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पाकिस्तान: राष्ट्रीय सुरक्षा के मसले पर तन गईं सरकार और विपक्ष में तलवारें

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, इस्लामाबाद
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Fri, 03 Dec 2021 05:02 PM IST

सार

राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी बैठक नेशनल असेंबली के स्पीकर असद कैसर ने बुलाई है। उनके दफ्तर की तरफ से जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि इस बैठक में पाकिस्तान सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद युसूफ सांसदों को जानकारी देंगे। पर्यवेक्षकों का कहना है कि विपक्षी दलों के बहिष्कार का एलान कर देने से ये बैठक अब महत्वहीन हो गई है…

प्रधानमंत्री इमरान खान
– फोटो : Agency (File Photo)

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पाकिस्तान में इमरान खान सरकार के खिलाफ विपक्ष की साझा मुहिम तेज होने के संकेत हैं। अब विपक्षी दलों ने एलान किया है कि सरकार की तरफ से राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर अगले छह दिसंबर को आयोजित बैठक का वे बहिष्कार करेंगे। विपक्षी दलों का आरोप है कि पाकिस्तान सरकार संविधान का उल्लंघन कर रही है और उसने संसद को ‘रबर स्टांप’ बना दिया है।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक विपक्षी दल खास तौर पर संसद में बिना पूरी चर्चा के विधेयकों को पारित कराने के सरकारी तौर-तरीकों से नाराज हैं। इसके अलावा उन्होंने इस पर एतराज जताया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी संसदीय समिति की पिछली बैठक से प्रधानमंत्री इमरान खान गैर हाजिर रहे। विपक्षी दलों ने इसे सरकार के ‘तानाशाही’ नजरिए की मिसाल बताया है। इन दलों ने एक साझा बयान में कहा कि इस हाल में सुरक्षा संबंधी अगली बैठक में भाग लेने का कोई मतलब नहीं है।

एनएमए सांसदों को देंगे जानकारी

राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी बैठक नेशनल असेंबली के स्पीकर असद कैसर ने बुलाई है। उनके दफ्तर की तरफ से जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि इस बैठक में पाकिस्तान सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद युसूफ सांसदों को जानकारी देंगे। पर्यवेक्षकों का कहना है कि विपक्षी दलों के बहिष्कार का एलान कर देने से ये बैठक अब महत्वहीन हो गई है। इस बीच सूचना मंत्री फव्वाद चौधरी ने एक बयान में विपक्षी दलों से बहिष्कार के फैसले पर फिर से विचार करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि सरकार ने विपक्षी दलों को राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी जानकारी देने की पहल की है, जिस पर विपक्ष को ‘जिम्मेदार नजरिया’ अपनाना चाहिए।

पाकिस्तान के अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक छह दिसंबर को होने वाली बैठक में भारतीय कश्मीर से संबंधित घटनाओं की खास चर्चा होगी। इसके अलावा दूसरे मुद्दों पर भी सरकार जानकारी देगी। लेकिन विपक्षी दलों का आरोप है कि प्रधानमंत्री इमरान खान को लोकतांत्रिक भावना की कोई समझ नहीं है। इन दलों ने अपने बयान में कहा कि पूरे देश की सामूहिक बुद्धि का इस्तेमाल करने की खान में क्षमता ही नहीं है।

राजनीतिक आयोजन नहीं है यह बैठक

उधर स्पीकर के कार्यालय ने कहा है कि विपक्षी दलों के बायकॉट के फैसले के बावजूद बैठक अपने तय कार्यक्रम के मुताबिक होगी। सूचना मंत्री फव्वाद चौधरी ने भी कहा है कि बैठक रद्द नहीं हुई है। उसमें ऐसे विषयों की चर्चा होगी, जिनका राष्ट्रीय सुरक्षा से सीधा संबंध है। उन्होंने विपक्षी दलों से इस बात पर ध्यान देने को कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी बैठक कोई ‘राजनीतिक आयोजन’ नहीं है।

पर्यवेक्षकों के मुताबिक अगर विपक्ष की गैर हाजिरी में बैठक हुई, तो सुरक्षा संबंधी मामलों पर राष्ट्रीय सहमति तैयार करने की सरकार की मंशा खटाई में पड़ जाएगी। पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि विपक्षी दल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद युसूफ को महज दिखावटी अधिकारी मानते हैँ। उनकी शिकायत है कि एनएसए के पास सूचनाएं तो होंगी, लेकिन कोई फैसला लेने का अधिकार उन्हें नहीं है। ऐसे में उनके साथ बैठक से कोई राष्ट्रीय कार्ययोजना बनाने में मदद नहीं मिलेगी।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि विपक्ष के सख्त रुख से जो गतिरोध पैदा हुआ है, वह तभी टूट सकता है अगर प्रधानमंत्री खुद बैठक में हाजिर होकर विपक्ष से बातचीत करने और उसे मांगी गई तमाम सूचनाएं देने के लिए तैयार हों।

