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फेडरल रिजर्व ने लगाई 'आग': क्या ब्याज दर बढ़ाने से काबू में आ जाएगी अमेरिका में महंगाई?

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, वाशिंगटन
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Mon, 31 Jan 2022 08:32 PM IST

सार

जानकारों के मुताबिक अमेरिका की असल समस्या यह है कि वहां मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर (कारखाना क्षेत्र) बहुत सिकुड़ गया है और आम उत्पादकता घट गई है। इसके परिमाणस्वरूप श्रम लागत बढ़ गई है। अभी मांग के मुताबिक सप्लाई के लिए जरूरी वस्तुएं बाजार में नहीं हैं। इन सब वजहों से महंगाई बढ़ गई है…

फेडरल रिजर्व बैंक
– फोटो : Agency (File Photo)

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अमेरिका के सेंट्रल बैंक- फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर बढ़ाने की बात कह कर दुनिया भर के शेयर बाजारों में उथल-पुथल मचा दी है। फेडरल रिजर्व ने अगले मार्च से लेकर इस साल कम से कम चार बार ब्याज दरें बढ़ाने की बात कही है। इसकी वजह से निवेशक दुनिया भर के शेयर बाजारों से अपना पैसा निकाल रहे हैं, ताकि उनका निवेश वे अमेरिका में कर सकें।

विशेषज्ञों ने चेताया

फेडरल रिजर्व ने ये कदम अमेरिका में बढ़ी महंगाई को देखते हुए उठाने का फैसला किया है। अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर इस समय 1982 के बाद के सबसे ऊंचे स्तर पर है। फेडरल रिजर्व को आशा है कि ब्याज दरें बढ़ाने से महंगाई पर काबू पाने में मदद मिलेगी। लेकिन कई विशेषज्ञ उसके इस आकलन से सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा है कि अमेरिका में महंगाई की वजह मौद्रिक नहीं है। बल्कि ऐसे विशेषज्ञों ने तो चेतावनी दी है कि ब्याज दर बढ़ने से महंगाई की हालत और बिगड़ेगी।

विश्लेषक डेविड पी गोल्डमैन ने एक वेबसाइट पर लिखा है- ‘फिलहाल वक्त सामान्य कारोबारी चक्र का नहीं है, जब सस्ता कर्ज मिलने की वजह से वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ जाती है। अभी संकट सप्लाई साइड से है। इससे निपटने के लिए ब्याज दर बढ़ाना एक गलत नीति है।’ इस राय के विशेषज्ञों के मुताबिक अगर बाइडन प्रशासन महंगाई रोकना चाहता है, तो उसे निजी उपभोग बढ़ाने के लिए दी जा रही अरबों डॉलर की सब्सिडी को रोक देना चाहिए और उत्पादक गतिविधियों में निवेश को प्रोत्साहित करना चाहिए।

जानकारों के मुताबिक अमेरिका की असल समस्या यह है कि वहां मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर (कारखाना क्षेत्र) बहुत सिकुड़ गया है और आम उत्पादकता घट गई है। इसके परिमाणस्वरूप श्रम लागत बढ़ गई है। अभी मांग के मुताबिक सप्लाई के लिए जरूरी वस्तुएं बाजार में नहीं हैं। इन सब वजहों से महंगाई बढ़ गई है। इसलिए महंगाई तभी काबू में आ सकती है, अगर सरकार सप्लाई दुरुस्त करने के उपाय करे।

सॉफ्टवेयर सेक्टर में लगाई पूंजी

विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका में अभी पैदा हुआ संकट वर्षों तक अपनाई गई नीतियों का नतीजा है। इन नीतियों के कारण देश में कारखाना क्षेत्र में निवेश घट गया, जबकि आयात आधारित उपभोग बढ़ता चला गया। देश की ज्यादातर पूंजी मनोरंजन से जुड़े सॉफ्टवेयर सेक्टर में लग गई। कोरोना महामारी ने इन नीतियों की वजह से बन रही स्थितियों को तेजी से बिगाड़ दिया है। लेकिन अब इस हाल का उतनी ही तेज गति से समाधान नहीं ढूंढा जा सकता।

विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि कोरोना महामारी के दौरान सप्लाई चेन टूट गई, जो अब तक बहाल नहीं हो सकी है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समय चीन से आयात होने वाली वस्तुओं पर अतिरिक्त शुल्क लगाए गए, जिस कारण वे चीजें आम अमेरिकी उपभोक्ताओं को महंगी मिलने लगीं। इन सभी कारणों से देश में मुद्रास्फीति दर तेजी से चढ़ी है।

