपकते बेध देती है। एक हमला और एक बड़ा नुकसान होने से बच जाता है। यह पूरी प्रणाली का एक बड़ा आधार इसका सॉफ्टवेयर होता है और इसमें सेंध लगाकर पूरी प्रणाली को ठप भी किया जा सकता है।
विस्तार
जितनी तेजी से डिजिटल लाइफ सपोर्ट पर सब कुछ आटोमोटिव मूड में आगे बढ़ रहा है, ज्ञान और तकनीक के विस्फोट के इस दौर में उतने ही खतरनाक तरीके से अचानक सबकुछ ठप कर दिए जाने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण यूक्रेन में साइबर हमला था। हैकरों ने यूक्रेन की कंप्यूटर नेटवर्क प्रणाली में सेंध मारकर बैंकिंग से लेकर तमाम क्षेत्रों की गतिविधियां रोक दी थीं। अनुमान लगाया जा रहा था कि इसके पीछे रूस के शातिर हैकरों या फिर रूस की साइबर सेना का हाथ है। यूक्रेन के साइबर सुरक्षा के वरिष्ठ अधिकारी इल्लया वित्युक ने भी यही संभावना व्यक्त की। इसके अगले आक्रमण में यूक्रेन की आर्टिलरी यूनिट या सैन्य दस्ते को नुकसान पहुंचाने का अनुमान था। हालांकि रूस ने इस साइबर गतिरोध में अपना हाथ होने से इनकार किया।
यूक्रेन पर यह कोई पहला साइबर हमला नहीं हुआ है। 2014 में स्नेक या आरोबोरोस नामक साइबर हमले ने यूक्रेन की सरकारी प्रणाली को बड़ा नुकसान पहुंचाया था। इसके पीछे भी रूस का ही हाथ होने की संभावना जताई गई थी। स्नेक टूलकिट ने 2010 में यूक्रेन के कंप्यूटरों में फैलना शुरू किया था और 2014 तक इसने कंप्यूटर नेटवर्क उपकरणों के साथ-साथ कंप्यूटर नेटवर्क पर हमला बोल दिया। 2014-2016 तक क्राउडस्ट्राइक के अनुसार रूसी एटीपी फैंसी बियर ने यूक्रेन की सेना के रॉकेट विंग और तोपखाने पर हमला किया था। एंड्रायड एप का संक्रमित संस्करण उपयोग में लाकर डी-30 हावित्जर तोपखाने को प्रभावित किया था। इसे एक सफल साइबर हमला माना जाता है।
इस्राइल के इस हमले ने भी किया था हैरान
इस्राइल की साइबर सेना भी हैकिंग में महारत रखती है। पांच मई 2019 को इस्राइली सुरक्षा बलों ने साइबर हमले का सहारा लेकर एक इमारत को निशाना बनाया और ध्वस्त कर दिया था। यह पहला साइबर हमला था जिसमें बिल्डिंग के ध्वस्त हो जाने के कारण में उसमें मौजूद लोग भी मारे गए थे। इसके पहले इस तरह के हमलों में लोगों के मारे जाने की कोई घटना सामने नहीं आई थी। दरअसल, इस्राइली सुरक्षा बलों को एक भवन में अपने दुश्मनों के होने की खुफिया सूचना हैकिंग के सहारे मिली। साइबर सुरक्षा दस्ते ने इस सूचना का सदुपयोग किया और साइबर कवर देते हुए स्ट्राइक करके बिल्डिंग को ध्वस्त करने की योजना पर काम किया। देखते ही देखते पूरी बिल्डिंग जमींदोज हो गई। इस बिल्डिंग को जमीदोंज करने की इस्राइली सुरक्षा की बलों की विशेषज्ञता ने दुनिया के ताकतवर देशों को चौका दिया।
अब बड़ी जंग के कम हैं आसार