विस्तार

पाकिस्तान में इमरान खान सरकार के खिलाफ विपक्ष की साझा मुहिम तेज होने के संकेत हैं। अब विपक्षी दलों ने एलान किया है कि सरकार की तरफ से राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर अगले छह दिसंबर को आयोजित बैठक का वे बहिष्कार करेंगे। विपक्षी दलों का आरोप है कि पाकिस्तान सरकार संविधान का उल्लंघन कर रही है और उसने संसद को ‘रबर स्टांप’ बना दिया है।

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक विपक्षी दल खास तौर पर संसद में बिना पूरी चर्चा के विधेयकों को पारित कराने के सरकारी तौर-तरीकों से नाराज हैं। इसके अलावा उन्होंने इस पर एतराज जताया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी संसदीय समिति की पिछली बैठक से प्रधानमंत्री इमरान खान गैर हाजिर रहे। विपक्षी दलों ने इसे सरकार के ‘तानाशाही’ नजरिए की मिसाल बताया है। इन दलों ने एक साझा बयान में कहा कि इस हाल में सुरक्षा संबंधी अगली बैठक में भाग लेने का कोई मतलब नहीं है।

एनएमए सांसदों को देंगे जानकारी

राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी बैठक नेशनल असेंबली के स्पीकर असद कैसर ने बुलाई है। उनके दफ्तर की तरफ से जारी विज्ञप्ति में बताया गया कि इस बैठक में पाकिस्तान सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद युसूफ सांसदों को जानकारी देंगे। पर्यवेक्षकों का कहना है कि विपक्षी दलों के बहिष्कार का एलान कर देने से ये बैठक अब महत्वहीन हो गई है। इस बीच सूचना मंत्री फव्वाद चौधरी ने एक बयान में विपक्षी दलों से बहिष्कार के फैसले पर फिर से विचार करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि सरकार ने विपक्षी दलों को राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी जानकारी देने की पहल की है, जिस पर विपक्ष को ‘जिम्मेदार नजरिया’ अपनाना चाहिए।

पाकिस्तान के अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के मुताबिक छह दिसंबर को होने वाली बैठक में भारतीय कश्मीर से संबंधित घटनाओं की खास चर्चा होगी। इसके अलावा दूसरे मुद्दों पर भी सरकार जानकारी देगी। लेकिन विपक्षी दलों का आरोप है कि प्रधानमंत्री इमरान खान को लोकतांत्रिक भावना की कोई समझ नहीं है। इन दलों ने अपने बयान में कहा कि पूरे देश की सामूहिक बुद्धि का इस्तेमाल करने की खान में क्षमता ही नहीं है।

राजनीतिक आयोजन नहीं है यह बैठक

उधर स्पीकर के कार्यालय ने कहा है कि विपक्षी दलों के बायकॉट के फैसले के बावजूद बैठक अपने तय कार्यक्रम के मुताबिक होगी। सूचना मंत्री फव्वाद चौधरी ने भी कहा है कि बैठक रद्द नहीं हुई है। उसमें ऐसे विषयों की चर्चा होगी, जिनका राष्ट्रीय सुरक्षा से सीधा संबंध है। उन्होंने विपक्षी दलों से इस बात पर ध्यान देने को कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी बैठक कोई ‘राजनीतिक आयोजन’ नहीं है।

पर्यवेक्षकों के मुताबिक अगर विपक्ष की गैर हाजिरी में बैठक हुई, तो सुरक्षा संबंधी मामलों पर राष्ट्रीय सहमति तैयार करने की सरकार की मंशा खटाई में पड़ जाएगी। पर्यवेक्षकों ने ध्यान दिलाया है कि विपक्षी दल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद युसूफ को महज दिखावटी अधिकारी मानते हैँ। उनकी शिकायत है कि एनएसए के पास सूचनाएं तो होंगी, लेकिन कोई फैसला लेने का अधिकार उन्हें नहीं है। ऐसे में उनके साथ बैठक से कोई राष्ट्रीय कार्ययोजना बनाने में मदद नहीं मिलेगी।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि विपक्ष के सख्त रुख से जो गतिरोध पैदा हुआ है, वह तभी टूट सकता है अगर प्रधानमंत्री खुद बैठक में हाजिर होकर विपक्ष से बातचीत करने और उसे मांगी गई तमाम सूचनाएं देने के लिए तैयार हों।

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