विश्लेषकों ने कहा है कि मैन्यूफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना दूरगामी कदम है। लेकिन सप्लाई चेन संबंधी दिक्कतों को दूर करने के लिए सरकार तुरंत कदम उठा सकती है। लेकिन इन विश्लेषकों के मुताबिक ऐसा लगता है कि बाइडन प्रशासन ब्याज दर बढ़ा कर यह संदेश देने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहा है कि वह महंगाई रोकने के लिए कुछ कर रहा है।

विस्तार

अमेरिका के सेंट्रल बैंक- फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर बढ़ाने की बात कह कर दुनिया भर के शेयर बाजारों में उथल-पुथल मचा दी है। फेडरल रिजर्व ने अगले मार्च से लेकर इस साल कम से कम चार बार ब्याज दरें बढ़ाने की बात कही है। इसकी वजह से निवेशक दुनिया भर के शेयर बाजारों से अपना पैसा निकाल रहे हैं, ताकि उनका निवेश वे अमेरिका में कर सकें।

विशेषज्ञों ने चेताया

फेडरल रिजर्व ने ये कदम अमेरिका में बढ़ी महंगाई को देखते हुए उठाने का फैसला किया है। अमेरिका में मुद्रास्फीति की दर इस समय 1982 के बाद के सबसे ऊंचे स्तर पर है। फेडरल रिजर्व को आशा है कि ब्याज दरें बढ़ाने से महंगाई पर काबू पाने में मदद मिलेगी। लेकिन कई विशेषज्ञ उसके इस आकलन से सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा है कि अमेरिका में महंगाई की वजह मौद्रिक नहीं है। बल्कि ऐसे विशेषज्ञों ने तो चेतावनी दी है कि ब्याज दर बढ़ने से महंगाई की हालत और बिगड़ेगी।

विश्लेषक डेविड पी गोल्डमैन ने एक वेबसाइट पर लिखा है- ‘फिलहाल वक्त सामान्य कारोबारी चक्र का नहीं है, जब सस्ता कर्ज मिलने की वजह से वस्तुओं और सेवाओं की मांग बढ़ जाती है। अभी संकट सप्लाई साइड से है। इससे निपटने के लिए ब्याज दर बढ़ाना एक गलत नीति है।’ इस राय के विशेषज्ञों के मुताबिक अगर बाइडन प्रशासन महंगाई रोकना चाहता है, तो उसे निजी उपभोग बढ़ाने के लिए दी जा रही अरबों डॉलर की सब्सिडी को रोक देना चाहिए और उत्पादक गतिविधियों में निवेश को प्रोत्साहित करना चाहिए।

जानकारों के मुताबिक अमेरिका की असल समस्या यह है कि वहां मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर (कारखाना क्षेत्र) बहुत सिकुड़ गया है और आम उत्पादकता घट गई है। इसके परिमाणस्वरूप श्रम लागत बढ़ गई है। अभी मांग के मुताबिक सप्लाई के लिए जरूरी वस्तुएं बाजार में नहीं हैं। इन सब वजहों से महंगाई बढ़ गई है। इसलिए महंगाई तभी काबू में आ सकती है, अगर सरकार सप्लाई दुरुस्त करने के उपाय करे।

सॉफ्टवेयर सेक्टर में लगाई पूंजी

विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका में अभी पैदा हुआ संकट वर्षों तक अपनाई गई नीतियों का नतीजा है। इन नीतियों के कारण देश में कारखाना क्षेत्र में निवेश घट गया, जबकि आयात आधारित उपभोग बढ़ता चला गया। देश की ज्यादातर पूंजी मनोरंजन से जुड़े सॉफ्टवेयर सेक्टर में लग गई। कोरोना महामारी ने इन नीतियों की वजह से बन रही स्थितियों को तेजी से बिगाड़ दिया है। लेकिन अब इस हाल का उतनी ही तेज गति से समाधान नहीं ढूंढा जा सकता।

विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि कोरोना महामारी के दौरान सप्लाई चेन टूट गई, जो अब तक बहाल नहीं हो सकी है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समय चीन से आयात होने वाली वस्तुओं पर अतिरिक्त शुल्क लगाए गए, जिस कारण वे चीजें आम अमेरिकी उपभोक्ताओं को महंगी मिलने लगीं। इन सभी कारणों से देश में मुद्रास्फीति दर तेजी से चढ़ी है।

विश्लेषकों ने कहा है कि मैन्यूफैक्चरिंग और टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाना दूरगामी कदम है। लेकिन सप्लाई चेन संबंधी दिक्कतों को दूर करने के लिए सरकार तुरंत कदम उठा सकती है। लेकिन इन विश्लेषकों के मुताबिक ऐसा लगता है कि बाइडन प्रशासन ब्याज दर बढ़ा कर यह संदेश देने में ज्यादा दिलचस्पी ले रहा है कि वह महंगाई रोकने के लिए कुछ कर रहा है।

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