साइबर युद्ध पद्धति में कोई फिजिकल जंग नहीं होती। न किसी का खून बहता है और न ही तोप के गोले चलते हैं। बिना किसी देश की सीमा में घुसे दुश्मन का बहुत बड़ा नुकसान किया जा सकता है। उसका डाटा नष्ट किए जा सकता है और ऑनलाइन सभी ऑपरेशनों को रोका जा सकता है। महारत को हासिल करने में दुनिया के 120 देश साइबर सेना को मजबूत करने में लगे हैं। इसके साथ-साथ लगभग सभी 120 देश अपने सुरक्षा तंत्र, बैकिंग प्रणाली, सरकारी प्रशासनिक व्यवस्था समेत अन्य को फुलप्रुफ बनाने का हर उपाय कर रहे हैं। इन 120 देशों में अमेरिका, रूस, चीन, ईरान, उत्तर कोरिया, इस्राइल, ब्रिटेन, भारत जैसे देश शामिल हैं। अमेरिका, रूस, चीन, इस्राइल, ईरान इसमें काफी महारत रखते हैं। ईरान ने भी साइबर सेना का गठन किया है। यह सेना हैकिंग से लेकर कंप्यूटर नेटवर्क प्रणाली को ध्वस्त करने समेत तमाम क्रियाओं में दक्ष है। ऐसा माना जाता है रूस के हैकरों ने अमेरिका में काफी दहशत फैला रखती है। अमेरिका की मोस्ट वांटेड लिस्ट में अधिकांश रूस के ही हैकर्स हैं।
साइबर सेना क्या कर सकती है?
किसी भी देश की सुरक्षा में सेंध लगा सकती है। सुरक्षा प्रणाली को निष्क्रिय कर सकती है, साथ ही रॉकेट, मिसाइल प्रणाली आदि को भी निष्क्रिय कर सकती है। कंप्यूटर नेटवर्क प्रणाली को ध्वस्त कर सकती है। बैंकिंग और सरकार के कामकाज तथा प्रशासनिक कामकाज को प्रभावित कर सकती है। सैटेलाइट टीवी, फोन, फैक्स, प्रिंटर, पेजर जैसी तमाम सेवाओं को बाधित कर सकती है। बैंकिंग प्रणाली, नेटग्रिड, यूटिलिटीज आदि को निष्क्रिय बना सकती है।
साइबर तकनीक का क्या महत्व है?
दो साल फिलिस्तीन के हथियारबंद दस्ते ने इस्राइल में राकेटों की बौछार कर दी थी। इतने बड़े पैमाने पर छोड़े गए राकेटों ने पूरे आसमान में जाल सा बना दिया, लेकिन इस्राइल का बाल तक बांका नहीं हुआ। इसकी तस्वीरे दुनिया भर में देखी गईं और दुनिया के तमाम देश अपने संवेदनशील प्रतिष्ठान की रक्षा के लिए इस्राइल की आयरन डोम प्रतिरक्षा प्रणाली को लेना चाहते हैं। यूक्रेन ने भी रूस के हमलों से बचने के लिए मांगा था और इस्राइल ने मना कर दिया था।
इसी तरह से रूस की एस-400 मिसाइल प्रतिरक्षा प्रणाली या फिर अमेरिका की पैट्रिएट प्रणाली भी काफी उन्नत मानी जाती है। इन सभी प्रणालियों को स्वचालित कंप्यूटराइज्ड प्रणाली के जरिए संचालित किया जाता है। जहां सेंसर के माध्यम से प्रणाली स्वत: क्षेत्र में हवा से जमीन पर आ रहे दुश्मन के वार को पहचानती हैं। उसकी दूरी, गति, लक्ष्य की गणना करके प्रणाली को संदेश देती हैं। इस संदेश को पाने के प्रणाली तत्काल दुश्मन के आ रहे वार को हवा में ही पलक झपकते बेध देती है। एक हमला और एक बड़ा नुकसान होने से बच जाता है। यह पूरी प्रणाली का एक बड़ा आधार इसका सॉफ्टवेयर होता है और इसमें सेंध लगाकर पूरी प्रणाली को ठप भी किया जा सकता है।
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